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छत्तीसगढ़ में जिस तरह से शराब घोटाले की परत दर परत रोज नए तथ्य सामने आ रहे हैं। इससे यह स्पष्ट हो रहा है कि सरकार के साथ-साथ अधिकारियों पर शराब माफिया का कितना बड़ा दबदबा था। अभी तक तो फिल्मों मे ही देखते आए थे कि माफिया सत्ता को किस तरह ताक पर रखकर काम करता है, पर इसके सबूत अब छत्तीसगढ़ में मिल रहे हैं। जब माफिया के पारिवारिक प्रोग्रामों में कल के बड़े राजनेता शामिल होकर सेल्फियां लेने में शान समझते हो तो आज के राजनेता कहां पीछे रहने वाले हैं। चाहे-अनचाहे में वे भी उन्हीं के पक्ष में सामने से न सही, पीछे से तो मदद करेंगे ही सही। बचपन में हम सुनते थे कि शराब बुरी चीज है जो कभी छूटती नहीं है। वैसे अब उससे बढ़कर पैसे की हवस हो गई है, जो किसी के हाथों से छूटती नहीं है। सभी को अपनी आने वाली दस पीढ़ियों के लिए इंतजाम करना होता है। जो बहुत ही दुखद है। देश और प्रदेश की चिंता करने वाले ही अगर माफिया को संरक्षण देंगे तो देश फिर देश का क्या हाल होगा। गारतलब है कि इस बड़े शराब घोटाले को टीआईओ प्रमुखता से उठा रहा है। जिसके कारण दिल्ली से लेकर छत्तीसगढ़ तक हड़कंप मच गया है। हमारे ऊपर भी कई तरह से खबर रोनके लिए दबाब बनाया जा रहा है। पर हमारा काम पाठकों तक सच्चाई को उजागर करना है। हम दबाव में आने वाले नही।
ज्ञात हो कि छत्तीसगढ़ में 22 सौ करोड़ के शराब घोटाले की डिजिटल कुंडली सामने आ गई है। इसमें शराब की खपत, निर्माण, आपूर्ति और परिवहन का जीपीआरएस समेत पूरा ब्यौरा मिल गया है। शराब घोटाले की असल जड़ से ईडी के तत्कालिन विवेचना अधिकारीयों ने अपना मुंह मोड़ रखा था। नतीजतन यह केस काफी कमजोर हो गया था। लेकिन अब राज्य में विष्णुदेव साय के नेतृत्व वाली बीजेपी की नई सरकार और ईडीमें तैनात निष्पक्ष अफसरों की देख रेख में शुरू हुई विवेचना के अंजाम तक पहुंचने के आसार बढ़ गए हैं। बताते हैं कि शराब घोटाले की पूरी कुंडली ट्रैक एंड ट्रैस साफ्टवेयर के भीतर समाई हुई है।
सूत्रों के मुताबिक भारत सरकार की एक महत्वपूर्ण जांच एजेंसी एनआईसी के संपर्क में भी है। उसने आबकारी घोटाले का अध्ययन करना भी शुरू कर दिया है। यह भी बताया जा रहा है कि ट्रैक एंड ट्रैस साफ्टवेयर रायपुर में आबकारी भवन में भी उपलब्ध कराया गया था। ताकि डिस्टिलरी से गोदाम और दुकानों तक शराब के परिवहन और वाहनों की गतिविधियों पर जीपीआरएस सिस्टम से निगाह रखी जा सके।
भारत सरकार की संस्था एनआईसी ने राज्य में शराब की खपत और निर्माण एवम आपूर्ति का डिजिटल डाटाबेस तैयार किया था। इसमें प्रदेश की तमाम डिस्टिलरी में शराब के उत्पादन और परिवहन का पूरा ब्यौरा दर्ज है। इसमें डाटा एंट्री के अलावा उन आबकारी अधिकारीयों का नाम और ब्यौरा भी दर्ज है, जो आबकारी घोटाले में आकंठ डूबे हुए थे। अंदेशा यह भी जाहिर किया जा रहा है कि शराब घोटाले में लिप्त कई विभागीय माफिया आबकारी भवन में उपलब्ध इस महत्वपूर्ण सॉफ्टवेयर के साथ छेड़छाड़ कर सकते हैं।
