नमस्कार दोस्तों, आइए आज बात करते हैं ऐसे हर दिल अजीज व्यक्तित्व की, जिसने देश में ही नहीं, विदेश में भी अपना झंडा बुलंद किया। सफलता का परचम लहराने के लिए कड़ी मेहनत, लगन और जुनून की आवश्यकता होती है। ऐसे ही एक मेहनती, लगनशील एवं जुनूनी, देश-विदेश में सफलता का झंडा बुलंद करने वाली सिने-पर्सनलिटी का शताब्दी समारोह हम मना रहे हैं। जी हां मैं बात कर रहा हूं हिन्दी फिल्म उद्योग के एक सबसे बड़े शोमैन, राज कपूर की। जो यूं ही शोमैन नहीं बन गए। दरअसल, लेब्रोटरी से लेकर सिनेमाटोग्राफी तक सिनेमा से जुड़े सब क्षेत्र की जानकारी उन्हें थी। होती भी भला क्यों नहीं? सिनेमा बनाने के छोटे-बड़े सब काम उन्होंने किए। फर्श बुहारने से लेकर प्रॉप्स को इधर-उधर ले जाना, स्पॉटबॉय, सहायक निर्देशक, अभिनय सारे काम करते हुए वे बड़े हुए। सारी बुनियादी बातें सीखीं। निर्देशक की कुर्सी तक पहुंचे, प्रोड्यूसर बने। वहां ठहरे नहीं, उन्होंने नए नए प्रयोग किए। संगीत में संगीतकारों को कई वह बातें करने को कही जो शायद संगीतकार बाकी फिल्मों में नहीं कर पाते थे। हमें गीतकार विट्ठलभाई पटेल ने कई किस्से सुनाए थे। कल्याणजी भाई ने भी कई ऐसे किस्से सुनाए जिसे सुनकर बड़ा आश्चर्य होता था कि किसी व्यक्ति को संगीत की इतनी बारीक परख कैसे हो सकती है। गीत लिखने में गीतकारों से किस तरह से शब्दों को बदलवाना है, यह राज कपूर को बहुत खूबसूरत तरीके से काम आता था और मनमाफिक किससे किस तरह काम लेना है जीवन में यह उनसे सीखने लायक कई किस्से हैं, जिन्हें उनके बड़े पुत्र रणधीर कपूर ने सुनाए थे। शशी कपूर तो कहते थे की राज साहब से बढ़कर कोई व्यक्तित्व हो नहीं सकता। वह पत्थर को मोम बना दें और मोम को पत्थर बना दे। मेरे पास उनके ऐसे कई किस्से हैं, जिन पर किताब लिख दूं पर सोचता हूं उन पर किताबे बहुत लिखी जा चुकी हैं, उन पर तो अब एक ग्रंथ ही लिखा जाना चाहिए। पर उस ग्रंथ से पहले उनके कुछ अनछुए पहलुओं पर बात कर लें तो अलग ही मजा आएगा। 100 साल का इतिहास अलग मजा देगा।
राज कपूर बड़े अभिनेता, निर्देशक, प्रड्युसर थे। उनके प्रत्येक आयाम पर किताबें लिखी जा सकती हैं। वैसे बताती चलूं उन पर अब तक कई किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं और आगे भी संभावनाएं हैं। पर इन उससे भी बढ़कर वे बड़े इंसान थे, यारों के यार थे। राज कपूर शुरू से जुनूनी थे, जिद के पक्के, बतौर नायक नीलकमल (1947) अपनी पहली फिल्म में उन्होंने शर्त रख दी। उनकी जोड़ी केलिए सुंदर और युवा अभिनेत्री होनी चाहिए। इस पठान ने एक पठान लड़की बेगम मुमताज की सिफारिश की जिसे परदे पर नाम मिला मधुबाला। आगे चलकर दोनों ने कई सफल फिल्में दो उस्ताद, दिल की रानी, अमर प्रेम, चित्तौड़ विजय दीं। अभिनेता, सिने-निर्देशक, प्रड्युसर राज कपूर 14 दिसम्बर 1924 को पेशावर (आज के पाकिस्तान में) जन्में थे। उनके पिता नामी पृथ्वीराज कपूर नाटक और बाद में फिल्म अभिनेता थे। राजकपूर ने अपने जीवन में सबसे पहले देबकी बोस की कहानी पर उन्हीं के द्वारा पटकथा एवं निर्देशन में बनी फिल्म इंकलाब (1935) में अपने पिता के साथ अभिनय किया। रायचंद बोस इस फिल्म के म्युजिशियन थे। फिल्म बिहार के भूकंप की पृष्ठभूमि पर है।