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मध्य प्रदेश में पिछड़ा वर्ग यानी ओबीसी को नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव में आरक्षण मिल गया, लेकिन इससे आंकड़े नहीं बदलेंगे। लगभग तय है कि आरक्षण 14 प्रतिशत ही होगा। तो क्या आंकड़ों की तरह राजनीतिक समीकरण भी अप्रभावित होंगे? बिलकुल नहीं, बल्कि पूरे केंद्र में ही यही 14 प्रतिशत आरक्षण का खेल है। कांग्रेस के 27 प्रतिशत आरक्षण की मांग के जवाब में जब भाजपा सरकार ने 35 प्रतिशत आरक्षण की मांग पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग के माध्यम से उठा दी थी, तभी संकेत मिलने लगे थे कि हकीकत से अधिक तपिश दावों में होगी।

अर्थात दोनों दलों को संकेत मिल चुके थे कि यदि ओबीसी को आरक्षण मिला भी तो 50 प्रतिशत की बाध्यता में ये 14 प्रतिशत से अधिक होने वाला नहीं है। ऐसे में हकीकत से आगे बढ़कर दावों की नौबत आ गई। हालांकि कांग्रेस दावों के मामले में ही नहीं, बल्कि आरोप-प्रत्यारोप में भी पीछे छूटती दिखी। यदि कांग्रेस अब इसका विरोध करती है, तो पार्टी के लिए सियासी जोखिम से भी इन्कार नहीं किया जा सकता है। भाजपा पहले से इन चुनावों में ओबीसी को आरक्षण में बाधा और चुनाव में देरी का ठीकरा कांग्रेस पर फोड़ती रही है। इधर, कांग्रेस ने तथ्यों के आधार पर प्रतिक्रिया में खास दिलचस्पी नहीं दिखाई।

भाजपा की स्थिति ग्रामीण क्षेत्रों की अपेक्षा शहरी क्षेत्रों में बेहतर मानी जाती रही है। ऐसे में प्रबल संभावना है कि पहले नगरीय निकायों के चुनाव कराए जाएं, इसके बाद पंचायतों के लिए चुनाव हों। इस स्थिति को लेकर कांग्रेस की तैयारियों की चुनौती बढ़ जाएगी। चूंकि नगरीय निकाय और पंचायत के चुनाव टलते-टलते विधानसभा चुनाव के करीब आ गए हैं, तो इसका प्रभाव मिशन 2023 को भी प्रभावित करेगा ही। ऐसे में भाजपा और कांग्रेस चुनाव तो नगरीय निकायों का लड़ेंगी, लेकिन नजरें विधानसभा चुनाव पर होंगी।

 भारतीय जनता पार्टी के लिए मप्र में ओबीसी वोट बैंक को बरकरार रखने के लिए ओबीसी आरक्षण को बरकरार रखना बेहद जरूरी था। सुप्रीम कोर्ट द्वारा ओबीसी आरक्षण के बिना पंचायत और नगरीय निकाय चुनाव कराने के मामले में कांग्रेस सारा ठीकरा शिवराज सरकार पर फोड़ रही थी। लेकिन, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की सक्रियता ने पासा पलट दिया। चौहान खुद दिल्ली गए, सालीसिटर जनरल तुषार मेहता से मिले, तमाम कानूनविदों से राय ली। ओबीसी से संबंधित मामलों की सारी कमान नगरीय विकास मंत्री भूपेन्द्र सिंह को सौंपी।

मुख्यमंत्री द्वारा विधि मंत्री डा. नरोत्तम मिश्रा और भूपेन्द्र सिंह को लेकर दिल्ली में की गई कानूनी कवायद का ही परिणाम रहा कि भाजपा ने सुप्रीम कोर्ट से इस लड़ाई को जीत लिया। यह जीत भाजपा के लिए एक संजीवनी की तरह है। गौरतलब है कि मुख्यमंत्री ने ओबीसी आरक्षण की लड़ाई लड़ने के लिए अपनी विदेश यात्रा भी रद कर दी। जिस दिन से सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया था, उसके बाद से मुख्यमंत्री लगातार कानूनी राय लेते रहे।

विधानसभा से पारित किया था संकल्प विधानसभा सत्र के दौरान भी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा था कि हम ओबीसी आरक्षण के बिना पंचायत और नगरीय निकाय चुनाव नहीं करवाएंगे। कोई हमारा साथ देगा तो उसके साथ, नहीं देगा तो उसके बिना और कोई विरोध करेगा तो उसके बिना हमारा ओबीसी को आरक्षण दिलाने का अभियान जारी रहेगा।

 

Shashi Kumar Keswani

Editor in Chief, THE INFORMATIVE OBSERVER