उनका मकसद शराब घोटाले के डिजिटल सबूतों को नष्ट करना है। लिहाजा इस सॉफ्टवेयर की सुरक्षा साय सरकार के कंधों पर बताई जा रही है। छत्तीसगढ़ के शराब घोटाले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में ईडीकी भद्द पिटने से कर्तव्यनिष्ठ और ईमानदार अधिकारी हैरत में है। उन्हें कतई उम्मीद नही थी कि इतने महत्वपूर्ण मामले की विवेचना में जानबूझकर लापरवाही बरती जाएगी।
उन्होंने इसका ठीकरा ईडी में पदस्थ 2005 बैच के एक आईपीएस अधिकारी पर फोड़ा है। बताया जाता है कि मुंबई में तैनात रहे इस तत्कालीन अफसर के निर्देश पर ही ईडी ने राज्य में घटित तमाम घोटाले की जांच को अंजाम दिया था। यह भी बताया जा रहा है कि छत्तीसगढ़ कैडर के वर्ष 2005 बैच के आईपीएस अधिकारी शेख आरिफ ने अपने बैचमेट के साथ सांठ-गांठ कर ईडीकी विवेचना को पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के हितों को ध्यान में रखते हुए जांच को प्रभावित किया था। शेख आरिफ को ईडी ने अपनी विवेचना में महादेव ऐप घोटाले में लिप्त पाया है।
उनके खिलाफ ईओडब्ल्यू में नामजद एफआईआर दर्ज करने के निर्देश ईओडब्ल्यू में धरे के धरे रह गए। यही नही ईओडब्ल्यू के प्रमुख रहते शेख आरिफ ने कई घोटालों की जांच रफा दफा कर दी थी। उनकी विवादास्पद कार्यप्रणाली के चलते केंद्र और राज्य सरकार की प्रतिष्ठा धूमिल हुई है। सूत्र यह भी तस्दीक कर रहे हैं कि शराब घोटाले की तर्ज पर 6000 करोड़ के महादेव ऐप घोटाला और 600 करोड़ के कोल खनन परिवहन घोटाले को भी विवेचना के दौरान काफी कमजोर कर दिया गया है।
अदालत में इन दोनों मामलों को लेकर भी ईडी की भद्द पिटना तय माना जा रहा है। कानून के जानकार तस्दीक कर रहे हैं कि भूपेश राज के तमाम घोटाले में ईडीकी कमजोर विवेचना का लाभ आरोपियों को मिल रहा है। कई घोटालों में आरोपी बनाए गए अनिल टुटेजा और उनके पुत्र यश टुटेजा बनाम ईडीके प्रकरण ने आॅल इण्डिया सर्विस के कई अधिकारियों की कार्यप्रणाली और कर्तव्य निष्ठा की पोल खोल दी है। उनके मुताबिक भूपेश राज के तमाम घोटालों की जांच सीबीआई से करानी चाही।
सुप्रीम कोर्ट ने ईडीको आड़े हाथों लेते हुए शराब घोटाले की ईसीआईार ही रद्द कर दी है। मामले की पड़ताल में ईडी की विवेचना में कई गंभीर खामियां सामने आई हैं। हालाकि विभागीय तौर पर इस गंभीर प्रकरण की जिम्मेदारी अभी तक तय नही की गई है। कानून के जानकारों के मुताबिक अदालत ने ईडी को फटकार लगाते हुए आईटी की रिपोर्ट पर प्रेडिकेट आॅफेंस रजिस्टर्ड किए जाने को लेकर ईडीकी कार्यप्रणाली पर करारी चोट की है।
इससे भ्रष्टाचार के खिलाफ उस महत्वपूर्ण जांच और विवेचना को गहरा धक्का लगा है, जिसमें कई अधिकारी ईमानदारी का परिचय देकर निष्पक्ष जांच में जुटे थे। हालाकि सूत्र दावा कर रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट का फरमान एजेंसियों के लिए राम बाण साबित हुआ है। उसने नई जांच की दिशा और दशा तय कर दी है।