नेहा पंवार, दिल्ली

हमारी ब्रा के स्ट्रैप देखकर तुम्हारी नसें क्यों तन जाती हैं ‘भाई’?
अरे! तुमने ब्रा ऐसे ही खुले में सूखने को डाल दी?’ तौलिये से ढंको इसे। ऐसा एक मां अपनी 13-14 साल की बेटी को उलाहने के अंदाज में कहती है।
‘तुम्हारी ब्रा का स्ट्रैप दिख रहा है’, कहते हुए एक लड़की अपनी सहेली के कुर्ते को आगे खींचकर ब्रा का स्ट्रैप ढंक देती है।
‘सुनो! किसी को बताना मत कि तुम्हें पीरियड्स शुरू हो गए हैं।’
‘ढंग से दुपट्टा लो, इसे गले में क्यों लपेट रखा है?’
‘लड़की की फोटो साड़ी में भेजिएगा।‘
‘हमें अपने बेटे के लिए सुशील, गोरी, खूबसूरत, पढ़ी-लिखी, घरेलू लड़की चाहिए।
‘नकद कितना देंगे? बारातियों के स्वागत में कोई कमी नहीं होनी चाहिए।‘
‘दिन भर घर में रहती हो। काम क्या करती हो तुम? बाहर जाकर कमाना पड़े तो पता चले।‘
‘मैं नौकरी कर रहा हूं ना, तुम्हें बाहर खटने की क्या जरूरत? अच्छा, चलो ठीक है, घर में ब्यूटी पार्लर खोल लेना।‘
‘बाहर काम करने का यह मतलब तो नहीं कि तुम घर की जिम्मेदारियां भूल जाओ। औरत होने का मतलब समझती हो तुम?’
‘तुम थकी हुई हो तो मैं क्या करूं? मैं सेक्स नहीं करूंगा क्या?’
‘कैसी बीवी हो तुम? अपने पति को खुश नहीं कर पा रही हो? बिस्तर में भी मेरी ही चलेगी।’
‘तुम्हें ब्लीडिंग क्यों नहीं हुई? वरजिन नहीं हो तुम?’
‘तुम बिस्तर में इतनी कंफर्टेबल कैसे हो? इससे पहले कितनों के साथ सोई हो?’
‘तुम क्यों प्रपोज करोगी उसे? लड़का है उसे फर्स्ट मूव लेने दो। तुम पहल करोगी तो तुम्हारी इमेज खराब होगी।‘
‘नहीं-नहीं, लड़की की तो शादी करनी है। हां, पढ़ाई में अच्छी है तो क्या करें, शादी के लिए पैसे जुटाना ज्यादा जरूरी है। बेटे को बाहर भेजेंगे, थोड़ा शैतान है लेकिन सुधर जाएगा।’
‘इतनी रात को बॉयफ्रेंड के साथ घूमेगी तो रेप नहीं होगा?’
‘इतनी छोटी ड्रेस पहनेगी तो रेप नहीं होगा।‘
‘सिगरेट-शराब सब पीती है, समझ ही गए होंगे कैसी लड़की है।‘
‘पहले जल्दी शादी हो जाती थी, इसलिए रेप नहीं होते थे।‘
‘लड़के हैं, गलती हो जाती है।’
‘फेमिनिजम के नाम पर अश्लीलता फैला रखी है। 10 लोगों के साथ सेक्स करना और बिकीनी पहनना ही महिला सशक्तीकरण है क्या?’
‘मेट्रो में अगल कोच मिल तो गया भई! अब कितना सशक्तीकरण चाहिए?’
‘क्रिस गेल ने तो अकेले सभी बोलर्स का ‘रेप’ कर दिया।’
लंबी लिस्ट हो गई ना? इरिटेट हो रहे हैं आप। सच कहूं तो मैं भी इरिटेट हो चुकी हूं यह सुनकर कि मैं ‘देश की बेटी’, ‘घर की इज्जत’, ‘मां’ और ‘देवी’ हूं। नहीं हूं मैं ये सब। मैं इंसान हूं आपकी तरह। मेरे शरीर के कुछ अंग आपसे अलग हैं इसलिए मैं औरत हूं। बस, इससे ज्यादा और कुछ नहीं। सैनिटरी नैपकिन देखकर शर्म आती है आपको? इतने शर्मीले होते आप तो इतने यौन हमले क्यों होते हम पर? ओह! ब्रा और पैंटी देखकर भी शर्मा जाते हैं आप या इन्हें देखकर आपकी सेक्शुअल डिजायर्स जग जाती हैं, आप बेकाबू हो जाते हैं और रेप कर देते हैं।
अच्छा, मेरी टांगें देखकर आप बेकाबू हो गए। आप उस बच्ची के नन्हे-नन्हे पैर देखकर भी बेकाबू हो गए। उस बुजुर्ग महिला के लड़खड़ाकर चलते हुए पैरों ने भी आपको बेकाबू कर दिया। अब इसमें भला आपकी क्या गलती! कोई ऐसे अंग-प्रदर्शन करेगा तो आपका बेकाबू होना लाजमी है। यह बात और है कि आपको बनियान और लुंगी में घूमते देख महिलाएं बेकाबू नहीं होतीं। लेकिन आप तो कह रहे थे कि स्त्री की कामेच्छा किसी से तृप्त ही नहीं हो सकती? वैसे कामेच्छा होने में और अपनी कामेच्छा को किसी पर जबरन थोपने में अंतर तो समझते होंगे आप?