अभिनेता राज कपूर इसी मुकाम पर रुकने वाले नहीं थे, इस महत्वकांक्षी युवक ने पहली फिल्म के साथ मात्र 23 साल की उम्र में अपना आर. के. स्टूडियो स्थापित कर दिया और अगले साल 1948 में अपनी पहली फिल्म आग बनाई।
फिल्म राज कपूर की महत्वाकांक्षा का प्रतीक है। इस भावनात्मक फिल्म में नायक बड़ा सपना देखता है। फिल्म ने नर्गिस को बेहिसाब ख्याति मिली। वे राज कपूर की नायिका बन गई। दोनों ने पापी, प्यार, अंदाज, बरसात, आवारा,जागते रहो, श्री 420 आदि कई फिल्मों में साथ काम किया। भला कौन भूल सकता है, स्री 420 फिल्म का वह गीत जिसमें नायक-नायिका बारिश में गाते हुए जा रहे हैं और उनके पीछे तीन बच्चे चल रहे हैं। मैं न रहूंगी, तुम न रहोगे, रह जाएगी निशानियां… सच है आज राज कपूर शारीरिक रूप से हमारे बीच नहीं हैं पर उनकी निशानियां अमिट हैं। उनके प्यार के गीत जवानियां दोहराती रहेंगी। उन्होंने एक भरी-पूरी विरासत छोड़ी है। 1951 में उनकी निर्देशित-अभिनीत फिल्म आवारा ने उन्हें स्थापित कर दिया। जे. जे. स्कूल आॅफ आर्ट्स से प्रशिक्षित एम. आर. आर्चेकर इस फिल्म के कला निर्देशक थे, कैमरा राधु करमाकार ने संभाला और ख्वाजा अहमद अब्बास एवं वी. पी. साठे ने इसकी कहानी लिखी। इसका ड्रीम स्किवेंस कदाचित हिन्दी फिल्म का
पहला ड्रीम स्विकेंस है। परदे पर जादुई प्रभाव उत्पन्न करने वाला यह दृश्यबंध लगातार 72 घंटे की दिन-रात के काम और दो बार की प्रोसेसिंग का नतीजा है। यह राज कपूर की कल्पना और उनकी टीम की सृजन शक्ति का परिणाम है। फिल्म आवारा ने पूरे दक्षिण एशिया में भारतीय सिनेमा की पहुंच बना दी थी, जिसकी गूंज आज भी सुनाई देती है। इस फिल्म के बिना राज कपूर पर बात नहीं हो सकती है। तीन दिन, 13 से 15 दिसम्बर 2024 तक चलने वाले उनके शताब्दी समारोह में 40 शहरों 135 सिनेमागरों में मात्र सौ रुपए में दिखाई जाने वाली 10 फिल्मों में आवारा शामिल है। दिखाई जाने वाली अन्य फिल्में बरसात, श्री 420, जागते रहो, जिस देश में गंगा बहती है, संगम, मेरा नाम जोकर, बॉबी तथा राम तेरी गंगा मैली हैं। शताब्दी समारोह सरकार, आर.के.फिल्म्स, फिल्म हेरिटेज फाउंडेशन के सहयोग से आयोजित हो रहा है। राज कपूर टीम बनाना, उसे संभाले रखना जानते थे। दोस्ती निभाने में उनका सानी नहीं था। शैलेंद्र, मुकेश, शंकर जय किशन, हसरत जयपुरी, अपने फोटोग्राफर, कैमरामैन राधु करमाकर से उनकी आजीवन दोस्ती रही। 