TIO, मुंबई
क्या महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद दोनों गठबंधनों महाविकास आघाड़ी (एमवीए) और सत्तारूढ़ महायुति में बड़ा खेल होगा? क्या दोनों गठबंधन में शामिल दल चुनाव बाद भी अपने पुराने गठबंधन के प्रति निष्ठा बनाए रखेंगे? यह सवाल इसलिए कि वर्तमान विधानसभा के पांच साल के कार्यकाल में जिस सीएम पद के सवाल पर विवाद के कारण राज्य को तीन-तीन मुख्यमंत्री मिले और दो दलों शिवसेना व एनसीपी में टूट हुई, उसी अहम सवाल पर दोनों गठबंधन चुप हैं। सीएम पद के अलावा कई अहम मुद्दों पर दोनों गठबंधनों के सहयोगियों के बीच गहरे मतभेद हैं। अहम तथ्य यह है कि चुनाव नतीजे आने के बाद दोनों गठबंधनों के लिए सभी मतभेद भुला कर सरकार गठन के लिए महज 72 घंटे होंगे।
गौरतलब है कि शिवसेना में टूट के बाद एकनाथ शिंदे को सीएम बनाने बनाने वाली भाजपा ने चुनाव में उन्हें अपना चेहरा नहीं बनाया है। गृह मंत्री अमित शाह ने रविवार को कहा कि इसका फैसला चुनाव के बाद होगा। दूसरी ओर एमवीए के अहम सहयोगी एनसीपी (शरद) के मुखिया शरद पवार ने भी शाह की तर्ज पर कहा है कि गठबंधन नतीजे आने के बाद सीएम पद के लिए विमर्श करेगा। उनकी पार्टी के नेता यहां तक कह रहे हैं कि अधिक सीटें जीतने वाले दल का ही हक इस पर बनता है। ऐसे में सवाल उठता है कि जिस उद्धव ठाकरे ने इसी सवाल पर राजग से नाता तोड़ लिया, वह एमवीए की सरकार में दूसरे दल के नेतृत्व को स्वीकार करेंगे?
गठबंधन के सहयोगियों का अलग-अलग रुख
एमवीए में जाति जनगणना और सावरकर के सवाल पर मतभेद हैं। शिवसेना नहीं चाहती कि राज्य में कांग्रेस सावरकर के खिलाफ बोले। हिंदुत्व के जुड़े दूसरे मुद्दों पर भी एमवीए में अलग-अलग सुर सामने आते रहे हैं। दूसरी ओर महायुति में शामिल एनसीपी (अजीत) ने भाजपा के मुख्य नारे बटेंगे तो कटेंगे पर ही सवाल उठा दिया है। इससे पहले भाजपा और एनसीपी में नवाब मलिक की उम्मीदवारी पर ठनी।
उथल पुथल का रहा इतिहास
बीते चुनाव में जनादेश के बाद सीएम पद पर मतभेद के बीच अचानक राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने फडणवीस को सीएम और अजीत पवार को डिप्टी सीएम पद की शपथ दिला दी। हालांकि इसके 80 घंटे बाद शिवसेना ने एनसीपी-कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई और उद्धव सीएम बने। ढाई साल बाद शिवसेना में टूट हुई और एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में भाजपा के समर्थन से नई सरकार बनी। इसी बीच एनसीपी भी दो फाड़ हो गई। इस उथलपुथल में महाराष्ट्र ने पांच साल में तीन-तीन सीएम देखे।
सबके लिए सीएम पद का सवाल अहम
दोनों गठबंधनों में शामिल सभी दलों के लिए सीएम पद का सवाल सबसे अहम है। शिवसेना का राजग से अलग होना, शिवसेना में टूट, एनसीपी में विद्रोह, भाजपा और उद्धव ठाकरे में अनबन सबके पीछे सीएम का ही पद था। बीते विधानसभा चुनाव के बाद राजग से शिवसेना से अलग करने के लिए भले ही एनसीपी-कांग्रेस ने उद्धव को सीएम बनाने की शर्त मान ली, मगर अब ऐसी स्थिति नहीं है। अरसे बाद मजबूत हो कर उभरी कांग्रेस की महत्वाकांक्षा भी सरकार का नेतृत्व करने की है। यही स्थिति एनसीपी (शरद) की भी है। मजबूरी में शिंदे को सीएम बनाने वाली भाजपा की शुरू से ही सरकार का नेतृत्व करने की इच्छा रही है।
वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश
दोनों गठबंधनों में शामिल दलों का जोर सीटें बढ़ाने पर है, जिसके जरिये सीएम पद के लिए दावेदारी पेश करने के साथ मोलभाव किया जा सके। इसके लिए शिंदे गुट का पूरा जोर मराठा वोट बैंक पर कब्जा करने की है। वहीं, अजीत गुट मूल एनसीपी के वोट बैंक में सेंध लगाना चाहता है। भाजपा ओबीसी-अगड़ा समीकरण के सहारे पुराना प्रदर्शन दोहराना चाहती है।
नतीजे के बाद बढ़ेगी सरगर्मी
जनादेश चाहे जिस गठबंधन के पक्ष में हो, मगर नतीजे आने के बाद सीएम पद के सवाल पर खींचतान मचना तय है। अहम तथ्य यह है कि सरकार गठन करने के लिए दोनों गठबंधनों के पास महज 72 घंटे का समय ही बचेगा। गौरतलब है कि चुनाव के नतीजे 23 नवंबर को आएंगे, जबकि वर्तमान विधानसभा का कार्यकाल 26 नवंबर को खत्म हो जाएगा।