मेरे कुछ साथी महिलाओं द्वारा आजादी की मांग को लेकर काफी ‘चिंतित’ नजर आ रहे हैं। उन्हें लगता है कि महिलाएं ‘स्वतंत्रता’ और ‘स्वच्छंदता’ में अंतर नहीं कर पा रही हैं। उन्हें डर है कि महिलाएं पुरुष बनने की कोशिश कर रही हैं और इससे परिवार टूट रहे हैं, ‘भारतीय अस्मिता’ नष्ट हो रही है। वे कहते हैं कि नारीवाद की जरूरतमंद औरतों से कोई वास्ता ही नहीं है। वे कहते हैं सीता और द्रौपदी को आदर्श बनाइए। कौन सा आदर्श ग्रहण करें हम सीता और द्रौपदी से? या फिर अहिल्या से?
छल इंद्र करें और पत्थर अहिल्या बने, फिर वापस अपना शरीर पाने के लिए राम के पैरों के धूल की बाट जोहे। कोई मुझे किडनैप करके के ले जाए और फिर मेरा पति यह जांच करे कि कहीं मैं ‘अपवित्र’ तो नहीं हो गई। और फिर वही पति मुझे प्रेग्नेंसी की हाल में जंगल में छोड़ आए, फिर भी मैं उसे पूजती रहूं। या फिर मैं पांच पतियों की बीवी बनूं। एक-एक साल तक उनके साथ रहूं और फिर हर साल अपनी वर्जिनिटी ‘रिन्यू’ कराती रहूं ताकि मेरे पति खुश रहें। यही आदर्श सिखाना चाहते हैं आप हमें?
चलिए अब कपड़ों की बात करते हैं। आप एक स्टैंडर्ड ‘ऐंटी रेप ड्रेस’ तय कर दीजिए लेकिन आपको सुनिश्चित करना होगा कि फिर हम पर यौन हमले नहीं होंगे। बुरा लग रहा होगा आपको? मैं पुरुषों को जनरलाइज कर रही हूं। हर पुरुष ऐसा नहीं होता। बिल्कुल ठीक कहा आपने। जब आप सब एक जैसे नहीं हैं तो हमें एक ढांचे में ढालने की कोशिश क्यों करते हैं? आपके हिसाब से दो तरह की लड़कियां होती हैं, एक वे जो रिचार्ज के लिए लड़कों का ‘इस्तेमाल’ करती हैं और एक वे जो ‘स्त्रियोचित’ गुणों से भरपूर होती हैं यानी सीता, द्रौपदी टाइप। बीच का तो कोई शेड ही नहीं है, है ना?
महिलाओं की शिक्षा और आर्थिक आजादी बहुत ही बुनियादी चीजें हैं। ये बुनियादी हक भी उन्हें आपकी दया की भीख में नहीं मिले हैं। उन्हें लड़ना पड़ा है खुद के लिए और उनका साथ दिया है ईश्वर चंद्र विद्यासागर, राजा राम मोहन राय और ज्योतिबा फुले जैसे पुरुषों ने।
सच बताइए, आप डरते हैं ना औरतों को इस तरह बेफिक्र होकर जीते देखकर? आप बर्दाश्त नहीं कर पाते ना कि कोई महिला बिस्तर में अपनी शर्तें कैसे रख सकती है? आपका इगो हर्ट होता है जब महिला खुद को आपसे कमतर नहीं समझती। फिर आप उसे सौम्यता और मातृत्व जैसे गुणों का हवाला देकर बेवकूफ बनाने की कोशिश करने लगते हैं। सौम्यता और मातृत्व बेशक श्रेष्ठ गुण में आते हैं। तो आप भी इन्हें अपनाइए ना जनाब, क्यों अकेले महिलाओं पर इसे थोपना चाहते हैं? क्या कहा? मर्द को दर्द नहीं होता? कम ऑन। आप जैसे लोग ही किसी सरल और कोमल स्वभाव वाले पुरुष को देखकर उसे ‘गे’ और ‘छक्का’ कहकर मजाक उड़ाते हैं। वैसे गे या ‘छक्का’ होने में क्या बुराई है? जो आपसे अलग हैं वह आपसे कमतर? क्या बकवास लॉजिक है। सानिया मिर्जा की स्कर्ट पर आपत्ति जताने वालों से और उम्मीद भी क्या कर सकते हैं! जिस दिन मैं बेखौफ सड़कों पर घूम सकूंगी, अपनी मर्जी का वह हर काम कर पाऊंगी… जब तुम मुझे यह विश्वास दिला दोगे की एक औरत भी तुम्हारे बराबर ही है वह तुमसे कमजोर नहीं है जिस दिन तुम अपनी मानसिकता सुधरोगे जिस दिन मुझे यह यकीन हो जाएगा कि इस पुरुष प्रधान देश में मुझे मेरा हक मिल गया है उस दिन होगा स्त्रियों का वूमेंस डे.. अभी तो स्त्री वैसे ही है जैसे पुरुष उसको देखना चाहता है जैसे पुरुष उसको हासिल करना चाहता है…. और अपनी मर्दानगी को हमेशा औरतों के ऊपर रखना चाहता है

Shashi Kumar Keswani

Editor in Chief, THE INFORMATIVE OBSERVER