TIO, नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने सरकारी नौकरियों की भर्ती प्रक्रिया में महत्वपूर्ण फैसला दिया है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुआई में पांच जजों की पीठ ने निर्णय सुनाया कि एक बार भर्ती प्रक्रिया शुरू होने के बाद, उसमें नियमों का बदलाव अवैध होगा। कोर्ट का कहना है कि नियमों में बदलाव का प्रभाव केवल आगामी भर्तियों पर ही लागू हो सकता है, वर्तमान या चल रही भर्ती में इसका कोई असर नहीं होना चाहिए।
इस फैसले के पीछे मामला राजस्थान हाईकोर्ट से जुड़ा है। 2013 में अनुवादकों के पदों पर भर्ती के दौरान राज्य सरकार ने बीच में कुछ नियमों में बदलाव किया था, जिसमें यह कहा गया कि केवल वही उम्मीदवार नियुक्ति के लिए योग्य माने जाएंगे, जिन्होंने लिखित और मौखिक परीक्षा में 75 प्रतिशत से अधिक अंक प्राप्त किए हों। यह निर्णय उन अभ्यर्थियों पर लागू किया गया जिन्होंने पहले ही परीक्षा दे दी थी, जिसके कारण भर्ती प्रक्रिया में असमंजस की स्थिति उत्पन्न हो गई थी।
निष्पक्ष होनी चाहिए भर्ती प्रक्रिया
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में साफ किया कि भर्ती प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी और निष्पक्ष होनी चाहिए, ताकि सभी उम्मीदवारों को समान अवसर मिले। संविधान पीठ, जिसमें चीफ जस्टिस चंद्रचूड़, जस्टिस हृषिकेश रॉय, जस्टिस पामिदिघंटम श्री नरसिम्हा, जस्टिस पंकज मित्थल और जस्टिस मनोज कुमार मिश्र शामिल थे, ने माना कि किसी भी भर्ती प्रक्रिया में उम्मीदवारों की योग्यता या अर्हता को बीच में बदलना न्यायसंगत नहीं है।
इस निर्णय से यह भी स्पष्ट हुआ कि सरकारें किसी भी भर्ती प्रक्रिया में केवल उन्हीं नियमों का पालन करें जो प्रक्रिया शुरू होने से पहले लागू थे। उम्मीदवारों के अधिकारों और निष्पक्षता को सुरक्षित रखने के लिए, सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला एक मिसाल के रूप में देखा जा रहा है। अदालत ने यह भी कहा कि भर्ती में पारदर्शिता होनी चाहिए ताकि कोई भी पक्षपात या अनियमितता न हो।
कोर्ट ने कहा कि चयन प्रक्रिया का उद्देश्य यह देखना है कि सबसे उपयुक्त उम्मीदवार चुना जाए और सर्वोत्तम विकल्प के लिए विवेक की डिग्री नियोक्ता पर छोड़ी जानी आवश्यक है। इस प्रकार हमारे विचार में, नियमों के अभाव में नियुक्ति या भर्ती प्राधिकारी लिखित परीक्षा और साक्षात्कार जैसे बेंचमार्क के साथ एक प्रक्रिया तैयार कर सकता है।