राजेश बादल 

कनाडा अपनी अपरिपक्व आंतरिक तथा विदेश नीति के कारण इन दिनों मुश्किल में है।उस पर चौतरफा वार हो रहे हैं और वह बचाव करने में असहाय  दिखाई देता है।प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रुडो फ़िलवक़्त काम चलाऊ प्रधानमंत्री के तौर पर काम कर रहे हैं।लेकिन वे अभी भी पूर्ण अधिकार संपन्न प्रधानमंत्री की तरह फ़ैसले ले रहे हैं।यह एक लोकतांत्रिक देश के लिए मान्य सिद्धांतों के अनुकूल नहीं है। ट्रुडो का नैतिक आधार इसीलिए कमज़ोर है।पहले कार्य काल में उन्होंने अवश्य ही कुछ बेहतर भूमिका निभाई थी।पर,दूसरे कार्यकाल में उन्होंने सिर्फ़ अपनी अलोकप्रियता के बीज बोए हैं।एक तरफ़ वे वैश्विक मंच पर लोकतान्त्रिक संस्थाओं का सदस्य होते हुए भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर घोषित आतंकवादी को अपनी संसद में श्रद्धांजलि देते हैं तो दूसरी तरफ़ संसार के सबसे बड़े लोकतंत्र की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या की घटना की झाँकी कनाडा की सड़कों पर निकालने की इजाज़त देते हैं।हत्या का समर्थन करने वालों को महिमामंडित करते हैं।अपने पिता और पूर्व प्रधानमंत्री पियरे ट्रुडो की तरह ही वे खालिस्तान को समर्थन दे रहे हैं।यह सुबूत है कि सियासत के बुनियादी उसूलों और अंतरराष्ट्रीय मामलों पर उनकी समझ अभी परिपक्व नहीं है।

इसका ताज़ा उदाहरण उनकी सरकार के बनाए जाँच आयोग की एक रपट है।क़रीब सप्ताह भर पहले इस रपट के अंश सामने आए हैं। इसमें आयोग साफ़ कहता है कि कनाडा में चल रही खालिस्तानी आंदोलन पर भारत की चिंताएँ जायज़ हैं। रिपोर्ट यह भी कहती है कि कनाडा में खालिस्तानी उग्रवाद से उत्पन्न खतरे के बारे में भारतीय चिंता के कुछ आधार वैध और उचित हैं। कनाडा के भीतर से ख़ालिस्तानी आतंकवादी भारत को निशाना बना कर खतरे से संबंधित गतिविधियों में लगे हुए हैं।वे भारत में उग्रवादी हरकतों को प्रोत्साहित करते हैं, उग्रवादी गतिविधियों का समन्वय करते हैं और भारत में हिंसा के लिए उकसाते हैं। वे खालिस्तानी गतिविधियों के लिए पैसा भेजते हैं और भारतीय नागरिकों को भड़काने का काम करते हैं।चूँकि वे कनाडा की नागरिकता हासिल कर चुके हैं इसलिए हिन्दुस्तान के हाथ बंध जाते हैं। आयोग की यह रिपोर्ट 123 पन्नों की है और स्पष्ट कहती है कि खालिस्तानी आतंकवादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में किसी भी विदेशी ताक़त का हाथ होने के प्रमाण नहीं मिले हैं।

