राकेश अचल

शहरों को विकसित करने के लिए भारत के पास कोई भारतीय मॉडल नहीं है, शायद इसीलिए कभी हम काशी को क्वेटो बनाने की बात करते हैं तो कभी ग्वालियर को ल्यूविन बनाने की बात की जाती है .इन दिनों ग्वालियर को ल्यूविन बनाने के लिए नौकरशाहों का एक दल बेल्जियम की यात्रा पर है और उसने ल्यूविन के साथ एक एमओयू पर दस्तखत किये हैं.
ग्वालियर देश के उन तमाम शहरों में से एक है जो आजादी से पहले ही विकास के तमाम मापदंडों पर खरा उत्तर चुका था. ग्वालियर में 1904 के आसपास ही अपना बिजलीघर,टेलीफोन एक्सचेंज ,अपनी सीवर,पेयजल व्यवस्था सुव्यवस्थित सड़कें और अस्पताल ही नहीं बल्कि रेल सेवा भी थी ,लेकिन बीते सौ साल में ग्वालियर एक के बाद एक अपनी मौलिक विकास यात्रा में पिछड़ता गया और आज हालात ये हैं कि देश के दूसरे शहरों की तरह ही ये ऐतिहासिक शहर भी स्मार्ट शहर के नाम पर एक बदनुमा दाग बन गया है .आबादी के दबाब से शहर की कमर टूट गयी है..शहर के तमाम विकास कार्य आधे-अधूरे पड़े हैं लेकिन ग्वालियर को ग्वालियर बनाने के बजाय उसे ल्यूविन बनाने की कोशिश की जा रही है .
ताजा खबर ये है कि यूरोपियन शहरों की तर्ज पर ग्वालियर का विकास करने के लिए इंटरनेशनल अरबन कार्पोरेशन द्वारा ग्वालियर शहर का विकास बेल्जियम की ल्यूबिन सिटी के साथ समन्वय बनाकर दोनों शहरों के अच्छे कार्यों को एक दूसरे शहरों में प्रारंभ कराया जाएगा । तथा शहर के स्टार्टअप एवं ल्यूबिन के स्टार्टअप को एक दूसरे के समन्वय से और बेहतर बनाने एवं इनक्यूबेशन सेवाएं और समर्थन को प्रमोट करने के लिए ल्यूबिन और ग्वालियर के बीच एमओयू पर हस्ताक्षर किए गए हैं।

ग्वालियर से ल्यूबिन गए दल ने ब्रूसेल्स सिटी में यूरोपियन कमीशन के साथ नगर निगम ग्वालियर के प्रशासक व संभागायुक्त आशीष सक्सैना, ग्वालियर कलेक्टर कौशलेन्द्र विक्रम सिंह, नगर निगम आयुक्त किशोर कन्याल एवं स्थानीय कार्डीनेटर शिशिर श्रीवास्तव की बैठक हुई। बैठक में विभिन्न बिन्दुओं पर चर्चा की गई।ग्वालियर को योरोप के शहरों की तर्ज पर विकसित करने की ये कोशिश आज की नहीं है .तीन साल पहले भी ऐसी ही कवायद की गयी थी ,लेकिन ग्वालियर इस दिशा में एक कदम भी आगे नहीं बढ़ा सका .
मुझे याद है कि 2018 में ल्यूविन सिटी से आए 11 सदस्यीय दल ने शहर में हेरिटेज, स्वर्ण रेखा नदी और पब्लिक ट्रांसपोर्ट में काम करने की संभावनाएं तलाशीं थीं । ल्यूविन के महापौर रेडियोनी ने ग्वालियर के तत्कालीन महापौर विवेक शेजवलकर के साथ साइकिल से शहर का भ्रमण किया था . श्री रेडियोनी को मोतीमहल का हेरिटेज लुक पसंद आया। दल ने बाल भवन में महापौर विवेक शेजवलकर, आयुक्त विनोद शर्मा के साथ बैठक की। इसमें सीईओ महीप तेजस्वी ने प्रजेंटेशन दिया। श्री रेडियोनी ने स्मार्ट सिटी की साइकिल को ल्यूविन से बेहतर बताया। इंटरनेशनल अरबन कार्पोरेशन द्वारा विकास कार्यों के अध्ययन करने के लिए दल को भेजा गया है।

