शशी कुमार केसवानी की यादों में बसी दादा की चंद बातें
दादा लक्ष्मणदास केसवानी का जन्म 1.1.1923 को जैकब आबाद सिंध प्रांत में हुआ। पिता स्वर्गीय श्री श्यामदास केसवानी पुलिस विभाग के अनेक पदों पर रहे तथा माता पार्वतीदेवी एक गृहणी थी। उनके एक छोटे भाई है रतनलाल केसवानी और बहन स्वर्गीय बग्गादेवी थी। दादा लक्ष्मणदास केसवानी ऐसे एक व्यक्तित्व थे जिन्होंने सारा जीवन देश व देश के लोगों के लिए समर्पित कर दिया। आजादी के आंदोलन से लेकर भारत के पाकिस्तान उच्चायुक्त ने लाखों लोगों को माइग्रेशन सर्टिफिकेट पर हस्ताक्षर करने वाले ऐसे व्यक्तित्व थे (उस समय भारत हाईकमीशन में भारतीय दूतावास में वरिष्ठ प्रशासक अधिकारी के तौर पर सरदार पटेल ने उन्हें पदस्थ किया था।) जिन्होंने हमेशा जाति और समाज से ऊपर उठकर काम किया। मूलत: अपने स्वभाव से पत्रकार रहे। जो अपने जीवन के अंतिम दिन तक करते रहे। कुछ सालों तक वकालत भी की पर उनके अंदर की कड़वी सच्चाई उन्हें पसंद नहीं आई इसलिए अपना काला कोट उतारकर एक बार जब टांगा तो उसे फिर कभी नहीं पहना। देशभर में लगातार दौरे करके न केवल सिंधी समाज बल्कि अन्य समाजों में जागरूकता उत्पन्न करते रहे है।
अखिल भारतीय सिंधी समाज का गठन करके देशभर में जिला स्तर पर जिसका संगठन तैयार किया। जिसका मुख्य उद्देश्य से बाकी सब समाजों के बीच में समन्वय बनाना, राजनीति में समाज को प्रतिनिधित्व दिलवाना और सामाज में कुरीतियों को जैसे मृत्युभोज और दहेज को लेकर हमेशा विरोध करते रहे। सभी समाजों में यह संदेश देते रहे कि विदेश में बसे लोगों को हमेशा इस बात के लिए प्रेरित करते रहे थे कि वह पैसा भारत देश में शिक्षा और स्वास्थ्य के ऊपर खर्च करे, जिससे आने वाली नस्लें शिक्षित और स्वस्थ्य रहें। इसके साथ ही सभी समाज में जागरूकता की लहर जाग सके। सरदार पटेल ने उन्हें सूचित किया कि बंबई का पृथ्वी थिएटर छोड़ो अब तुम्हे असल काम पर भोपाल जाना पड़ेगा। यह विशेष मिशन अब तुम्हारे हवाले किया जा रहा है कि भोपाल में हो रही अराजकता को किस तरह से रोका जाए इसका ब्यौरा लगातार सरकार को देते रहना। साथ ही साथ भोपाल को भारत के अंदर किस तरह से मर्जर किया जाए, इसकी पूरी रणनीति भोपाल जाकर तुम्हें ही तैयार करनी है। यह मिशन उसी तरह से है, जिस तरह से पहले तुम आजादी की लड़ाई लड़ चुके हो। यह अंदरूनी आजादी की लड़ाई है, जिसकी जिम्मेदारी तुम्हे सौंपी जा रही है। और हमें विश्वास है कि हमेशा की तरह अपने मिशन में कामयाब होकर वापस दिल्ली लौटोगे और विदेश विभाग में कार्य करोंगे। इस कार्य के लिए आपको आपके पुराने व्यवसाय पत्रकारिता से जोड़कर भोपाल भेजा जा रहा है।
आप हिन्दूस्तान टाइम्स के विशेष संवाददाता के रूप में कार्य करते हुए नवाब पर और उसकी मूवमेंट पर अपनी पूरी नजर रखेंगे और लगातार हमें जानकारी देते रहेंगे। (भोपाल के अंग्रेजी के पहले पत्रकार के रूप में लंबे समय तक हिन्दूस्तान टाइम्स में कार्य करने वाले दादा लक्ष्मण दास केसवानी थे। वहां के लोकल क्रांतिकारियों की भी मदद करके उन्हें प्रेरित करेंगे और उन्हें यह आश्वासन भी देंगे कि भारत सरकार आंदोलन में पूरा सहयोग करेगी। अगर इस मिशन में आपकी किसी भी प्रकार की क्षति होती है तो देश हमेशा आपके ऊपर नाज करेगा। पर हमने देखा है कि आपने मिशन को हमेशा अंजाम तक पहुंचाकर विजय पताका के साथ लौटते हैं। हमें अब भी इंतजार रहेगा अगर मजबूरी में कभी जरूरत रहेगी तो