रंजन श्रीवास्तव

जो डर था वही हुआ। महाकुम्भ में मौनी अमावस्या जो सबसे पवित्र स्नान का त्यौहार था भगदड़ ने कई जाने ले लीं। संख्या विभिन्न समाचार माध्यमों में भिन्न भिन्न है। कोई 7 की मृत्यु बता रहा है तो कोई 17 की। आधिकारिक आंकड़े आने बाकी हैं। घायलों की संख्या का भी सही आंकड़ा आना बाकी है। संख्या कुछ भी हो पर सरकार यह नहीं कह सकती कि कुम्भ मेला के धरातल पर क्या हो रहा है उसे उसका ज्ञान नहीं था और जो भगदड़ मची उसके लिए सरकार या प्रशासन जिम्मेदार नहीं है। स्थानीय कुछ जागरूक पत्रकार तथा निवासी सोशल मीडिया पर लगातार बता रहे थे कि मेले में आमजन को भारी अव्यवस्था का सामना करना पड़ रहा है पर वीवीआईपी लोगों के लिए मेला टूरिज्म जारी है। सरकार अपनी व्यवस्थाओं के बारे में लगातार बड़े बड़े दावे करती रही।

महाकुम्भ मेला शुरू होने से पहले 9 जनवरी को उत्तर प्रदेश सरकार ने एक्स जो पहले ट्विटर था, पर अपने आधिकारिक अकाउंट से यह बताया, “144 वर्षों के बाद महाकुम्भ का यह मुहूर्त आ रहा है…प्रयागराज आने वाले श्रद्धालुओं/पर्यटकों की सुविधा के लिए शहर के सभी रेलवे स्टेशनों पर सुविधाओं का विस्तार किया गया है। साथ ही, भारतीय रेलवे द्वारा मेला स्पेशल 3,000 ट्रेनें चलाई जाएंगी।” मीडिया ने भी जमकर प्रचार किया। यानि कि सरकार की इच्छा थी कि ज्यादा से ज्यादा लोग आकर महाकुम्भ मेला में भाग लें और आध्यात्मिक लाभ प्राप्त करें। पर साथ में एक और सूचना पढ़ने योग्य थी। वह था मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के विशेष सचिव ईशान प्रताप सिंह द्वारा 3 जनवरी को केंद्र तथा राज्य सरकारों को, सुप्रीम कोर्ट तथा हाई कोर्ट्स को, देश के सभी राज्यपाल, हर प्रदेश के सभी विधान सभा सचिवालय, उत्तर प्रदेश के सभी मंत्रीगण तथा अन्य बहुत से सम्बंधित पुलिस तथा प्रशासनिक अधिकारियों को भेजी गई एडवाइजरी जिसके माध्यम से उन्हें बताया गया था कि मुख्य पर्वों पर सभी वीवीआईपी, वीआईपी तथा अन्य गणमान्य लोगों को कुम्भ मेला आने से परहेज करना चाहिए।

विशेष सचिव ने कहा कि ऐसे समय उनकी सुरक्षा संबंधी चिंता हो सकती है क्योंकि इस अवसर पर उनको सिक्योरिटी व्यवस्था तथा प्रोटोकॉल संबंधी सहायता देने में असमर्थता होगी। इस एडवाइजरी के अनुसार मौनी अमावस्या के पर्व पर जो कि 29 जनवरी को था सभी वीवीआईपी, वीआईपी तथा अन्य गणमान्य लोगों से कहा गया कि वे 26 जनवरी से 31 जनवरी तक महाकुम्भ में ना आएं। मौनी अमावस्या ही ऐसा त्यौहार होता है जो कि कुम्भ, महाकुम्भ या माघ मेला का सबसे महत्वपूर्ण दिवस माना जाता है और ज्यादातर भीड़ मौनी अमावस्या के लिए ही आती है। मौनी अमावस्या का स्नान सकुशल सम्पूर्ण होते ही शासन और प्रशासन राहत की सांस लेता है यह सोचकर कि बाकी बचे पर्वों पर ना तो इतने श्रद्धालु आएंगे और ना ही उनको मैनेज करना इतना मुश्किल होगा। वीआईपी, वीवीआईपी लोगों को मुख्य पर्वों पर आने से रोकने का कारण यह है कि प्रशासन बिलकुल भी नहीं चाहता कि उसका ध्यान आम श्रद्धालुओं के भारी भीड़ के मैनेजमेंट से हटकर किसी भी अन्य व्यवस्था पर जाए। यहाँ तक कि प्रशासन और पुलिस के अधिकारी कर्मचारी विशेषकर मौनी अमावस्या के पहले कई कई दिन अपने घर भी नहीं जा पाते हैं।

इस विशेष एहतियात के पीछे एक विशेष कारण भी है। वर्ष 1954 के कुम्भ मेला में भगदड़ मचने से लगभग 300 से ज्यादा श्रद्धालु मारे गए और लगभग 1000 से ज्यादा घायल हो गए। वैसे कुछ विदेशी समाचार पत्रों ने मरने वालों कि संख्या 800 से ऊपर बतायी थी। यह कुम्भ मेला आज़ाद भारत का पहला कुंभ था तथा मीडिया के एक वर्ग के अनुसार यह घटना इसलिए घटित हुई क्योंकि उस दिन भारत के तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू मेले में आये थे तथा उनके सुरक्षा व्यवस्था की वजह से मेले के दूसरी तरफ भीड़ ज्यादा हो गई और रास्ता संकरा होने और दलदल जैसी स्थिति होने से लोग एक दूसरे के ऊपर गिरते गए। बीबीसी ने हालांकि यह कहा कि नेहरू एक दिन पहले आये थेI बाद में न्यायिक आयोग ने अन्य अनुशंसाओं के साथ साथ यह अनुशंसा भी की कि वीआईपी, वीवीआईपी मुख्य पर्वों पर मेले में ना जाएँ। पर आश्चर्य है कि प्रदेश सरकार ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को मौनी अमावस्या के ठीक पहले 27 जनवरी को महाकुम्भ में आने से मना क्यों नहीं किया।

अमित शाह और उनके परिवार ने ना सिर्फ त्रिवेणी पर स्नान किया बल्कि वे बल्कि उन्होंने वहां कुछ समय और भी बिताया जबकि वे एक अखाड़ा में गए। उनके साथ उनकी पत्नी और पुत्र जय शाह थे। बाबा रामदेव भी उनके साथ देखे गए। मेला शुरू होने के बाद केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह तथा अन्य वीवीआईपी भी मेला में देखे गए। अच्छा होता कि ये सभी वीवीआईपी या वीआईपी 3 फ़रवरी के बाद जाते जबकि अंतिम शाही स्नान सम्पन्न हो जाता। यह नहीं कहा जा सकता कि उनके आने से 29 जनवरी की घटना घटित हुयी पर इससे कैसे इंकार किया जा सकता है की शासन और मेला प्रशासन का ध्यान उनके सिक्योरिटी की चिंता और व्यवस्था करने में भंग हुआ। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार स्वयं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उनके मंत्रिमंडल के कुछ सहयोगी मंत्री अमित शाह की अगवानी करने के लिए प्रयागराज में उपस्थित थे।

Shashi Kumar Keswani

Editor in Chief, THE INFORMATIVE OBSERVER