पिछले तीन साल में ग्वालियर न रिवर फ्रंट डवलपमेंट एंड वाटर मैनेजमेंट की दिशा में कुछ कर पाया और न ही
हेरिटेज स्थल महाराज बाड़ा ल्यूविन सिटी के सिटी स्क्वायर में तब्दील कर सका .महाराज बाड़ा आज भी बदहाल है । ग्वालियर के महाराज बाड़ा को सिटी स्क्वायर बनाने की सनक के कारण बाड़ा न बाड़ा रहा और न सिटी स्क्वायर बन सका .इतना ही नहीं तीन साल पहले ल्यूविन की कैथोलिक यूनिवर्सिटी के वाइस रेक्टर प्रो. पीटर लिवेंस और अकादमिक डिप्लोमेसी के हेड बार्ट हेंड्रिक्स ने जीवाजी विश विद्यालय की तत्कालीन कुलपति प्रो. संगीता शुक्ला से मुलाकात की थी । प्रो. शुक्ला ने रिसर्च के आदान प्रदान संबंधी ड्राफ्ट तैयार कर प्रो. लिवेंस को दियालेकिन उस पर आज तक दस्तखत नहीं हो पाए .

आपको यकीन नहीं होगा कि ग्वालियर देश के उन शहरों में भी शामिल है जिन्हें स्मार्ट सिटी परियोजना के तहत विकास के लिए अलग से पैसा दियाजा रहा है लेकिन स्मार्ट सिटी के तहत ग्वालियर में एक राजपथ के अलावा कुछ नहीं बन सका .ग्वालियर के लोकपथ आज भी बदहाल हैं और पूरा शहर खुदा पड़ा है .ग्वालियर के पास प्रदेश के ही दूसरे शहरों की तरह न अपनी कोई सिटी बस सेवा है और न कोई दूसरी स्थानीय परिवहन व्यवस्था .इंदौर भोपाल जहाँ मेट्रो रेल की दिशा में काफी आगे बढ़ गए हैं वहीं ग्वालियर की अपनी शताब्दी पुरानी नैरोगेज रेल को ही बंद हुए कई साल बीत चुके हैं .जबकि यहां रियासत काल से ही नेरोगेज रेल शहर के एक बड़े हिस्से को अपनी सेवाएं देती थी .

ग्वालियर में महाराज बड़ा पर जीर्णोद्धार के बाद विक्टोरिया मार्किट में एक केंद्रीय संग्रहालय बनाने का सपना अभी तक अधूरा है. एक हजार बिस्तर के अस्पताल और जिला न्यायालय की इमारतें वर्षों से अधूरी पड़ी हैं बल्कि इनका निर्माण भ्र्ष्टाचार का अड्डा बन गया है .ग्वालियर विकास प्राधिकरण ने पूर्व में आवंटित की गयी तमाम जमीन डीनोटिफाई कर दी है क्योंकि ये संस्था शहर विकास का काम करने में नाकाम साबित हुयी है. इंदौर के मुकाबले ग्वालियर में विकास प्राधिकरण का काम शून्य है .मजे की बात ये है कि ग्वालियर के पास विकास के मसीहाओं की कोई कमी नहीं है .
ग्वालियर के अतीत को आप याद न भी करें तो वर्तमान में इस शहर से प्रधानमंत्री के पद तक पहुंचे अटल बिहारी और देश की राजनीति में तीन दशक तक चमकते रहे माधवराव सिंधिया के कारण ये शहर हमेशा सुर्ख़ियों में रहा है .पूरा सम्पदा के मामले में ग्वालियर मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के अलावा इंदौर ,जबलपुर और उज्जैन से भी ज्यादा समृद्ध है लेकिन विकास के मामले में सबसे पीछे है.ग्वालियर में आज भी प्रदेश के तीन बड़े विभागों के मुख्यालय हैं किन्तु नतीजा वही ढाक के तीन पात जैसा है .ग्वालियर में चार दशक पहले एक नया शहर विकसित करने के लिए कमर कसी गयी थी,विशेष विकास प्राधिकरण भी बनाया गया था लेकिन ये नया शहर नहीं बसना था सो नहीं बसा .आज भी यहां विकास के कथित अवशेष आप देख सकते हैं .ऐसे में ग्वालियर कैसे ल्यूविन बनेगा राम हीजाने .

Shashi Kumar Keswani

Editor in Chief, THE INFORMATIVE OBSERVER