नेहा बग्गा
देश में हम आजादी के 75 वर्ष मना रहे हैं और इस अमृत महोत्सव में एनडीए की राष्ट्रपति उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू के चयन से पूरे देश में खुशी का माहौल है। मध्यप्रदेश ही नहीं, जनजाति समाज ही नहीं अपितु पुरे देश को आज गर्व की अनुभूति हो रही है। देश के इतिहास में यह पहली बार होगा जब कोई पूर्व पार्षद राष्ट्रपति बनने के बेहद करीब पहुंच गया है। राष्ट्रपति प्रत्याशी के रूप में द्रौपदी मुर्मू के चयन ने भले ही उन लोगों को चौंका दिया हो, जो राष्ट्रपति पद को एक विशेष दायरे में सीमित करके देखते हैं। लेकिन भाजपा संसदीय दल का यह निर्णय वास्तव में जनजातियों और महिलाओं के सशक्तीकरण की दिशा में भाजपा की नीतियों का ही प्रतिबिंब है।
ओडिशा में जन्मी द्रौपदी मुर्मू ने भुवनेश्वर स्थित रमादेवी महिला कॉलेज से स्नातक की डिग्री (बीए) हासिल की। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत बतौर शिक्षक के रूप में की, फिर वह राजनीति में आ गईं। साल 1997 में पार्षद के रूप में मुर्मू ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की। इसके 3 साल बाद 2000 में पहली बार विधायक बनीं और फिर भाजपा-बीजेडी सरकार में दो बार मंत्री भी रहीं। बाद में मुर्मू झारखंड की राज्यपाल बनीं और इस प्रदेश की पहली महिला राज्यपाल भी बनीं। यही नहीं वह देश के किसी भी प्रदेश की राज्यपाल बनने वाली देश की पहली आदिवासी महिला नेता भी हैं। ओडिशा के मयूरभंज जिले से ताल्लुक रखने वाली द्रौपदी मुर्मू झारखंड की पहली महिला आदिवासी राज्यपाल बनीं और सबसे लंबे समय तक इस पद पर रहीं। झारखंड की राज्यपाल रहते हुए पक्ष और विपक्ष दोनों ही उनकी कार्यशैली के मुरीद रहे। उन्होंने ओडिशा के सर्वोत्तम विधायक को दिया जाने वाला नीलकंठ पुरस्कार भी हासिल किया है। इस पद से रिटायर होने के बाद ओडिशा के मयूरभंज जिले के रायरंगपुर में रह रही हैं। द्रौपदी मुर्मू अपनी साफ छवि और बेबाक फैसलों के लिए जानी जाती हैं। इनकी निजी जिंदगी भले ही त्रासदियों से भरी रही हो, लेकिन देश के इस सबसे बड़े पद पर उनका नामांकन होना ये साबित करता है कि वह मुश्किल हालातों से निपटना बखूबी जानती हैं।
भारतीय जनता पार्टी ने सदैव सबका साथ सबका विकास और सबके प्रयासों के साथ समाज के वंचित पीड़ित शोषित वर्गों को प्रतिनिधित्व दिलवाने के लिए अनेकों काम किए हैं और योजनाएं चलाई हैं। चाहे विधायिका और मंत्रिमंडलों में महिलाओं, पिछड़ों और आदिवासियों की संख्या की बात हो, या फिर 26 जनवरी की परेड हो, भाजपा की नीतियां सरकार के निर्णयों से छलकती रही हैं। बीते वर्षों में आदिवासियों और महिलाओं के हितों में भाजपा की केंद्र और राज्य सरकारों ने जो निर्णय लिए हैं, जो काम किए हैं, वो अभूतपूर्व हैं। पार्टी के इन निर्णयों और कामों में मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार की अग्रणी भूमिका रही है। लाड़ली लक्ष्मी योजना से लेकर भगवान बिरसा मुंडा के जन्मदिवस को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाने के निर्णय तक पूरे देश के लिए अनुकरणीय रहे हैं।
मध्यप्रदेश देश का पहला ऐसा राज्य है, जहां निकाय व स्थानीय पंचायत के चुनाव में महिलाओं की भागीदारी को सुनिश्चित करने के लिए 50% का आरक्षण दिया और आज जब हम चुनावी मैदान में है तो यह देखने को मिलता है कि महिलाएं लगभग 80% के आसपास आज चुनावी रण में है। यह समाज और प्रदेश के लिए अत्यंत सौभाग्य का विषय है की ग्रहणी से लेकर फाइटर जेट तक मध्य प्रदेश की बेटियां लगातार अपने पंख फैला रही हैं। मध्यप्रदेश से पिछले दिनों राज्यसभा की दोनों सीटों पर दो महिला प्रत्याशियों को निर्विरोध चयन कर सर्वोच्च सदन राज्यसभा में भेजा गया है। जिसमें सुमित्रा वाल्मिकी देश की पहली वाल्मिकी समाज से आने वाली सांसद बनी, वहीं पिछड़ा वर्ग से कविता पाटीदार को राज्यसभा भेजा गया। यह मध्यप्रदेश में महिला सशक्तीकरण के लिए किए जा रहे प्रयासों का ही नतीजा है कि आज 42 लाख लाडली लक्ष्मी मध्यप्रदेश में हैं और बेटी और बेटों का अनुपात जो पहले 1000 बेटों पर 912 था अब 970 हो गया है।
चाहे महिला सशक्तीकरण हो या जनजातीय अस्मिता के गौरव को पुनर्स्थापित करना हो इस दिशा में जितने कार्य प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में पिछले 8 सालों में हुए हैं वो पहले कभी नहीं हुए। द्रौपदी मुर्मू जी को राष्ट्रपति प्रत्याशी नामांकित किए जाने का ये निर्णय मोदी जी के महिला व जनजातीय कल्याण के उसी अटूट संकल्प का प्रतिबिंब है। द्रौपदी मुर्मू ने अभी तक अपने सभी दायित्वों को बहुत अच्छे से निभाया है चाहे वह शिक्षक का हो, संगठन का हो, जनप्रतिनिधि का या फिर राज्यपाल का। आशा की जानी चाहिए कि देश के सर्वोच्च पद पर पदस्थ होकर वे इस भूमिका में भी नए कीर्तिमान बनाएंगी।
-लेखक भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता हैं