राघवेंद्र सिंह

कहां तो भाजपा ने तय किया था हर बूथ पर 370 वोट बढ़ाना है लेकिन औसतन हर बूथ पर पांच से दस प्रतिशत तक वोट घट रहे हैं। इसमे जरूर कोई लोचा है। इस लाख टके के सवाल का उत्तर फील गुड में आई भाजपा को नही मिल रहा है। मर्ज को पकड़ जड़ पर प्रहार करने के बजाए मंत्रियों को जिम्मेदार बता उन्हें सत्ता से रुखसत करने की बातें हो रही है। जबकि संगठन के जानकार कार्यकर्ताओं से कोई पूछ ले तो वही इसका समाधान बता सकता है। भाजपा भाग्यशाली पार्टी है कि उसमें छोटे से छोटे स्तर पर भी संगठन शास्त्र के ज्ञाता मौजूद हैं। लेकिन अभी तो पूरी पार्टी और प्रत्याशी मोदी के माथे और कंधों पर सवार हैं।

मप्र में सबसे ज्यादा मत प्रतिशत सीधी में घटा है। यहां 2019 की तुलना में 14.31प्रतिशत वोट कम पड़े हैं। इसके बाद शहडोल में 11 प्रतिशत की कमी आई है। यह गिरावट उस समय आ रही है जब भाजपा और पीएम मोदी से लेकर अध्यक्ष जेपी नड्डा और उनके चाणक्य केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह हर बूथ पर 370 वोट बढ़ाने की बात कर रहे हैं। छिंदवाड़ा में पौने तीन प्रतिशत, जबलपुर में 8.91 प्रतिशत, और मंडला करीब सवा पांच व बालाघाट में लगभग 4.43 कम मतदान हुआ है। जाहिर है इसमे जीत का अंतर तो घटेगा ही साथ कम वोट से ही सही हार का खतरा भी मंडराएगा। कुल मिलाकर पार्टी व्यक्तिवाद की तरफ जाती दिख रही है। इसमे संगठन गौण हो रहा है। इसके चलते जिम्मेदारी भी संगठन के बजाए व्यक्ति याने मंत्रियों के ऊपर तय करने की चेतावनी स्वरूप मंत्री पद से मुक्त करने की बातें भी की जा रही है।

बहरहाल,चिंता की बात यह है कि कई जतन करने के बाद भी हरेक चरण के मतदान में वोट घटने की यह फिसलन रुकने का नाम नही ले रही है। यह तब हो रहा है जब जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटाना, राम मंदिर बनाना, तीन तलाक खत्म करना, सीएए लागू करना जैसे बड़े मुद्दों से भाजपा की झोली भरी हुई है। साथ ही पीएम नरेंद्र मोदी जैसा मजबूत नेता संगठन के मामले में सशक्त भाजपा व संघ परिवार साथ हो। देश युग परिवर्तन की तरफ जा रहा है। भाजपा में ऐसा कम ही होता था। अपने कार्यकर्ताओं और संघ परिवार की सक्रियता से वह वोटिंग ट्रेंड को अग्रेसिव करने में कामयाब होती रही है। इस दफा ऐसा नही हो रहा है। इसी से सबकी नींद उड़ी हुई है। जीत में संशय नही है लेकिन रिकार्ड मतों से जीत का सपना शायद टूट जाए। यह आशंका तब पैदा हो रही है जब प्रतिपक्ष की तरफ से वॉकओवर सा मिला हुआ है। चुनावी रणनीति बनाने के बजाए राहुल बाबा 2024 के बजाए 2029 की तैयारियों में जुटे से लगते हैं। सीधे साधे- और सज्जन से लगने वाले राहुल बाबा को किसी शुभचिंतक ने यह गणित समझा दिया है कि यात्राएं करने से वे अलग किस्म के नेता बन जाएंगे और ऐसे में जनता उनमें महात्मा गांधी की छवि भी देखेगी। बापू ने भी यात्राएं की थी तभी वे देश और देश उन्हें समझ पाया था। यात्राओं के जरिए वे बापू से महात्मा बनने का सफर तय कर पाए थे। राहुल सियासत में सीधे हैं और उन्हें यात्रा वाली सलाह जम गई। बात सही हो सकती है मगर राजनीति में हरेक काम की टाइमिंग होती है । जैसे क्रिकेट में सही टाइम पर हल्के से भी बल्ला बॉल पर टच ही कर दो चौके – छक्के लग सकते हैं। टाइमिंग गलत हो तो आउट होने के खतरे बढ़ जाते हैं। पूरा खेल टाइमिंग का है।

संगठन का आग्रह और चेतावनी भी असरदार साबित नही हो पा रही है।
संगठन की दृष्टि से चार सौ पार का लक्ष्य तय करने वाली भाजपा के भविष्य के लिए बहुत अलार्मिंग है। इसके कारणों पर भाजपा और उसके कर्ताधर्ताओं में अवश्य ही चिंता हो रही होगी। संघ परिवार की सक्रियता की भी दरकार है। अभी दो चरणों के मतदान में मप्र की 17 लोकसभा सीटों पर वोटिंग प्रतिशत बढ़ाने का अवसर है। लोकतंत्र की मजबूती के लिए अधिक से अधिक मतदान हो यह जिम्मा केवल चुनाव आयोग नही है। सबको मिलकर काम करने की जरूरत है।

Shashi Kumar Keswani

Editor in Chief, THE INFORMATIVE OBSERVER