TIO, मुंबई।
महाराष्ट्र का औरंगाबाद वह जिला है, जहां पर अजंता और एलोरा की गुफाएं हैं, तो देवगिरी का किला भी है। देवगिरी के किले को अपना केंद्र बनाने के लिए ही मुहम्मद बिन तुगलक ने राजधानी दिल्ली से यहां दौलताबाद लाने का फैसला किया था। तुगलक तो ऐसा नहीं कर पाया, लेकिन यह जिला आज पूरे मराठवाड़ा की राजनीति की राजधानी कहा जाता है। जिले का नाम तो छात्रपति संभाजीनगर कर दिया गया है, पर विधानसभा क्षेत्रों के नामों में अभी औरंगाबाद नाम जुड़ा है। चुनावी राजनीति में भी इतिहास के किस्सों को वोट को साधने के लिए प्रयोग किए जा रहे हैं। देखना है कि छत्रपति शिवाजी के बेटे के नाम पर रखे गए जिले और शहर का नाम, इसका इतिहास वर्तमान में रूझान किस ओर ले जाएगा।
पिछले कुछ चुनावों से यह जिला शिवसेना का गढ़ रहा है। शिवसेना टूटी, तो कई विधायक एकनाथ शिंदे के पाले में आ गए। पूरे जिले में देखा जाए तो लड़ाई शिवसेना शिंदे बनाम शिवसेना यूबीटी के लिए बीच ही है। शहर की दो सीटों पर भाजपा के विधायक हैं, तो असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम भी एक सीट पर मजबूत दावेदारी कर रही है। जिले में कुल नौ सीटें-औरंगाबाद पूर्व, औरंगाबाद मध्य, औरंगाबाद पश्चिम, गंगापुर, फुलंबरी, वैजापुर, कन्नड़, पैठन और सिलौड हैं।
पार्टियों का बंटवारा हुआ, तो लड़ने वालों ने भी बदल लिया पाला
पिछले चुनाव में यहां से शिवसेना से जीते छह विधायकों में से पांच शिवसेना शिंदे गुट के साथ आ गए, तो कन्नड़ से विधायक उदय सिंह राजपूत उद्धव खेमे में ही रहे। अब शिंदे गुट का भाजपा के साथ गठबंधन होने के कारण कुछ भाजपाइयों ने भी पाला बदल लिया। औरंगाबाद पश्चिम, वैजापुर और सिल्लौड़ से भाजपा के कार्यकर्ता इस बार शिवसेना के उद्धव खेमे से ताल ठोक रहे हैं। जालना से भाजपा से सांसद रहे राव साहब दानवे की बेटी संजना जाधव कन्नड़ से शिवसेना शिंदे की उम्मीदवार हैं। उनका सामना उद्धव गुट के विधायक उदय सिंह राजपूत से तो है ही, अपने पति हर्षवर्धन जाधव से भी है, जो निर्दलीय मैदान में हैं। हर्षवर्धन दो बार विधायक रहे हैं। उनके माता और पिता दोनों विधायक रहे हैं।
शिवसेना के दोनों गुट इस बात पर अड़े हैं कि जनता को कैसे बताया जाए कि किसने किसका साथ क्यों छोड़ा। शिंदे गुट के कार्यकर्ता सचिन का कहना है कि बाला साहब ठाकरे की विचारधारा से समझौता करने वालों को अब जनता वोट नहीं देगी। वहीं, उद्धव ठाकरे समर्थक गणेश का मानना है कि सत्ता के लिए पार्टी को तोड़ने वालों से वोटर जवाब लेगा। पिछले चुनाव की तरह भाजपा फुलंबरी, औरंगाबाद पूर्व और गंगापुर से मैदान में है। पैठन, मध्य, पश्चिम, वैजापुर, कन्नड़, सिलौड से शिवसेना उद्धव गुट लड़ रहा है।
नाम बदलना बड़ा मुद्दा