1949 से 1073 यानी 24 साल उनके कैमरामैन रहे राधु करमाकर ने उनके द्वारा निर्देशित चार फिल्मों झ्र श्री 420, मेरा नाम जोकर, सत्यं शिवं सुंदरं तथा हिना के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार पाया। आर. के. फिल्म्स के बैनर तले राधु करमाकर ने अपनी एकमात्र निर्देशित फिल्म जिस देश में गंगा बहती है बनाई थी, जिसमें राज कपूर-पद्मिनी-प्राण ने भूमिकाएं की हैं। इस कैमरामैन के अनुसार आर. के. स्टूडियो भारत का, सही अर्थों में सर्वोत्कृष्ट स्टूडियो था। वहां हमेशा सर्वोत्तम परिणामों के लिए प्रयोग किए जाते थे। राज कपूर ने मेरा नाम जोकर फिल्म में हवाई कलाबाजियां पकड़ने केलिए बजट के बाहर मंहगे अमेरिकन उपकरण, लाइटिंग सिस्टम, इलैक्ट्रिक आर्क आदि मंगाए थे। कुब्रिक द्वारा प्रयुक्त मिशेल एनबीसी कैमरा आरके फिल्म केलिए उपयोग में लाया जाता था, अमेरिकी सिनेमाटोग्राफी पत्रिकाएं शूट के लिए प्रयोग की जाती थीं। वैसे भी राज कपूर के सारे कार्य भव्यता के साथ होते थे, ऐसे ही वे शोमैन नहीं कहे जाते हैं।
राज कपूर ने 70 फिल्मों में अभिनय किया, उनकी अभिनीत अंतिम फिल्म धकधक (1990) थी, साथ 17 फिल्में प्रड्योस की और 10 फिल्मों झ्र आग, बरसात, आवारा, श्री 420, संगम, मेरा नाम जोकर, बॉबी, सत्यमं, शिवं, सुंदरं, प्रेम रोग तथा राम तेरे गंगा मैले झ्र का निर्देशन किया। राज कपूर की फिल्मों के गीत ये रात भीगी भीगी, किसी की मुस्कुराहटों पर, दिल का हाल सुने दिल वाला, आवारा हूं, मेरा जूता है जापानी, आजा सनम, छलिया मेरा नाम, मैं का करूं राम, दोस्त दोस्त न रहा, बोल राधा बोल आदि आज भी सिने-प्रेमियों द्वारा गुनगुनाए जाते हैं। विजनरी सिने-व्यक्तित्व, भारतीय सिनेमा के लैंडस्कोप को आकार देने वाले, राज कपूर पद्म भूषण और दादा साहेब फालके सम्मान से नवाजे गए। उनकी समयातीत फिल्में आम आदमी का स्वर और स्वप्न हैं। प्रधानमंत्री ने उन्हें भारत के सॉफ़्ट पॉवर को उस समय स्थापित करने वाला कहा है जब इस पद का निर्माण भी नहीं हुआ था, राज कपूर के परिवार को सुझाव दिया है कि वे लोग को मंत्रमुग्ध करने वाले राज कपूर पर फिल्म बनाएं। यह शताब्दी समारोह भारतीय फिल्म उद्योग की सुनहरी यात्रा की गाथा है।
नरगिस से प्यार हुआ, इकरार ना हुआ, रात भर रोते शौमेन
राज कपूर की लव लाइफ से जुड़े कई राज बताते हैं। ये वो किस्से, जो बताते हैं कि राज कपूर की लव लाइफ किसी फिल्म की कहानी से कम नहीं थी। सिगरेट से खुद को जलाया और रात भर रोते रहते थे राज कपूर। राज कपूर का जुड़ा था बॉलीवुड की तीन अभिनेत्रियों के साथ नाम। लेकिन एक अभिनेत्री ऐसी थीं, जिनके प्यार में दीवाने हो गए थे राज कपूर। नरगिस के प्यार में राज कपूर ने खुद को कर लिया था तबाह। हिंदी सिनेमा के शौमेन कहे जाने वाले राज कपूर अपने पर्सनल रिलेशनशिप को लेकर खूब सुर्खियां में रहे हैं। यह किस्सा है उस वक्त का, जब हिंदी सिनेमा की दिग्गज अभिनेत्री नरगिस से राज कपूर का नाम जुड़ा था। दोनों ने तकरीबन 16 फिल्मों में एक साथ काम किया था। आवारा, श्री 420, अनाड़ी, चोरी-चोरी जैसी कई फिल्में हैं, जिनमें राज कपूर और नरगिस की जोड़ी एक साथ नजर आई थी।