मैं भी भोपाल आ जाऊंगा। सरदार पटेल की यह बातें सुनकर केसवानी बिना बोरिया बिस्तर के ही भोपाल की ओर रुख कर दिया। भोपाल आने के बाद उनका नबाव से कुछ चीजों पर भारी विवाद रहा। उनके खिलाफ अखबार ने जब लिखना शुरू किया तब नबाव भोपाल ने समझाने की कोशिश की। साथ ही साथ कई तरह के प्रलोभन भी देने की कोशिश की। लेकिन अपने स्वभाव के अनुरूप वह काम करते रहें। यह बात नवाब को नागवार गुजरी और उन्हें जेल के अंदर डाल दिया। वहीं पर ही डॉक्टर शंकरदयाल शर्मा, खान शाकिर अली, मोहिनी देवी जैसे भोपाल के अन्य क्रांतिकारियों से उनकी दोस्ती हो गई। यह जानकारी मिलने के बाद सरदार पटेल ने नवाब को कहा कि भारत में मिल जाओ या फिर हमले के लिए तैयार हो जाओ। नवाब भोपाल ने अपनी हैसियत को देखते हुए भारत में मिलने का 1950 में निर्णय लिया।
भोपाल मर्जर की जब बात चली तो सरदार पटेल ने सबसे पहले केसवानी को छोड़ने की बात कही, जिसे तुरंत ही स्वीकार करके उन्हें छोड़ दिया गया। बाद में दादा मर्जर ड्रॉफ्ट के ऊपर भी काम करते रहे। उन्होंने कभी भोपाल में बसने का न सोचा था पर भोपाल से ऐसा प्यार हो गया कि खुद तो बसे ही बसे अपने कुछ रिश्तेदारों को भी यहां बसा दिया तथा कांग्रेस के कई बड़े पदों पर रहे। पाकिस्तान से आए लोगों के लिए भारत सरकार द्वारा संचालित कैंपों का कमांडेंट भी उन्हें बना दिया गया। जिसके चलते उन्होंने सभी लोगों के लिए खाने व जीवन यापन करने की चीजों की कमी नहीं आने दी। बाद में आए शरणार्थियों के लिए जो अपनी चल-अचल संपत्ति पाकिस्तान में छोड़कर आए थे। उस संपत्ति को सरकार से दिलवाने में लंबा समय गुजारा। जिनका सेटलमेंट न हो सका उनके लिए अदालत का दरवाजा भी खटखटाया। उन लोगों को इंसाफ दिलवाया। उस जमाने में लोग बताते है के उनसे मिलने के लिए शाम पांच बजे से कतार लगती थी जो रात 11 बजे तक चलती रहती थी। शासन की कई कमेटियों में रहते हुए लोगों को सहूलियतें दिलवाने के भरसक प्रयास करते रहे। जिसका सबूत है कि आज भी कई राशन की दुकानें उन्हीं परिवारों के पास जीवनयापन करने का साधन है।
इन सब चीजों से बढ़कर उन्होंने हमेशा अच्छे लोगों को राजनीति में आने के लिए प्रेरित करते रहे। भोपाल में बसे निर्मल मीरा स्कूल की भी स्थापना उन्हीं के प्रयासों से हुई थी। भोपाल की लक्ष्मी टॉकीज के लिए भी उन्हीं के प्रयासों से टॉकीज का निर्माण हो सका। भोपाल में आए बीएचएल के लिए व मेडिकल कॉलेज के लिए सरकार से लगातार मांग करते रहे। अपने प्रयासों में कभी पीछे नहीं हटे, किसी भी काम को वे एक मिशन की तरह अपने हाथ में लेते थे। जिसे करके ही पूरा मानते थे और कभी भी उसमें मिलने वाले श्रेय के लिए हमेशा दूसरे लोगों को ही आगे कर देते थे जिस पर उनके कई मित्र नाराज होते थे। तो हमेशा कहते थे। लोगों को हमेशा प्रेरित करना चाहिए। यही कारण था कि दादा ने 1958 में भोपाल टाइम्स नाम से अखबार निकाला जो लोगों को जागरूक करने के लिए था। पर अखबार अंग्रेजी में होने के कारण ज्यादा न चल सका। इसके बाद उन्होंने 1960 में चैलेंज नामक अखबार की स्थापना की। जो 64 सालों से अनवरत प्रकाशित हो रहा है। सन 1964 में सिंधी समाज को जागरुक करने के लिए और उनके हक दिलवाने के लिए सिंधी भाषा में चैलेंज को प्रकाशित किया। द इन्फरमेटिव आब्जर्वर की शुरुआत के लिए भी प्रेरित करके उसका प्रकाशन शुरू करवाया। जो पिछले 8 वर्षों से लगातार प्रकाशित हो रहा है। ऐसे सख्शियत को शैल्यूट…