TIO  राकेश अचल

समरथ को दोष देना कठिन है ,इसलिए कोई भी भारत सरकार द्वारा सेना में अल्पकालीन भर्ती के लिए शुरू की जा रही ‘ अग्निपथ ‘ योजना का विरोध करता है तो उसे देशद्रोही माना जा सकता है ,कहा तो जा ही सकता है ,लेकिन पूर्व सैनिक कैप्टन अमरिंदर सिंह से लेकर हम जैसे टटपुँजिया लेखक सरकार की इस योजना से इत्तफाक नहीं रखते,क्योंकि हमारा मानना है कि सेना सियासत की प्रयोगशाला नहीं होना चाहिए .

भारत की सेना दुनिया की शायद तीसरी सबसे बड़ी सेना है और दक्ष सेना है. कोई 14 लाख से अधिक जवान देश की 130 करोड़ से अधिक आबादी की रक्षा सीमाओं पर निशियाम खड़े रहकर करते हैं.आजादी के शुरुवाती दौर में हुए एक-दो युद्धों को छोड़कर भारतीय सेना ने अपने पराक्रम से दुश्मनों को हर समय नाकों चने चबाने के लिए मजबूर किया है .ऐसी पराक्रमी सेना में चार साल के लिए पैकेज सिस्टम के जरिये भर्ती की जाना सिवाय जोखिम के कुछ और नहीं हो सकता .
भाजपा सरकार बीते आठ साल में रोजगार देने के मामले में झूठी साबित हुई है .सरकार ने जितने रोजगार देने के वादे किये थे उन्हें पूरा नहीं कर सकीय ,शायद इसीलिए आम चिनावों से ठीक एक साल पहले थोक में नौकरियां देने के लिए ही दीगर योजनाओं के साथ सेना में भर्ती की ‘ अग्निपथ ‘ जैसी योजनाओं की घोषणा की गयी है .भारतीय सेना में आज भी विभिन्न स्तरों पर कोई २ लाख पद रिक्त हैं और इनके लिए प्रामाणिक भर्ती नियम हैं लेकिन केंद्र अब इन्हें बदलकर ‘ अग्निपथ’ योजना के तहत सेना में भर्ती करना चाहती है .अग्निपथ योजना के तहत सैनिकों की भर्ती चार साल की अवधि के लिए संविदा आधार पर की जाएगी।

सिख रेजिमेंट में अपनी सेवा दे चुके पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने सैनिक भर्ती की नई प्रक्रिया की आलोचना करते हुए कहा कि यह सिख रेजिमेंट, सिख लाइट इन्फैंट्री, गोरखा राइफल्स, राजपूत रेजिमेंट, जाट रेजिमेंट, आदि सिंगल क्लास रेजीमेंटों के लिए मौत की घंटी बजाने जैसा है। गौरतलब है कि यह भर्ती ‘‘अखिल भारतीय, अखिल वर्ग’’ (ऑल इंडिया ऑल क्लास) के आधार पर की जाएगी। इससे उन कई रेजींमेंट की संरचना में बदलाव आएगा, जो विशिष्ट क्षेत्रों से भर्ती करने के अलावा राजपूतों, जाटों और सिखों जैसे समुदायों के युवाओं की भर्ती करती हैं।
रेजिमेंट व्यवस्था हालाँकि अंग्रेजों की कल्पना मानी जाती है किन्तु इसमने कोई खामी अभी तक पकड़ में नहीं आयी,ऐसे में सिंगल क्लास रेजिमेंट के साथ ऑल इंडिया ऑल क्लास प्रयोग की जरूरत क्यों आन पड़ी समझ से बाहर है. मुझे याद है कि 80 के दशक में शुरू किया गया था और असफल रहा था।सब जानते हैं कि इन रेजिमेंटों की अपनी परंपराएं और जीने का तरीका होता है और आप किसी ऐसे व्यक्ति से कैसे वो सब करने की कैसे उम्मीद कर सकते हैं जो उस पृष्ठभूमि से नहीं है।”

आशंका जताई जा रही है कि चार साल के कार्यकाल के साथ, एक सैनिक के पास मैदान में जाने से पहले सैनिकों के बुनियादी अनुभव को इकट्ठा करने के लिए मुश्किल से पर्याप्त समय होगा। अमरिंदर सिंह याद दिलाते हैं कि “सात साल की सेवा अवधि और सात साल की आरक्षित देयता हुआ करती थी। लेकिन एक सैनिक के लिए अत्याधुनिक रूप से प्रभावी होने के लिए चार साल बहुत कम समय है।”

