TIO, मुंबई
गौतम गंभीर के कोच बनने के बाद से भारतीय टीम का प्रदर्शन कुछ खास नहीं रहा है। खिलाड़ियों के खराब फॉर्म और टीम इंडिया के लचर प्रदर्शन ने भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) को सख्त फैसले लेने पर मजबूर कर दिया है। बोर्ड कथित तौर पर फिटनेस टेस्ट के पुराने नियमों को वापस लाने का इच्छुक है जो विराट कोहली की कप्तानी के दिनों में लागू थे। बोर्ड ने खिलाड़ियों के कार्यभार और यात्रा को देखते हुए यो-यो फिटनेस टेस्ट की अनिवार्यता को समाप्त कर दिया था। हालांकि, अब एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि नियम को वापस लाया जा सकता है।
फिटनेस मानदंडों पर ध्यान केंद्रित करना चाह रहा बीसीसीआई
टाइम्स आॅफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, बीसीसीआई की मेडिकल टीम को व्यस्त कार्यक्रम के कारण खिलाड़ियों को लग रही चोट को रोकने पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय चयन के लिए फिटनेस मानदंडों पर वापस जाने के लिए कहा गया है। यो-यो टेस्ट मैंडेट को पिछले टीम मैनेजमेंट द्वारा चोटों की संख्या को कम करने के लिए हटा दिया गया था, लेकिन अब इस पर बोर्ड यू-टर्न ले सकता है।
खिलाड़ियों ने नियमों में नरमी को हल्के में ले लिया
रिपोर्ट के मुताबिक, ‘बोर्ड ने खिलाड़ियों के प्रति नरमी बरती थी क्योंकि वे ज्यादातर यात्रा पर होते थे। ध्यान सिर्फ चोट की रोकथाम पर केंद्रित हो गया था। इसे कुछ खिलाड़ियों ने हल्के में ले लिया है। ऐसा विचार किया जा रहा है कि फिटनेस के कुछ मानदंड को फिर से लागू करने की जरूरत है ताकि खिलाड़ी आत्ममुग्ध न हों।’ बीसीसीआई कथित तौर पर टीम के काम करने के तरीके में कुछ और बदलाव करना चाह रहा है, जिसमें परिवार के सदस्यों और खिलाड़ियों की पत्नियों के साथ रहने पर भी अंकुश लगाया जा सकता है।
बोर्ड ने फॉर्म में वापसी के लिए कुछ और नियम बनाए
बोर्ड अधिकारियों का मानना है कि विदेशों में होने वाले मैचों के दौरान परिवार की मौजूदगी से खिलाड़ियों का ध्यान भंग हो सकता है और इससे उनके प्रदर्शन पर असर पड़ सकता है। इसके अतिरिक्त, बीसीसीआई ने एक नियम और पेश किया है जिसमें सभी खिलाड़ियों को एकसाथ यात्रा करने को कहा गया है। यह बदलाव हाल के वर्षों में अलग से यात्रा करने का विकल्प चुनने वाले कुछ खिलाड़ियों को ध्यान में रखकर बनाया गया है, ताबिक टीम में एकजुटता बनी रहे। अलग-अलग यात्रा करने को बोर्ड टीम सामंजस्य और अनुशासन के लिए नुकसानदायक मान रहा है।
यो-यो टेस्ट क्या है?
यो-यो टेस्ट बीप टेस्ट जैसा होता है। यह एक रनिंग टेस्ट होता है जिसमें दो सेटों के बीच दौड़ लगानी होती है।
दो सेटों के बीच की दूरी 20 मीटर होती है। यह करीब-करीब क्रिकेट पिच की लंबाई के बराबर है।
इस दौरान खिलाड़ियों को एक सेट से दूसरे सेट तक दौड़ना होता है और फिर दूसरे सेट से पहले सेट तक आना होता है।
एक बार इस दूरी को तय करने पर एक शटल पूरा होता है।
टेस्ट की शुरूआत पांचवें लेवल से होती है। यह 23वें लेवल तक चलता रहता है।
हर एक शटल के बाद दौड़ने का समय कम होते रहता है, लेकिन दूरी में कमी नहीं होती है।
भारतीय खिलाड़ियों के यो-यो टेस्ट में 23 में से 16.5 स्कोर लाना होता है।
यो-यो टेस्ट का आविष्कार किसने किया था?
डेनमार्क के फुटबॉल फिजियोलॉजिस्ट डॉ जेन्स बैंग्सबो ने 1990 के दशक में इंटरमिटेंट रिकवरी टेस्ट (यो-यो टेस्ट) की शुरूआत की थी। परीक्षण शुरू में फुटबॉलरों पर उनकी समग्र फिटनेस और एरोबिक क्षमता में सुधार के लिए किया गया था। धीरे-धीरे अन्य खेलों ने यो-यो टेस्ट को अपनाना शुरू कर दिया।
भारतीय क्रिकेट टीम में यो-यो टेस्ट कब शुरू किया गया था?
पूर्व भारतीय क्रिकेट टीम के स्ट्रेंथ और कंडीशनिंग कोच शंकर बसु ने 2017 में भारत के श्रीलंका दौरे से पहले राष्ट्रीय टीम में यो-यो टेस्ट की शुरूआत की थी।