शशी कुमार केसवानी
रमजान महीने के दौरान भोपाल के बाजार सारी रात गुलजार दिखाई दे रहे हैं। शहर का चौक बाजार, इब्राहिमपुरा, नदीम रोड, लखेरापुरा, इतवारा, पुराना कबाड़खाना, बुधवारा, काजीकैंप व अन्य कई ऐसे क्षेत्र हैं जहां पर इन दिनों देर रात लोगों की आवाजाही जारी रहती है। इतना ही नहीं, यहां पर तो पूरी रात रोशन रहती है।
भोपाल शहर की पटियेबाजी कभी दुनियाभर में मशहूर हुआ करती थी। इन्हीं पटिएबाजों से न जाने कितने सूरमा भोपाली भी निकले। इन सब के बावजूद यह बात अलग है कि गंगा-जमुनी तहजीब के लिए भी इस शहर की दुनियाभर में एक अलग पहचान है। सियासत से लेकर कारोबारी और दोस्ताना रिश्ते निभाई भी इस शहर में पटियों पर ही पूरी हुआ करती थी। कुछ क्षेत्रों में अब भी देर रात तक पटिएबाजी चलती रहती है। बातें सुनकर ऐसा लगता है कि अगला प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक इन्हीं पटियों पर तय हो जाएगा। हालांकि इन पटिएबाज लोगों को कई लोग बतौलेबाज भी कहते हैं। यहां पर यह भी बता दें कि भोपाल के बतौले दुनियाभर में मशहूर हैं। हालांकि कालांतर में ये संस्कृति कम तो हो गई, लेकिन अब देर रात की जगाई और बंद बाजारों की दुकानों पर बैठकर बातों के लंबे सिलसिले अब भी बदस्तूर जारी है। इसी नजरिए के चलते रमजान महीने के दौरान शहर के बाजार सारी रात गुलजार दिखाई देते हैं। खरीद फरोख्त, तफरीह, खानपान से लेकर रतजगे के किस्से अब बाजारों में पूरे होते दिखाई देते हैं। यह बात अलग है कि भोपाल की संस्कृति की बात ही अलग है। ईद हो या फिर दिवाली हो यह पता नहीं चलता कि त्योहार हिन्दू का है या मुसलमान का। सभी लोग उत्साह से भरे होते हैं। इस दौरान दोनों ही मजहब के लोग धंधे के जरिए जमकर माल कमाते हैं। पर एक-दूसरे का ध्यान भी खूब रखते हैं। दुकानों पर रखा सालभर पुराना सामान जो कभी नहीं बिकता वह रमजान के महीने में भी बिक जाता है। यही तो खूबी है भोपाल के लोगों की जो कचरे में से भी खूबसूरत चीजें बना लेते हैं।
रात भर गुलजार रहता है पुराना भोपाल
शहर का चौक बाजार, इब्राहिमपुरा, नदीम रोड, लखेरापुरा आदि इन दिनों देर रात लोगों की आवाजाही से आबाद होना शुरू होता है। यहां आमद का सिलसिला अल सुबह सेहरी के वक्त तक जारी रहता है। जहां चौक बाजार और नदीम रोड कपड़े, सौंदर्य प्रसाधन और घरेलू सजावट से आबाद दिखाई देता है। वहीं, लखेरापुरा चप्पल जूतों के खरीदारों की भीड़ समेटे रहता है। लोहा बाजार बच्चों के कपड़ों की डिमांड पूरी करता दिखाई दे रहा है। इसी तरह इब्राहिमपुरा मैन रोड और सुल्तानिया रोड पर रेडीमेड गारमेंट की सेल और किफायती दाम पर मिलने वाले जूते चप्पल की दुकानों से सजा हुआ है। खास बात यह है कि इन बाजारों में देर रात तक सिर्फ मुस्लिम समाज के लोग ही नहीं, बल्कि अन्य समाजों के लोग दूर दराज से आकर देर रात तक खरीदी करते हैं। उनके लिए यह अलग वातावरण रहता है। इसके साथ ही थोड़ी चटोरपंती भी कर लेते हैं। देर रात तक होटलों पर तरह-तरह के व्यंजन और उपलब्ध रहते हैं। कुछ सालों से भोपाल की सड़कों रोशनी से इस तरह सजा देते हैं जैसे कोई दुल्हन सजी हो। समझ नहीं आता कि ईद आने वाली है या दिवाली का मौसम है। यह नई परपंरा शहर को विरासत में मिली है। जो अपने-आप में पूरे देश के लिए मिसाल बनेगी। इस लाइटिंग को देखने कई लोग दूर-दूर से आते हैं। वे आनंदित होकर एक नई प्रेरणा से भरकर जाते हैं।
अब बदलता जा रहा है पुराने जायकों का स्वाद
