राघवेंद्र सिंह

देश में आम चुनाव संपन्न होने के साथ इस बात पर सबकी नजर होगी कि राज्यों के सत्ताधारी दल और दिल्ली में सत्तारूढ़ हो रहा गठबंधन कैसे सत्ता सुख का आनंद लेगा। बात शुरू करें भाजपा से तो तमाम दावों और पांच सौ साल की प्रतीक्षा के बाद राम मंदिर निर्माण, धारा 370 हटाने, सीसीए लागू करने और विकास कार्यों के बाद भी अगर पीएम नरेंद्र मोदी को खुद दांव पर लगाना पड़ा तो यह भाजपा के लिए चिंता का विषय है। संगठन के स्तर पर जो प्रयोग हुए उससे कोई सार्वजनिक रूप से माने या न माने भाजपा की संगठन शक्ति का बेंड बाजा जुलूस निकाल दिया है। अबकी बार चार सौ पार के दावे को पाने के लिए मोदी केंद्रित रणनीति ने संकेत दिया है कि संगठन की दशा क्या है और वह पीढ़ी परिवर्तन के प्रयासों में किस दिशा की तरफ लुढ़क गया। इस मुद्दे पर संगठन और संघ के शीर्ष पर सब हाथ ही मलते होंगे। सबसे विचार विमर्श और सामूहिक निर्णय की परंपरा पुनः कायम करनी होगी। सब मिला जुलाकर जड़ों की तरफ लौटना पड़ेगा। वरना हर बार नेता को दांव पर लगाकर जीत पाना नामुमकिन भले ही ना हो मुश्किल जरूर होगा।

मध्यप्रदेश की ही बात करें तो दावा सभी 29 लोकसभा सीटों के जीतने का है। भाजपा के गणित से यह कोई बड़ी बात नही है क्योंकि 2019 में जब एकमात्र छिंदवाड़ा छोड़ 28 सीटें जीत ली थी तो फिर 2024 में भाजपा की झोली उपलब्धियों से भरी पड़ी है। छह महीने पहले ही विधानसभा चुनाव में 18 साल की सरकार होने के बाद भी 163 सीटें जीतने का रिकार्ड बनाया था। फिर भी छिंदवाड़ा समेत राजगढ़, भिंड मुरैना और मंडला जैसी सीटों पर टक्कर के चुनाव होने की खबरों ने जरूर भाजपा की चूले हिला दी होंगी। यह सब तब जब प्रदेश कांग्रेस में अनुभवी नेतृत्व नही है। राष्ट्रीय स्तर पर चुनावी तैयारी के वक्त राहुल बाबा यात्रा पर निकल एक तरह से भाजपा की मदद ही कर रहे हैं। दिग्गजों में कमलनाथ छिंदवाड़ा और दिग्विजयसिंह खुद के लिए राजगढ़ में उलझे हों। तब भाजपा के सामने संघर्ष 2019 से ज्यादा दिख रहा है। हो सकता है अंडर करंट हो भाजपा सूबे की 28 या 29 सीट जीत जाए। लेकिन नेतृत्व की उपेक्षा से उपजी कार्यकर्ताओं की उदासीनता ने दूसरे दौर के मतदान तक कम वोटिंग ने हवा तो खराब कर ही दी थी। संघ परिवार से लेकर भाजपा में पट्टेबाजी का जो सिलसिला चल पड़ा है उसने वोट मोटीवेट करने वाले नेता-कार्यकर्तओं को घर ही बैठा दिया है। पार्टी के निर्णायक और संघ से आए नेताओं का सामंती अंदाज़ चर्चाओं का सबब बने हुए है। इस बार जीत में सब मोदी के कंधे पर सवार चुनावी वैतरणी पार कर रहे हैं। नेता- कार्यकर्तओं में इसके लिए मोदी – शाह से लेकर संघ परिवार जिम्मेदार माने जा रहे हैं। भाजपा में जितने जल्दी व्यक्ति केंद्रित निर्णयों से मुक्ति होगी हालात उतने बेहतर होते जाएंगे।
अभी तो देखा यह गया है किसंसदीय बोर्ड कोर ग्रुप, चुनाव समिति की बैठक के बिना ही महत्वपूर्ण निर्णय हो रहे हैं। एक तरह से दिन ब दिन सिस्टम कमजोर पड़ रहा है।

जीत के साथ सत्ता सुख भोगने के लिए सब तैयार हैं लेकिन मोदी की तीसरी पारी में सत्ता की भागीदारी किसको कितनी मिलेगी वह अनुमान और अटकलों के दायरे में ही है। मोदी जी कह चुके हैं कि गुड़ गवर्नेंस से लेकर विकास करने व ईमानदारी के मुद्दे पर उन्होंने अब तक जो किया वह तो मात्र ट्रेलर था पूरी पिक्चर तो अब दिखाई जाएगी। इससे सत्ता व विपक्ष सब में सनसनी सी फैली हुई है। सभी को खासकर भाजपा और उनके शुभचिंतकों को लगता है कि 2024 -29 का मोदी काल बहुत अलग सुखद सा होने वाला है। एक बार मोदी ने कहा था भ्रष्टाचार भारत छोड़ो। लगता है यह लाइन सूत्र वाक्य होने वाली है।

भाजपा में अगला अध्यक्ष कौन…?
राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से लेकर मप्र भाजपा अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा के उत्तराधिकारी खोजे जाएंगे। दरअसल नड्डा जी और श्री शर्मा का कार्यकाल लोकसभा चुनाव तक बढ़ा दिया गया था। इस लिहाज से भाजपा में चार जून को चुनाव परिणाम आने के बाद नए अध्यक्ष की तैयारी तेज हो जाएगी। सर्वश्री नड्डा और शर्मा जी को केंद्रीय मंत्रिमंडल में स्थान मिलने की संभावना है। ऐसे में प्रदेश की बात करें तो किसी अनुभवी और सबको साथ लेकर चलने वाले नेता की दरकार है। जिसका तालमेल सीएम डॉ मोहन यादव से लेकर कांग्रेस से आए नेताओं के साथ बना रहे। विधानसभा में 163 विधायक वाली भाजपा में विधायकों व संगठन के असंतोष का ठीकरा भी अक्सर संगठन के माथे ही फूटता है। इसलिए कैलाश विजयवर्गीय, प्रहलाद पटेल, नरोत्तम मिश्रा के अलावा फग्गन सिंह कुलस्ते, जैसे दिग्गज नेताओं के नाम चर्चाओं में है। हालांकि नेताओं के नामों का जिक्र करने अर्थ यही निकाला जाता है कि सम्भावित नेताओं के विरोधी अड़ंगा लगाने सक्रिय हो जाएंगे। लेकिन अनुभव यह संकेत दे रहा है कि सबको साथ लेकर चलने वाले नेता आज के हालात में पार्टी और सरकार दोनों की जरूरत है। एक बात सबसे अहम है कि नए अध्यक्ष के मामले में सीएम डॉ यादव की राय बहुत अहम होगी।

Shashi Kumar Keswani

Editor in Chief, THE INFORMATIVE OBSERVER