TIO, नई दिल्ली

वाहनों से होने वाले प्रदूषण की रोकथाम को लेकर आप सरकार कितनी गंभीर रही इसका खुलासा कैग रिपोर्ट में हुआ है। सरकार का दावा था कि परिवहन विभाग में सब कुछ आॅनलाइन और आॅटोमैटिक है। इसके बावजूद वाहनों के फिटनेस की जांच मैनुअल तरीके से होती रही। इससे परिवहन विभाग के अधिकारियों की भूमिका भी संदिग्ध नजर आती है।

रिपोर्ट में बताया गया है कि राजधानी में प्रति वर्ष 4.1 लाख वाहनों की फिटनेस जांच की क्षमता होने के बावजूद केवल 12 फीसदी जांच स्वचालित फिटनेस जांच केंद्रों पर हुई। शेष जांच मैनुअल केंद्रों पर की गई, जहां केवल दृश्य निरीक्षण पर निर्भरता रही। यह निरीक्षण प्रक्रिया तकनीकी रूप से अपर्याप्त थी और निरीक्षण अधिकारी की व्यक्तिगत राय पर आधारित थी। जबकि आॅटोमैटिक फिटनेस जांच में वाहन के उत्सर्जन स्तर, ब्रेकिंग सिस्टम और अन्य तकनीकी पहलुओं की सटीक जांच होती है। यह प्रक्रिया प्रदूषण नियंत्रण के लिए महत्वपूर्ण हैं।

रिपोर्ट में यह भी पाया गया है कि 2014-15 से 2018-19 के दौरान फिटनेस जांच के लिए बड़ी संख्या में वाहन जांच के लिए प्रस्तुत नहीं हुए। 2018-19 में 64 फीसदी वाहन फिटनेस जांच से बाहर रहे। इसके बावजूद इन वाहनों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई। यह भी पता चला है कि आॅटोमैटिक फिटनेस जांच इकाइयों की क्षमता प्रतिदिन 167 वाहनों की जांच करने की थी, लेकिन 2020-21 में औसत केवल 24 वाहनों की जांच हुई। साथ ही, 60 फीसदी फिटनेस प्रमाणपत्र उन वाहनों को जारी किए गए जिनकी उत्सर्जन जांच ही नहीं की गई थी।

पीयूसी जारी करने में अनियमितताएं
प्रदूषण नियंत्रण प्रमाणपत्र (पीयूसी) जारी करने में भी भारी अनियमितताएं बरती गईं। रिपोर्ट में बताया गया है कि 10 अगस्त 2015 से 31 अगस्त 2020 के बीच 22.14 लाख डीजल वाहनों की जांच हुई, लेकिन 24 फीसदी वाहनों के लिए जांच मूल्य दर्ज नहीं किए गए। 4,007 डीजल वाहन जिनके उत्सर्जन मूल्य अनुमत सीमा से अधिक थे, तब भी पीयूसी जारी किए गए। 65.36 लाख वाहनों को पीयूसी जारी किया गया, लेकिन 1.08 लाख वाहन, जो कार्बन मोनोआॅक्साइड और हाइड्रोकार्बन की निर्धारित सीमा से अधिक उत्सर्जन कर रहे थे, उन्हें भी पीयूसी जारी किया गया। 7,643 मामलों में एक ही समय पर एक से अधिक वाहनों की जांच दिखाई गई, जो व्यावहारिक रूप से असंभव है। वहीं, 76,865 मामलों में जांच और प्रमाणपत्र जारी करने में केवल एक मिनट का समय लगा, जो तकनीकी रूप से संभव ही नहीं है।

कैग रिपोर्ट में नहीं मिला भ्रष्टाचार का आरोप : आप
कैग रिपोर्ट को लेकर आप ने भाजपा पर निशाना साधा है। आप ने कहा कि इस रिपोर्ट में भ्रष्टाचार की एक लाइन नहीं मिली है। रिपोर्ट के अनुसार आॅड-ईवन से लेकर प्रदूषण को रोकने के लिए आप सरकार ने अलग-अलग कदम उठाए। दिल्ली देश की राजधानी है, लेकिन प्रदूषण का असर पूरे उत्तर भारत में होता है।

पूर्व पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने कहा कि दिल्ली में 2016 में 365 में से केवल 109 अच्छी हवा के दिन थे। आप सरकार ने चौतरफा काम किया। इससे 2024 में अच्छे दिनों की संख्या को 208 तक पहुंच गई। भाजपा सरकार को अच्छे दिनों की संख्या 209 से 309 तक पहुंचानी चाहिए। पूरी दुनिया में आॅड ईवन फेल हुआ, लेकिन दिल्ली इकलौता शहर है, जहां पर ये सफल हुआ। व्हीकल पॉल्यूशन को कम करने के लिए हमने आॅड ईवन के अलावा दिल्ली में रेड लाइट आॅन गाड़ी आॅफ कार्यक्रम चलाया।

पूरे देश में दिल्ली पहला राज्य है, जहां 2000 ई-बसें सड़कों पर उतरीं। भाजपा के नेता कहते हैं कि केंद्र की वजह से ये बसें आईँ। ऐसा है तो फिर हरियाणा और उत्तर प्रदेश में ऐसी बसें क्यों नहीं आईं। दिल्ली में आप सरकार बनी तो 20 फीसदी ग्रीन बेल्ट थी, जजे हमने 23 फीसदी तक पहुंचाया। स्मॉग टावर की जहां तक बात है, तो दिल्ली में सुप्रीम कोर्ट के आदेश से भाजपा की केंद्र सरकार ने आनंद विहार में स्मॉग टॉवर लगाया और एक दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार ने कनॉट प्लेस में स्थापित किया।

एक-दूसरे के भ्रष्टाचार छिपा रहीं भाजपा-आप : कांग्रेस
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष देवेंद्र यादव ने दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि वायु प्रदूषण दिल्ली के लिए विकराल समस्या बन चुका है, लेकिन भाजपा व आप जिम्मेदारी लेने से बच रही हैं। विपक्ष की नेता आतिशी सदन में चर्चा से नदारद रहती हैं और पूर्व मुख्यमंत्री केजरीवाल दिल्ली से लगातार गायब रहते हैं। कैग रिपोर्ट में आप सरकार के भ्रष्टाचार की पोल खुल गई, लेकिन भाजपा ने कोई कार्रवाई नहीं की। इससे स्पष्ट है कि दोनों पार्टियां एक-दूसरे के भ्रष्टाचार को छुपाने में लगी हुई हैं। राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम को लेकर नई कैग रिपोर्ट जारी होनी चाहिए, ताकि प्रदूषण नियंत्रण के नाम पर हुए घोटालों का पदार्फाश हो सके। केजरीवाल सरकार ने दिल्ली में प्रदूषण को एक-तिहाई तक कम करने और दो करोड़ पेड़ लगाने का वादा किया था, लेकिन हकीकत में वन क्षेत्र घट रहा है। शीला दीक्षित सरकार के कार्यकाल में दिल्ली का वन क्षेत्र 1.7 प्रतिशत से बढ़कर 20.08 प्रतिशत हुआ था, जबकि केजरीवाल सरकार के दस साल के कार्यकाल में यह वृद्धि केवल 5 प्रतिशत रही।

Shashi Kumar Keswani

Editor in Chief, THE INFORMATIVE OBSERVER