TIO, स्पेशल रिपोर्ट

जबलपुर में प्राइवेट स्कूल्स, पुस्तक विक्रेताओं, और प्रकाशकों के खिलाफ जिला प्रशासन की कार्यवाही के बाद से ISBN नंबर को लेकर भ्रम और चर्चा बनी हुई है। जिला प्रशासन ने ISBN नंबर को किताब की असलियत का प्रमाण मानते हुए प्राइवेट स्कूल्स पर आरोप लगाया कि वे नकली ISBN वाली निम्नस्तरीय पाठ्यपुस्तकों से कमीशनखोरी कर रहे हैं। हाल ही में म.प्र. शासन, स्कूल शिक्षा विभाग ने सभी जिलों के कलेक्टरों को आदेश दिया कि फर्जी और डुप्लीकेट ISBN वाली पुस्तकों की जांच कर कार्रवाई करें। इस आदेश के बाद कलेक्टरों ने ISBN के आधार पर पुस्तकों की जांच शुरू कर दी है।

ISBN (International Standard Book Number) एक विशिष्ट पहचान संख्या है जो पुस्तकों के लिए उपयोग होती है। इसे ISO द्वारा पंजीकृत किया जाता है और भारत में इसे Raja Ram Mohan Roy National Agency for ISBN के माध्यम से नियंत्रित किया जाता है। यह संख्या पुस्तकों के अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बिक्री, डिजिटल माध्यम से बिक्री, और लाइब्रेरी में रखरखाव के लिए सहायक होती है।

महत्वपूर्ण बात यह है कि ISBN लेना कानूनी रूप से अनिवार्य नहीं है और यह किसी वैधानिक या कॉपीराइट सुरक्षा प्रदान नहीं करता है। ISBN सिस्टम के अनुसार, अगर किसी पुस्तक पर गलत ISBN छप जाता है तो नया नंबर लेकर त्रुटि को सुधार सकते हैं। गलत ISBN वाली पुस्तक को नकली मानना गलत है। वास्तव में, ISBN पुस्तक की वैधता या असली-नकली होने का प्रमाण नहीं है।

ISBN नंबर का मुख्य उद्देश्य पुस्तक से संबंधित जानकारी को बारकोड के रूप में प्रस्तुत करना है जिससे लाइब्रेरी में पुस्तकों का रखरखाव आसान हो। म.प्र. पाठ्यपुस्तक निगम की पुस्तकों पर भी कोई ISBN नहीं होता, जो राज्य सरकार का उपक्रम है। स्पष्ट है कि भारत में केंद्र या राज्य सरकार द्वारा ISBN नंबर छापने का कोई कानूनी निर्देश नहीं है। ISBN की अनुपस्थिति या त्रुटि का मतलब किताब नकली नहीं है। जिला कलेक्टरों द्वारा की गई कार्यवाही इसलिए आधारहीन मानी जा सकती है।

Shashi Kumar Keswani

Editor in Chief, THE INFORMATIVE OBSERVER