शशी कुमार केसवानी
मध्यप्रदेश में प्रशासनिक मुखिया को लेकर लंबे समय से चर्चा गरम रहती है। इकबाल सिंह बैंस के रिटायर्डमेंट को लेकर खूब चर्चाएं होती रही और उन्हें दो बार एक्सटेंशन भी मिल गया। पर उनके जाने से पहले चर्चा की खूब रही कि1990 बैच के अनुराग जैन प्रदेश के अगले मुखिया होंगे। हमने तब भी इस बात को सिरे से नाकारा था कि उन्हें प्रदेश नहीं भेजा जाएगा। हुआ भी वही। उनकी जगह पर अचानक 1988 बैच की आईएएस अधिकारी वीरा राणा को सीएस बना दिया गया। पर उनको यह जिम्मेदारी अस्थाई रूप से दी गई थी। हालांकि उन्होंने छह माह के एक्सटेंशन की कोशिशें की पर सफलता नहीं मिली। खैर यह बात तो पहले से ही तय थी कि ऐसा होगा नहीं, पर प्रयास करने से कोई रोक नहीं सकता।
अब प्रदेश एक बार प्रदेश फिर उसी स्थिति में खड़ा है कि मप्र का अगला प्रशासनिक मुखिया कौन होगा। अनुराग जैन केन्द्र वापस नहीं भेज रही। वहीं उनका कहना है कि मेरे केन्द्र ऊपर जाने के आसार हैं, इसलिए मैं प्रदेश नहीं आऊंगा। जबकि केन्द्र में पुराने लोग चार-चार एक्सटेंशन लेकर अपनी कुर्सियों से चिपके हुए हैं। ऐसे में अनुराग जैन का कैबिनेट सेक्रेटरी बनना बहुत ही मुश्किल नजर आ रहा है। दिल्ली में उनके कुछ हितैषी जरूर कोशिश कर रहे हैं कि उन्हें मप्र का अगला सीएस बनाया जाए। पर उनके पीछे शिवराज की छाप हैं वह भी पीछा नहीं छोड़ रही। हालांकि मप्र में 1990 बैच के राजेश राजौरा, वहीं 1989 बैच के मोहम्मद सुलेमान भी पुरजोर तरीके से मप्र का सीएस बनने की कोशिशों में लगे हुए हैं। सुलेमान के जाति की समस्या के कारण बनना नामुमकिन सा है। तो राजौरा के विरोध में कई रिटायर्ड आईएएस भी हैं। इसी बीच केन्द्र से वापस लौटे 1988 बैच के आईएएस संजय बंदोपाध्याय के आसार कुछ ज्यादा नजर आ रहे हैं। पर कहना बड़ा मुश्किल है क्योंकि देश में अप्रैल-मई में लोकसभा चुनाव होना है। इसको लेकर फरवरी के आखिरी सप्ताह तक आंचार संहिता लग जाएगी। ऐसे में केन्द्र सरकार मप्र में ऐसा सीएस चाहेगी जो केन्द्र में बैठे हुक्मरानों का इशारा समझ कर काम कर सके। केन्द्र को इस बात का अच्छी तरह से पता है कि मप्र में सरकार अभी उतनी मजबूत नहीं है कि जिस तरह से सीएस से काम करवा सके और अपनी योजनाओं को अमली जामा पहना सके।
डॉक्टर मोहन यादव के मुख्यमंत्री बनने से यह बात उसी समय तय हो गई थी, कि अगला सीएस ऐसा होगा जो केन्द्र का विश्वसनीय होगा। साथ ही साथ केन्द्र की नीतियों पर काम करेगा। साथ ही साथ मप्र के सभी मंत्रियों व अधिकारियों पर अच्छी तरह से पकड़ रखे और अपनी आदेशों का पालन करवा सके। साथ ही साथ सबके साथ सामंजस्य भी कायम रख सके और चुनाव में सक्रिय तरीके से काम भी करे। इस बात में दो लोग ही अच्छी तरह से फिट बैठते हैं। पहले व्यक्ति का नाम अनुराग जैन और दूसरे हैं संजय बंदोपाध्याय। अनुराग जैन के वापस न आने से यह बात स्पष्ट हो गई है कि अगले सीएम संजय बंदोपाध्याय हो सकते हैं, पर अचानक आसार यह भी बन रहे हैं कि केन्द्र किसी नए अपने विश्वसनीय व्यक्ति को मप्र की कमान सौंप सकती है जो मप्र की राजनीतिक और प्रशासनिक अधिकारियों पर अच्छी पकड़ के साथ काम करवा सके। आने वाले कुछ दिनों में यह चर्चा गरम रहेगी की मप्र का अगला मुखिया कौन होगा। वल्लव भवन से ज्यादा चर्चा राजनीतिक गलियारों में तो हो रही है पर लंबे समय से पीएचक्यू में इस बात की ज्यादा चिंता रहती है कि नया कौन होगा। प्रदेश में आजकल काम से ज्यादा इस पर चर्चा होती रहती है कि प्रदेश तो लगभग भगवान भरोसे ही चल रहा है।