राघवेंद्र सिंह

गुजरे जमाने में अपराध और आर्थिक घोटालेबाजों को पुलिस के साथ सीबीआई और इनकम टैक्स का डर रहता था। लेकिन अब लगता है ट्रेंड बदल रहा है। डर, ख़ौफ की जगह ईडी अर्थात इंफोर्समेंट डायरेक्टर
( प्रवर्तन निदेशालय ) ले रहा है। एकाध नही बल्कि सभी राज्यों में भ्रष्टाचार का स्तर इतना ऊपर निकल गया है कि वह ईडी जैसे कार्यालय के बिना काबू में आने वाला नहीं लगता। इसी चक्कर में तो जनता के मुद्दों पर सोई सी कांग्रेस अपनी सुप्रीमो सोनिया गांधी और युवराज राहुल गांधी को बचाने के लिए हड़बड़ा कर ही सही सड़क पर उतर आई है। सोनिया जी और राहुल बाबा पाक साफ हुए तो कांग्रेस मजबूत होगी। गड़बड़ी निकली तो भाजपा की ताकत बढ़ेगी। आगे पीछे देश को ही लाभ मिलेगा। लेकिन राज्यों में भ्रष्टाचार कम नही हुआ तो ना खाऊंगा न खाने दूंगा नारे की लुटिया डूब जाएगी। अभी तो पटवारी से लेकर कलेक्टर अछूते नही हैं।

भूमिका लंबी हो गई है। मध्यप्रदेश के जबलपुर में पिछले एक निजी अस्पताल में आग लगी और उसमें जान बचाने के लिए भर्ती हुए आठ मरीजों को जान से हाथ धोना पड़ा। अस्पताल में सारे जीवनरक्षक प्रबन्धों के बेहतर रहते मरीजों की मौत होती तो शायद यह अखबारों – टीवी में खबरों और टीवी डिबेट का इतना बड़ा विषय नही बनता। लेकिन घटिया प्रबन्धन वाले ये ज्यादतर अस्पताल – नर्सिंगहोम विभागीय व प्रशासनिक तन्त्र के लिए भ्रष्टाचार के अड्डे बन गए हैं। हफ्ता- महीना वसूली का आलम यह है कि सीएमएचओ की मलाईदार पोस्टिंग की कमाई लाखों रुपए महीनों की है। इसमें केंद्र और राज्यों की गरीबों के इलाज की योजनाओं में जो लापरवाही और फर्जीवाड़ा होता है उसे भी कमाई में जोड़ा जाए तो आंकड़ा करोड़ रुपए से ऊपर निकल जाता है।

 

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कार्रवाई करते हुए मंत्री व अधिकारियों को जांच का जिम्मा सौंपा है। लेकिन जो कहानी जबलपुर की है वही पूरे प्रदेश की है। लूट तन्त्र जारी है।पिछले साल ही भोपाल के कमला नेहरू बाल चिकित्सालय में आग लग गई थी। चार परिवारों के चिराग इस अग्निकांड में बुझ गए थे। आग का कारण शार्ट सर्किट था लेकिन किसी भी जिम्मेदार की सेवा शार्ट सर्किट नही हुई। इसके बाद जबलपुर के दड़बेनुमा निजी अस्पताल में आग लगी आठ लोगों की मौत के बाबजूद किसी का कुछ बिगड़ेगा इसकी उम्मीद न के बराबर है। कागजो की खानापूर्ति से मौत बांटने और लूटने के अस्पताल सरकारी मिली भगत से चल रहे हैं। हादसे के बाद अलबत्ता प्रशासन जांच की आड़ में लीपापोती में जुट जाता है। हादसों के बाद न तो अफसरों का ज़मीर जाग रहा है और न सरकार की नींद खुल रही है।
निजी और सरकारी अस्पताल घटिया मैनजमेंट के मामले में सभी एक दूसरे को मात दे रहे हैं। अस्पतालों में बिजली फिटिंग पुरानी हैं। निगरानी और मरम्मत करने वालों की नींद अग्निकांड और उसमें होने वाली मौतों के आंकड़ों के हिसाब से खुलती है। जबलपुर में आठ मौत हुई तो अफसर कुछ अनमने से सक्रिय हुए भोपाल के महज दो ही अस्पतालों में गड़बड़ी पाई और खानापूर्ति के लिए उनमे मरीजो की भर्ती रोक दी गई। जबकिआए दिन शार्ट सर्किट होते रहते हैं। लेकिन जब इंदौर, भोपाल, ग्वालियर, सागर, रीवा- सीधी, सतना आदि शहरों में हादसे की प्रतीक्षा है। कुछ जबलपुर जैसा हुआ तो फिर रस्मी कार्रवाई होगी और बात खत्म हो जाएगी अगले हादसे तक।

