TIO, नई दिल्ली

आर्थिक सुधारों के दम पर भारतीय अर्थव्यवस्था को प्रगति के पथ पर अग्रसर करने वाले मनमोहन सिंह हमें छोड़कर चले गए हैं। पूर्व वित्त मंत्री और दो बार प्रधानमंत्री रहे मनमोहन सिंह का गुरुवार को 92 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। जब मनमोहन सिंह ने 1991 में पीवी नरसिम्ह राव की सरकार में वित्त मंत्रालय की बागडोर संभाली थी, तब भारत का राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 8.5 प्रतिशत के करीब था, भुगतान संतुलन घाटा बहुत बड़ा था और चालू खाता घाटा भी जीडीपी के 3.5 प्रतिशत के आसपास था। इसके अलावा देश के पास जरूरी आयात के भुगतान के लिए भी केवल दो सप्ताह लायक विदेशी मुद्रा ही मौजूद थी। इससे साफ पता चलता है कि अर्थव्यवस्था बहुत गहरे संकट में थी।

केंद्रीय बजट 1991-92 से नए आर्थिक युग की शुरूआत
ऐसी परिस्थिति में डॉ. सिंह ने केंद्रीय बजट 1991-92 के माध्यम से देश में नए आर्थिक युग की शुरूआत कर दी। यह स्वतंत्र भारत के आर्थिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था, जिसमें साहसिक आर्थिक सुधार, लाइसेंस राज का खात्मा और कई क्षेत्रों को निजी एवं विदेशी कंपनियों के लिए खोलने जैसे कदम शामिल थे। इन सभी उपायों का उद्देश्य अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने का था।

निजीकरण की अनुमति देकर नई शुरूआत
भारत को नई आर्थिक नीति की राह पर लाने का श्रेय डॉ. सिंह को दिया जाता है। उन्होंने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई), रुपये के अवमूल्यन, करों में कटौती और सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के निजीकरण की अनुमति देकर एक नई शुरूआत की।

आर्थिक सुधारों को अमलीजामा पहनाते रहे
आर्थिक सुधारों की एक व्यापक नीति की शुरूआत में उनकी भूमिका को दुनिया भर में स्वीकार किया जाता है। उनकी नीतियों ने ही भारतीय अर्थव्यवस्था को उदारीकरण, वैश्वीकरण और निजीकरण की दिशा में ले जाने का काम किया। वह 1996 तक वित्त मंत्री के तौर पर आर्थिक सुधारों को अमलीजामा पहनाते रहे।

2007 में भारत की आर्थिक वृद्धि दर नौ प्रतिशत के उच्चतम स्तर पर पहुंची
मनमोहन सिंह को मई 2004 में देश की सेवा करने का एक और मौका मिला और इस बार वह देश के प्रधानमंत्री बने। अगले 10 वर्षों तक उन्होंने देश की आर्थिक नीतियों और सुधारों को मार्गदर्शन देने का काम किया। उनके कार्यकाल में ही 2007 में भारत की आर्थिक वृद्धि दर नौ प्रतिशत के उच्चतम स्तर पर पहुंची और दुनिया की दूसरी सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था बन गया।

Shashi Kumar Keswani

Editor in Chief, THE INFORMATIVE OBSERVER