अलबत्ता रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत खालिस्तान के लिए राजनीतिक प्रयास करने वालों और खालिस्तानी हिंसा करने वालों के बीच अंतर नहीं करता। यह एक अजीब सा तर्क है। दुनिया के नक़्शे पर अठहत्तर बरस पहले टुकड़े करने की साज़िश करने वालों को राजनीतिक कैसे माना जा सकता है ? ऐसे में प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रुडो का बयान उनके अपने देश में ही उपहास का बिंदु बन जाता है। ट्रुडो ने तो यहाँ तक कहा था कि भारतीय एजेंटों ने ही निज्जर को मारा है। कनाडा के पास इसके पुख़्ता सुबूत हैं। इसके बाद ट्रुडो के हुक्म पर भारतीय दूतावास ने छह भारतीय राजनयिकों को निष्कासित कर दिया था।जवाबी कार्रवाई में भारत ने भी वैश्विक परंपरा के मुताबिक़ ऐसा ही किया। पंजाब पुलिस के अनुसार अभी भी कनाडा में खालिस्तानी उग्रवादी लखबीर सिंह उर्फ लंडा, सतनाम सिंह उर्फ सत्ता नौशेरा,सतविंदर सिंह उर्फ गोल्डी बराड़ तथा लॉरेंस बिश्नोई, हैप्पी पासिया और बीकेआई चीफ हरविंदर सिंह रिंदा के हैंडलर सक्रिय हैं। इन्हें भारत अपने यहाँ लाकर उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई करना चाहता है। मगर,कनाडा सरकार सहयोग नहीं कर रही है।उल्टे अपने आयोग की रिपोर्ट पर सफाई देती है कि उस आयोग को तो निज्जर संबंधी मामलों की जाँच का अधिकार ही नहीं था।भारत में कनाडा के उच्चायोग ने गुरुवार को अधिकृत रूप से एक बयान में कहा यह बात कही।

ज़ाहिर है कि जाँच आयोग की इस रिपोर्ट ने ट्रुडो की छबि को धक्का पहुँचाया है। आज़ादी के बाद पहली बार कनाडा के साथ भारतीय संबंध इतने ख़राब दौर से गुज़रे हैं। हालाँकि आयोग की इस रिपोर्ट का एक हिस्सा विचित्र बात करता है।वह कहता है कि कनाडा के चुनावों में अनेक देश हस्तक्षेप किया करते हैं।आयोग इस तथ्य की जाँच भी कर रहा था।उसके अनुसार चीन,रूस,अमेरिका और भारत जैसे कई मुल्क़ कनाडा के चुनावों में दखल देते हैं।इस मासूम तर्क का क्या उत्तर दिया जा सकता है।आज के माहौल में कोई देश नहीं भी चाहे तो भी उसके नागरिक इतनी अधिक संख्या में होते हैं कि स्वाभाविक हस्तक्षेप जैसा वातावरण बन ही जाता है।इसके अलावा उस देश के अपने हित भी इस तथ्य का समर्थन करते हैं।मसलन चीन नेपाल, बांग्ला देश,मालदीव,श्रीलंका और पाकिस्तान के चुनावों में स्वाभाविक अपेक्षा करेगा कि वहाँ ऐसी सरकारें बनें ,जो भारत के प्रति असहयोग वाली हों। इसी प्रकार अमेरिका कनाडा,दक्षिण कोरिया,मेक्सिको,इज़रायल और फिलीपींस जैसे कई देशों में अपनी पिछलग्गू सरकारें बनवाना चाहेगा।रूस भी भारत,  पाकिस्तान, ईरान, उज़्बेकिस्तान, नॉर्वे,फ़िनलैंड,पोलैंड,अजरबेजान,बेलारूस और यूक्रेन में अपनी पसंद की हुकूमतों को क्यों नहीं लाना चाहेगा ?ताज़ा उदाहरण तो पाकिस्तान का है ,जो बांग्लादेश में इन दिनों खुलकर भारत विरोधी सरकार को समर्थन दे रहा है।ऐसे में कनाडा के आयोग की बात में कोई दम नहीं दिखाई देता।खुद कनाडा दशकों तक अमेरिका का पिछलग्गू रहा है और अमेरिका खुल्लमखुल्ला वहाँ के चुनाव में दख़ल देता रहा है।कनाडा की मूल आबादी कम है और उसका भौगोलिक क्षेत्रफल बहुत बड़ा है।इस कारण वह अन्य राष्ट्रों के नागरिकों को अपने यहाँ बसने की दावत देता रहा है। दूसरे देशों के लोग वहाँ रहेंगे तो अपने देशों से कुछ तो सरोकार रखेंगे। यह बात कनाडा के कामचलाऊ प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रुडो को क्यों याद नहीं रखनी चाहिए ?

Shashi Kumar Keswani

Editor in Chief, THE INFORMATIVE OBSERVER