TIO, नई दिल्ली

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कहा है कि केंद्र सरकार शिक्षा के क्षेत्र में अपने सिर्फ तीन कोर एजेंडे को लागू करने पर जुटी है। ये एजेंडे हैं है केंद्रीकरण, व्यावसायीकरण और सांप्रदायिकरण। सोनिया गांधी ने कहा है कि हाई-प्रोफाइल राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 की शुरूआत ने सरकार के वास्तविक मंशे को छिपा दिया है। सरकार भारत के बच्चों और युवाओं की शिक्षा के प्रति बेहद उदासीन है।

देश के प्रमुख अखबार द हिन्दू में लिखे एक लेख में सोनिया गांधी ने लिखा है कि पिछले एक दशक में केंद्र सरकार के ट्रैक रिकॉर्ड ने स्पष्ट रूप से प्रदर्शित किया है कि शिक्षा में वह केवल तीन मुख्य एजेंडा मदों के सफल कार्यान्वयन को लेकर चिंतित है। 1- केंद्र सरकार के पास सत्ता का केंद्रीकरण 2- शिक्षा में निवेश का व्यावसायीकरण और निजी क्षेत्र को आउटसोर्सिंग, 3-और पाठ्यपुस्तकों, पाठ्यक्रम और संस्थानों का सांप्रदायिकरण।

शिक्षा का केंद्रीकरण
सोनिया ने कहा है पिछले 11 वर्षों में इस सरकार की कार्यप्रणाली की पहचान सत्ता को मुट्ठी में लेना रहा है। लेकिन इसके सबसे ज्यादा नुकसानदायक परिणाम शिक्षा के क्षेत्र में देखने को मिले हैं। केंद्र और राज्य सरकारों के शिक्षा मंत्रियों से मिलकर बना केंद्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड की मीटिंग सितंबर 2019 से नहीं हुई है। सोनिया ने कहा है कि एनईपी 2020 के माध्यम से शिक्षा में आमूलचूल परिवर्तन को अपनाने और लागू करने के दौरान भी केंद्र सरकार ने इन नीतियों के कार्यान्वयन पर एक बार भी राज्य सरकारों से परामर्श करना उचित नहीं समझा। यह इस बात का प्रमाण है कि वह अपनी आवाज के अलावा किसी और की आवाज नहीं सुनती, यहां तक कि उस विषय पर भी जो भारतीय संविधान की समवर्ती सूची में है।

सोनिया के अनुसार सरकार की नीति न सिर्फ संवाद की कमी है बल्कि ह्यधमकाने की प्रवृत्तिह्ण भी है। इसके तहत केंद्र राज्य सरकरों को मिलने वाले अनुदानों पर भी रोक लगा देती है। उच्च शिक्षा की ओर इशारा करते हुए सोनिया गांधी ने कहा है कि केंद्र सरकार ने विश्व विद्यालयों के वाइस चांसलरों की नियु्क्ति में भी राज्य सरकारों अधिकार को खत्म कर दिया है। यह समवर्ती सूची में मौजूद विषय को पिछले दरवाजे से केंद्र के दायरे में लाने की कोशिश और ये संघवाद पर हमला है।

शिक्षा का व्यवसायीकरण
कांग्रेस अध्यक्ष ने केंद्र पर आरोप लगाते हुए कहा है कि नरेंद्रे मोदी सरकार द्वारा शिक्षा प्रणाली का व्यावसायीकरण खुलेआम हो रहा है, और वह भी पूरी तरह से नई शिक्षा नीति के अनुरूप। सोनिया ने कहा कि 2014 से अब तक हमने देश भर में 89,441 सरकारी स्कूलों को बंद और विलय होते देखा है। जबकि इस समय 42,944 अतिरिक्त निजी स्कूलों की स्थापना हुई है। देश के गरीबों को सरकारी शिक्षा से बाहर कर दिया गया है और उन्हें बेहद महंगी और बिना कंट्रोल वाले निजी स्कूल प्रणाली के हाथों में डाल दिया गया है।

सोनिया अध्यक्ष ने कहा है कि हमारी शिक्षा प्रणाली में भ्रष्टाचार का बढ़ता प्रचलन व्यावसायीकरण का नतीजा है। राष्ट्रीय मूल्यांकन और प्रत्यायन परिषद में रिश्वत कांड से लेकर दुखद रूप से अक्षम राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी तक, सार्वजनिक शिक्षा प्रणाली और एजेंसियां वित्तीय भ्रष्टाचार के लिए लगातार सुर्खियों में हैं। हमारी सार्वजनिक शिक्षा प्रणाली में यह बढ़ती हुई भ्रष्टता और निराशावाद सरकार द्वारा प्रायोजित शिक्षा के राजनीतिकरण और व्यावसायीकरण से जुड़ा हुआ है।

शिक्षा में संप्रदायिकरण
कांग्रेस अध्यक्ष के अनुसार केंद्र सरकार का तीसरा जोर सांप्रदायिकरण पर है। उन्होंने कहा है कि इसका उद्देश्य राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी की दीर्घकालिक वैचारिक परियोजना को पूरा करना है, जिसमें शिक्षा प्रणाली के माध्यम से नफरत की खेती करना शामिल है। एनसीईआरटी की किताबों में कथित रूप से चैप्टर बदलने जाने पर सोनिया ने सरकार को निशाने पर लिया है। सोनिया ने कहा है कि स्कूली पाठ्यक्रम की रीढ़ माने जाने वाले (एनसीईआरटी) की पाठ्यपुस्तकों में भारतीय इतिहास को कथित तौर पर साफ-सुथरा बनाने के इरादे से संशोधन किया गया है। महात्मा गांधी की हत्या और मुगल भारत से जुड़े खंडों को पाठ्यक्रम से हटा दिया गया है। इसके अलावा, एक बार भारतीय संविधान की प्रस्तावना को पाठ्यपुस्तकों से हटा दिया गया था, जब तक कि जनता के विरोध के कारण सरकार को एक बार फिर से अनिवार्य रूप से इसे शामिल करने के लिए बाध्य होना पड़ा।

सोनिया ने लिखा है कि हमारे विश्वविद्यालयों में, हमने देखा है कि शासन-अनुकूल विचारधारा वाले पृष्ठभूमि के प्रोफेसरों को बड़े पैमाने पर नियुक्त किया गया है, भले ही उनके शिक्षण और विद्वता की गुणवत्ता हास्यास्पद रूप से खराब क्यों न हो। प्रमुख संस्थानों में नेतृत्व के पद – यहां तक कि भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान और भारतीय प्रबंधन संस्थान में भी, जिन्हें पंडित जवाहरलाल नेहरू ने आधुनिक भारत के मंदिर के रूप में वर्णित किया था – को दब्बू विचारधारा वाले लोगों के लिए आरक्षित किया गया है।

सोनिया ने कहा है कि पिछले एक दशक में, हमारी शिक्षा प्रणाली को सार्वजनिक सेवा की भावना से व्यवस्थित रूप से मुक्त कर दिया गया है। और शिक्षा नीति को जरूरतमंदों तक पहुंचने और उसकी क्वालिटी की किसी भी चिंता से फारिग कर दिया गया है। कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि केंद्रीकरण, व्यावसायीकरण और सांप्रदायिकता के लिए किये जा रहे इस प्रयास के परिणाम सीधे हमारे छात्रों पर पड़े हैं। भारत की सार्वजनिक शिक्षा प्रणाली का यह नरसंहार समाप्त होना चाहिए।

Shashi Kumar Keswani

Editor in Chief, THE INFORMATIVE OBSERVER