शशी कुमार केसवानी
मध्यप्रदेश में कैबिनेट विस्तार के बाद विभागों को लेकर जारी विवाद खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। पिछले कई दिनों से अखबार या टीवी में इस बारे में कोई चर्चा ही नहीं है। इसे कहते हैं भाजपा का मीडिया मैनेजमेंट। कल्पना करिए की कांग्रेस 25 को मंत्रिमंडल शपथ लेता और अब तक विभाग नहीं बांटे जाते तो मीडिया की क्या हेड लाइन होती। मसलन ‘विभागों में लग रही बोली’ ज्यादा देने वालों को मलाईदार विभाग, कपड़े फाड़े जा रहे हैं, हाईकमान फलाने के सामने बेवस, इस तरह की कई हैडिंगों के साथ अखबार और टीवी भरे हुए दिखते। वहीं भाजपा सरकार का मीडिया मैनेजमेंट इस तरह से है कि एक शब्द भी किसी अखबार में नहीं छप रहा। बहरहाल विभाग न बंटने की वजह से विकास के काम तो रुके हुए ही हैं, साथ ही साथ प्रदेश के अन्य विभागों के काम भी बंद पड़े हुए हैं। सरकार के विकास के दावे किस तरह से पूरे होंगे इतने दिनों तक विभागों का बंटवारा भी न हो पाए तो सवाल उठना लाजिमी है।
खासतौर से गृह विभाग को लेकर जिस तरह से दो मंत्रियों के बीच में तलवारे खिंची हुई हैं, उससे लगता है कि गृह विभाग ही सबसे बड़ा विभाग बन गया है। हालांकि शिवराज के समय में बहुत ही कम पावर था। पावर सेंटर तत्कालीन सीएस बने हुए थे। पर अब लगता है कि गृह मंत्री अब पूरे प्रदेश की लगाम अपने हाथों में लेंगे। पर असल में मुख्यमंत्री का दखल जरूर रहेगा। मुख्यमंत्री इसी बात को लेकर दिल्ली दरबार में हाजिर हुए हैं। उनके पीछे-पीछे कुछ और ताकतवर मंत्री जाने वाले हैं। अब असल निर्णय पूरा दिल्ली में ही होगा। जबकि पीडब्ल्यूडी, जनसंपर्क, महिला और बाल विकास जैसे विभागों का लगभग तय माना जा रहा है। कुछ विभाग में अभी भी कुछ पेंच फंसा हुआ है। पर इस मंत्रिमंडल में सभी संतुष्ट होने वाले नहीं हैं।
मध्यप्रदेश में कैबिनेट विस्तार होने में 12 लग गए थे। भाजपा की मुश्किलें दिन व दिन बढ़ती जा रही है। जैसे-तैसे असंतष्टों को आश्वासन देकर शांत किया है। साथ ही विभागों के बंटवारे की लड़ाई अंदरखाने जोरों से चल रही है। सभी को मलाईदार विभाग चाहिए। भाजपा की मुश्किल यह है कि लोकसभा चुनाव को देखते हुए किसी को भी नाराज नहीं करना चाह रहे हैं। पिछले तीन दिनों से कवायद यह चल रही है कि चार मंत्री विभागों के लिए राजी हो भी जाते हैं, पर दूसरे मंत्रियों को जब विभागों की खबर आती है तो सब एक साथ हाथ खड़े कर देते हैं।
भाजपा के एक बड़े पदाधिकारी ने बताया कि पार्टी में कभी पहले विभागों के लिए ऐसा देखने को नहीं मिला। वहीं कुछ लोगों का कहना है कि जिस तरह से पहले कांग्रेस में होता था, अब उस तरह से भाजपा में भी होने लगा है। या दूसरे शब्दों में कहा जाए तो भाजपा भी कांग्रेस मय होने के कारण यह परेशानी पनपी है। अभी आने वाले दो या तीन दिन मंत्रियों के विभागों को लेकर यह रस्साकसी चलती रहेगी। खासतौर से कैलाश विजयवर्गीय, प्रहलाद पटेल, राकेश सिंह और सिंधिया समर्थकों के विभागों को लेकर हर व्यक्ति दबाव बनाए हुए हैं। चाहे-अनचाहे विभागों का बंटवारा हाईकमान को कैबिनेट विस्तार की तरह ही दबाव में ही लेना पड़ेगा।
हालांकि मुख्यमंत्री मोहन यादव कुछ बड़े विभाग अपने पास रखना चाह रहे हैं। वहीं बड़े विभागों की दौड़ में दो उपमुख्यमंत्री जगदीश देवड़ा और राजेन्द्र शुक्ल भी हैं। आने वाले समय में विभाग तो बंट जाएंगे, लेकिन सरकार को काम करने में काफी कठिनाईयों का सामना करना पड़ेगा। बता दें कि विधानसभा चुनाव के आए नतीजों में भाजपा ने प्रचंड जीत दर्ज की थी। लेकिन नजीते आने के बाद से मुख्यमंत्री के नाम से लेकर कैबिनेट विस्तार तक पार्टी हाईकमान को काफी मशक्कत करनी पड़ी है। हाईकमान की मशक्कत अभी यहीं खत्म नहीं हुुई है। आलाकमान को कैबिनेट मंत्रियों के विभागों का बंटवारा करने में पसीना आ रहा है।