कैप्टन अमरिंदर सिंह सियासी आदमी हैं इसलिए मुमकिन है कि सरकार उनकी आपत्तियों को दरकिनार कर दे किन्तु पश्चिमी कमान के पूर्व जीओसी-इन-सी लेफ्टिनेंट जनरल तेज सप्रू (सेवानिवृत्त) भी रेजिमेंट प्रणाली को समाप्त करने के नए कदम से इत्तफाक नहीं रखते,वे कहते हैं कि इससे भारत-नेपाल संबंधों को कोई फायदा नहीं होगा क्योंकि , “भारतीय सेना में कार्यरत नेपाली नागरिक सैनिक अपने वेतन और पेंशन के जरिए नेपाली अर्थव्यवस्था में एक प्रमुख योगदान देते हैं। वे उन गांवों में भी भारत के महत्वपूर्ण राजदूत हैं जहां वे रहते हैं। यही एक कारण है कि चीनी नेपाली समाज में ज्यादा पैठ नहीं बना पाए हैं। सभी वर्ग की भर्ती द्वारा उनकी भर्ती में कटौती और फिर सेवा के वर्षों को कम करके, नेपाल-भारत संबंधों में एक बड़ा बदलाव हो सकता है।”
भारतीय सेना के अधिकाँश अधिकारी सरकार की अग्निपथ योजना से इत्तफाक नहीं रखते.कुछ ने तो इसे किंडरगार्डन आर्मी तक कह दिया है .
युवा सैनिकों को भर्ती करने के लिए दशकों पुरानी चयन प्रक्रिया में बड़े बदलाव के संबंध में रक्षा मंत्रालय ने बताया कि योजना के तहत तीनों सेनाओं में इस साल 46,हजार सैनिक भर्ती किए जाएंगे और चयन के लिए पात्रता आयु 17.5 वर्ष से 21 वर्ष के बीच होगी और इन्हें ‘अग्निवीर’ नाम दिया जाएगा। रोजगार के पहले वर्ष में एक ‘अग्निवीर’ का मासिक वेतन 30,हजार रुपये होगा, लेकिन हाथ में केवल 21,हजार रुपये ही आएंगे क्योंकि हर महीने 9,हजार रुपये सरकार के समान योगदान वाले एक कोष में जाएंगे। इसके बाद दूसरे, तीसरे और चौथे वर्ष में मासिक वेतन 33,हजार रुपये, 36,500 रुपये और 40,हजार रुपये होगा। प्रत्येक ‘अग्निवीर’ को ‘सेवा निधि पैकेज’ के रूप में 11.71 लाख रुपये की राशि मिलेगी और इस पर आयकर से छूट मिलेगी।

भारतीय सेना पर चार साल पहले तक सरकार 2,47,114 करोड़ रूपये सालाना खर्च करती थी ,जो लगातार बढ़ रहा है लेकिन रिक्त पद नहीं भरे जा रहे हैं .अब नयी योजना के जरिये इस भरपाई की कोशिश की जा रही है .भारत सरकार इससे पहले अखिल भारतीय प्रशासनिक सेवाओं के स्वरूप के साथ भी छेड़छाड़ कर चुकी है. केंद्र ने महत्वपूर्ण पदों पर अखिल भारतीय सेवाओं से चयनित अधिकारियों के स्थान पर गैर आईएएस अधिकारियों को तैनात कर दिया है .एक तरह से ये प्रशासनकी और सैन्य सेवाओं का संघीकरण है .इसके क्या परिणाम होंगे अभी नहीं कहा जा सकता ,लेकिन प्रयोग खतरनाक ही नहीं बल्कि सनक भरे हैं .

भारत में बेरोजगारी लगातार बढ़ रही है और हर सरकार के लिए ये सबसे बड़ी चुनौती भी है .भारत में वैसे भी रोज़गार के मौक़े ज़रूरत से बहुत कम ही उपलब्ध हो रहे हैं. 1991 से 2013 के बीच भारत में क़रीब 30 करोड़ लोगों को नौकरी की ज़रूरत थी. इस दौरान केवल 14 करोड़ लोगों को रोज़गार मिल सका.विश्व बैंक के आंकड़े कहते हैं कि भारत की आईटी इंडस्ट्री में 69 फ़ीसद नौकरियों पर ऑटोमेशन का ख़तरा मंडरा रहा है. भारत के मुक़ाबले चीन में 77 प्रतिशत नौकरियां ऑटोमेशन की वजह से ख़तरे में हैं. ऐसे में सेना को प्रयोगशाला के रूप में इस्तेमाल करना खतरनाक है .लेकिन जिद्दी सरकार को रोकना किसी के बूते की बात नहीं है. सरकार ने बीते आठ साल में जिस तरह से देश को बेचा है उसे देखकर नहीं लगता कि अब हमारी सेना भी सरकार के संघीकरण के प्रयोग से बच सकेगी .कविवर हरिवंश राय बच्चन की कविता ‘अग्निपथ’ और भारत सरकार के ‘अग्निपथ ‘ में जमीन-आसमान का अंतर् है .क्योंकि कवि ने सिर्फ कहा था कि –
‘ वृक्ष हों भले खड़े,
हों घने हों बड़े,
एक पत्र छाँह भी,
माँग मत, माँग मत, माँग मत,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।’लेकिन सरकार ने खोल ही दिया अग्निपथ .इस पर चलकर चार साल बाद नौजवान क्या करेगा ,कोई नहीं जानता .

Shashi Kumar Keswani

Editor in Chief, THE INFORMATIVE OBSERVER