कोचिंग संस्थानों की जानलेवा लापरवाही…

मोदी जी सबको पता है कुछ बरस पहले ही गुजरात के सूरत शहर में एक कोचिंग संस्थान में दिल दहलाने वाली भयावह आग लगी थी। पढ़ने आए बच्चे आग से बचाने की कोशिश में कोचिंग भवन से कूदे और जान गंवा बैठे थे। देश भर में मोटी फीस लेने वाले हजारों कोचिंग संस्थानों की छोटी- बड़ी टाउनशिप सी बन गई हैं। लेकिन उनमें भी सुविधाएं सुरक्षा के नाम पर ज्यादातर कागजों के पेट भरने तक सिमटी है। समूचा सिस्टम भ्रष्टाचार के भरोसे और उन मरीजों से लेकर बच्चों की जान भगवान के भरोसे। इसीलिए गुड गवर्नेंस के नाम पर ग्राम पंचायत से लेकर नगर सरकारें और राज्य सरकार यह तो चुनाव जीत जाती है लेकिन ईडी जैसी कोई संस्था राज्यों के भ्रष्टाचार को रोकने नही हैं। ईडी जैसी संस्था बनने से सड़क- पुल और सरकारी इमारत बनाने वाले इंजीनियर और ठेकेदार पैसा खाने से बचेंगे।

नोटों की गिनती मुश्किल हो जाएगी…
प्रदेश में सरकारी बाबू और पटवारी के यहां ही जब छापे मारे जाते हैं तो बड़ी मात्रा में नकद व चल अचल सम्पत्ति मिलती है। ये सरकारी तंत्र के सबसे छोटे कर्मचारी होते हैं। सच मानिए सब इंजीनियर से लेकर चीफ इंजीनियर तक छापे मारे जाएं तो भ्रष्टाचार की बड़ी राशि मिलेगी। जिसका हैरान करने वाला आंकड़ा करोड़ों – अरबों रु तक जा सकता है। बेनामी संपत्तियों का बेहिसाब जाल भी सार्वजनिक हो जाएगा। अभी केंद्र सरकार की नीति के चलते भ्रष्टाचार में कमाई रकम से न तो संपत्ति खरीदी आ रही हैं और ना ही उन्हें बैंकों में रखा जा रहा है। जब छापे मारे जाएंगे तो घरों के बाथरूम, गद्दे और तहखानों में शायद इतने रुपए मिलेंगे कि उन्हें गिनने के लिए मशीनें भी कम पड़ जाएं।
केंद्र द्वारा राज्यों में ईडी जैसी संस्था स्थापित की जा सकती है। इसमे हो सकता है कुछ भाजपा के नेता – मंत्री संसद – विधायक भी पकड़े जाएं। ‘खाऊंगा न खाने दूंगा’ और गुड़ गवर्नेंस के लिए जरूरी है। आर्थिक भ्रष्टाचार करने वालों के भीतर असल में डर खत्म हो गया है। जो डर इन दिनों ईडी का है वह राज्यों में भी फैल जाए तो सरकारी सिस्टम काफी कुछ साफ सुथरा हो सकता है। बहुत संभव है इस तरह की व्यवस्था से नरेंद्र मोदी भारत के इतिहास में एक ऐसे प्रधानमंत्री के रूप में दर्ज हो जाएंगे जिसने भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए सच में मिशन के रूप में काम किया।

Shashi Kumar Keswani

Editor in Chief, THE INFORMATIVE OBSERVER