मीडिया रिपोट्स के अनुसार, फिल्म में अभिनय करते-करते दोनों एक दूसरे के बेहद करीब आ गए थे। उस समय यह चर्चा भी रही की दोनों रिलेशनशिप में रहे। दोनों एक-दूजे से बेपनाह मोहब्बत करते थे, लेकिन शादी नहीं कर पाए। दोनों की जोड़ी सिल्वर स्क्रीन पर सुपरहिट थी, लेकिन रियल लाइफ में सब उलटा था। साल 1958 में नरगिस ने सुनील दत्त से शादी कर ली, जिसके बाद राज कपूर बुरी तरह टूट गए थे। राज कपूर इस धोखे के बाद खुद को संभाल ही नहीं पा रहे थे। मधु जैन की किताब द कपूर्स: द फर्स्ट फैमिली आॅफ इंडियन सिनेमा में इस बात का जिक्र किया गया है। राज कपूर के मुताबिक, उन्हें प्यार में नरगिस से धोखा मिला था। ऐसे में वो इतने परेशान हो गए थे कि शराब पीते थे और बाथरूम में जाकर रोते थे और सिगरेट से खुद को जलाया भी करते थे।
नरगिस के भाइयों की वजह से अलग हुए दोनों- किताब के मुताबिक, राज कपूर की सच्ची मोहब्बत नरगिस ही थीं और वो उनसे शादी के लिए पत्नी को भी छोड़ने के लिए तैयार थे। उन्होंने नरगिस के खिलाफ सार्वजनिक मंच पर कभी कुछ नहीं कहा था, पर नरगिस के भाइयों पर आरोप लगाया था। उनका मानना था कि भाइयों ने ही दोनों के बीच दरार पैदा करवाई है।
नरगिस से मिला धोखा- किताब के मुताबिक, नरगिस से ब्रेकअप के बाद राज कपूर ने एक पत्रकार को कहा था कि, दुनिया वाले उन्हें कहते हैं कि नरगिस को उन्होंने निराश किया है, पर सच्चाई यह है कि उसने मुझे धोखा दिया है। नरगिस की शादी की खबर सुनते ही राज कपूर अपने दोस्तों के सामने ही रो पड़े थे। दर्द बर्दाश्त करने के लिए खुद को सिगरेट से जलाना शुरू कर दिया था।
शराब की लत से परिवार था परेशान- मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, नरगिस से अलग होने के बाद राज कपूर काफी शराब पीने लगे थे। इसके चलते पत्नी कृष्णा कपूर और घरवाले भी परेशान आ गए थे। राज कपूर की पत्नी ने कहा था कि शराब के नशे में धुत होकर आते हैं और बाथटब में बेहोश होकर गिर जाते हैं। रात भर फूट-फूटकर रोते हैं और हर रात यही सब होता था।
नरगिस से मोहब्बत- शौमेन राज कपूर और नरगिस के प्यार के चर्चे उस समय हर जगह थे। नरगिस के अलावा राज कपूर का नाम वैजयंती माले से भी जुड़ा। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, पत्नी कृष्णा से शादी के बाद राज कपूर को वैजयंती माला से प्यार हुआ था। इस रिश्ते की वजह से राज कपूर की पत्नी घर छोड़कर चली गई थीं। बायोग्राफी के दौरान ऋषि कपूर ने बताया था कि जब उनके पापा राज कपूर, वैजयंती माला के साथ थे, तो हम मां के साथ नटराज होटल में रहने चले गए थे। नरगिस और वैजयंती के अलावा राज कपूर का नाम पद्मिनी कोल्हापुरे से भी जुड़ा। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, पद्मिनी ने खुद यह बात कपूली थी कि वह राज कपूर की दीवानी हैं।