छत्रपति संभाजी नगर जिला यानी औरंगाबाद की चुनावी लड़ाई का सबसे पहला नारा इतिहास से ही जुड़ा दिखाई देता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब विशाल रैली को संबोधित करते हैं, तो वह भी छत्रपति शिवाजी राव और संभाजी राव के अभिवादन से शुरूआत करके महायुति गठबंधन की शिंदे सरकार को बधाई देते हैं। दरअसल, इस सरकार ने ही जिले का नाम बदलकर छत्रपति संभाजी नगर किया। पीएम ने कहा कि महाविकास आघाड़ी के लोग औरंगजेब का गुणगान करने वाले लोग हैं। जब उद्धव ठाकरे ने रैली की, तो उन्होंने कहा कि संभाजीनगर नाम रखने का प्रस्ताव उनकी सरकार में ही हो गया था। खास बात यह भी है कि शिवसेना के दोनों ही गुट बाला साहब ठाकरे की विरासत की बात कर रहे हैं।
शिंदे गुट का कहना है कि नाम बदलने का मुद्दा सबसे पहले बाला साहब ठाकरे ने ही उठाया था, जिसे एकनाथ शिंदे सरकार ने पूरा किया। पीएम मोदी भी अपने भाषण में बाला साहब ठाकरे के सपने की बात करते हैं। कहा जाता है कि एक दौर में यहां के मराठवाड़ सांस्कृतिक मंडल के मैदान में बाला साहब की रैली के बाद पूरा चुनावी माहौल बदल जाया करता था। अपनी सियासी जमीन को बचाने के लिए इस बार उद्धव ठाकरे ने इसी मैदान से रैली की है।
ओवैसी का असर
शहरी क्षेत्रों में मुस्लिम अच्छी खासी संख्या में होने के कारण एआईएमआईएम ने औैरंगाबाद पूर्व और मध्य में अपने प्रत्याशी उतारे हैं। सांसद रहे इम्तियाज अली पूर्व से लड़ रहे हैं, तो मध्य से नासिर सिद्दीकी। इन क्षेत्रों में अपनी पकड़ मजबूत बनाए रखने के लिए औवैसी यहां यात्रा भी निकाल चुके हैं। ऐसे में महाविकास आघाड़ी के लिए यह चुनौती है कि वह बिखराव को रोके। एक तरफ जहां यह प्रचार किया जा रहा है कि ओवैसी की पार्टी को मिले वोटों के बंटवारे के कारण दूसरे राज्यों में भी नुकसान हुआ है, तो वहीं ओवैसी समर्थक कह रहे हैं कि वह अपने मजबूत गढ़ में ही चुनाव लड़ रहे हैं, अन्य सीटों पर प्रत्याशी नहीं उतारे हैं।
महायुति के समर्थक इस लड़ाई में अपने लिए आसान राह देख रहे हैं। हालांकि दोनों ही सीटों पर शिवेसना शिंदे और शिवसेना यूबीटी ने हिंदू प्रत्याशी उतारे हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि वोटों का बंटवारा किसी भी तरफ हो सकता है। जनरल स्टोर चलाने वाले शहजाद का कहना है कि वोटर अब अंतिम समय तक देखता है और उसके बाद तय करता है। दौलताबाद के चौराहे पर चाय की दुकान पर बैठे युनूस का कहना है कि वोटों के बंटवारे की बात लोग समझ चुके हैं। उनके वोट एक दो सीट नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश में सरकार बनने की सोच के साथ जाएंगे।
मराठा आरक्षण की लड़ाई
महाविकास आघाड़ी और महायुति दोनों ही मराठा आरक्षण पर सधी हुई राजनीति कर रहे हैं। शरद पवार खेमा इस तरह का प्रचार कर रहा कि भाजपा इसके खिलाफ है। दरअसल, मराठा आरक्षण देने की शुरूआत देवेंद्र फडणवीस के मुख्यमंत्री रहते हुई थी। दस प्रतिशत इब्ल्यूएस कोटे में से आरक्षण दिया गया था। इसके बाद उद्धव ठाकरे की सरकार के समय कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी थी। एकनाथ शिंदे की सरकार आने के बाद फिर से यह दिया गया। हालांकि मनोज जरांगे पाटिल की अगुआई में मराठा को पिछड़े वर्ग में शामिल करने का आंदोलन किया गया। युवाओं में जरांगे का भी असर है।