किसी जमाने में शहर की चटोरी गली नॉन वेज खानपान के लिए मशहूर हुआ करती थी। लेकिन हमें कभी पसंद नही आई। सस्ता और हल्का खाना मेरे हिसाब से सेहत के लिए ठीक नहीं रहता। यही कारण था कि धीरे धीरे यहां दुकानों का वजूद सिमटता गया। अब यह चारबत्ती चौराहे पर कुछ आबाद हुआ है और यहां कुछ गिनती की दुकानें ही हैं, जो स्वाद के शौकीनों को सारी रात अपनी तरफ आकर्षित करती रहती हैं। चटोरी गली का पर्याय बन चुके काजी कैंप में इन दिनों खानपान के शौकीनों को कुछ नया मुहैया करा दिया है। बिरियांन, चिकन, फिश और मटन विभिन्न आइटम के साथ पान, बीड़ी, गुटके की तलब लिए लोगों यहां सारी रात जुटे रहते हैं। बताया जाता है कि क्षेत्र की दुकानों पर रमजान माह में शटर बंद नहीं होता। यहां तीन शिफ्ट में दुकानें आबाद हो रही हैं। यहां बताना यह जरूरी है कि खाना का स्वाद वैसा नहीं रहता, जो भोपाल का असल खाना है। पर आजकल के युवाओं को खाना पसंद आता है। पर हमें तो याद आते हैं पुराना मदीना होटल, अफगान होटल, डिलाइट होटल, बाशिद भाई की चाय (गाली के साथ) जहां का स्वाद अब भी दिलो दिमाग में बसा हुआ है। अब तो चटपटा खाना हो गया है, लेकिन स्वाद वैसा नहीं रहा है। पर नए शौकीनों के लिए यह अब भी मजेदार रहता है।
ये है भोपाल मेरी जान
बदली हुई है दिनचर्या सारी रात बाजार आबाद करने वाला शहर सुबह सेहरी और फजिर की नमाज से फारिग होकर सोता रहता है। इसके बाद इनके जागने का समय देर दोपहर जौहर की नमाज के वक्त होता है। कामकाजी लोगों और सरकारी नौकरी पेशा लोगों को छोड़कर अधिकांश लोग इसी दिनचर्या के साथ दिन पूरा करते हुए शाम को इफ्तार के लिए बाजारों में होते हैं। इसके बाद तरावीह की नमाज अदा करते ही इनके नए दिन की शुरूआत बाजारों में होती है। पर इतवार के दिन शहर ऐसा भरा रहता है, जैसे लूट का माल बिक रहा हो। सुबह से लेकर रात तक सारे बाजार जमकर गुलजार रहते हैं। साथ ही साथ यह मजेदार बात है कि कई बार चौक में जामा मस्जिद, अलविदा जुमे की नमाज में दरियां जब भी कम पड़ी तो दुकानदारों ने अपनी दुकान से नए कपड़ों के थान रोडों पर बिछा दिए। इसलिए तो भोपाल सिर्फ पटियों का ही नहीं एक अलग सभ्यता और संस्कृति से बना शहर है। जहां पर हर जाति, हर धर्म का सभी मिलकर सबकी भावनाओं का ध्यान रखते हैं। चाहे वह गैस त्रासदी का जमाना हो, या फिर कोरोनाकाल हो। इसके अलावा चाहे दिवाली हो या फिर रमजान का महीना इस शहर का भाई चारा देखने काबिल होता है। देश में अपने-आप में एक मिसाल कायम करने वाला भोपाल सचमुच में एक अद्भुत शहर है। चांद रात को रात भर बाजार सजा रहता है और ऐसी हालत रहती है कि कही पैर रखने की जगह नहीं मिलती। तकियों से लेकर रजाइयों तक की खरीददारी इस तरह होती है, मानो कल से बाजार लगेगा ही नहीं। रात भर चौक और लखेरापुरा बाजार में पैर रखने की जगह नहीं मिलती। पुलिस व्यवस्था भी जबरदस्त रहती है। चलने की तो जरूरत ही नहीं पड़ती, धक्कों में आगे बढ़ते चले जाएंगे। कानों में आवाज जरूर गूंजती रहेगी। पांच सौ की सात साड़ियां, तीन सौ रुपए में दो लहंगे, 35 रुपए में पांच पीस, तीन सौ रुपए की दो जींस, 200 की तीन टी शट ऐसे अनेकों तरह की आवाजें जो शायद आपने कभी न सुनी हों और न ही उस तरह के सामान बिकते देखें। तो फिर चांद रात को चले आइए हमारे चौक बाजार में। या फिर किसी भी बाजार में शहर पूरा इत्र की खुशबू से महकता हुआ मिलेगा। आपको एक अलग आनंद का अनुभव होगा और हां साथ में धक्कों का आनंद और भीड़ के अंदर खरीददारी करने का हुनर सीखने का इससे सुनहरा अवसर कहीं और नहीं मिलेगा। ये है भोपाल मेरी जान…