TIO, मुंबई।
महाराष्ट्र में आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर प्रचार जारी है। राज्य के इस चुनाव में सियासी रसूख रखने वाले कई परिवार भी आपनी किस्मत आजमा रहे हैं। इनमें से एक ठाकरे परिवार है, जिसका महाराष्ट्र की सियासत में अपना एक अलग स्थान रहा है। पिछले विधानसभा चुनाव के बाद चंद दिनों की देवेंद्र फडणवीस सरकार के बाद इसी परिवार के सदस्य उद्धव ठाकरे राज्य के मुख्यमंत्री बने। हालांकि, उनके कैबिनेट सहयोगी एकनाथ शिंदे की बगावत ने करीब ढाई साल में ही उद्धव की सरकार गिरा दी। पार्टी पर अधिकार और चुनाव चिह्न भी उद्धव के पास से शिंदे के पास चला गया। यहीं से बालासाहेब ठाकरे की सियासी विरासत पर दावेदारी की लड़ाई भी शुरू हो गई। अब इस विधानसभा चुनाव में विरासत का मुद्दा दोनों ओर से उठाया जा रहा है। उधर राज ठाकरे के बेटे अमित भी पहली बार चुनावी रण में उतरे हैं।
शिवसेना पार्टी की कहानी क्या है?
19 जून 1966 को बालासाहेब ठाकरे ने शिवसेना की स्थापना की थी। पत्रकार और व्यंग्य कार्टूनिस्ट बाल ठाकरे ने शिवसेना का गठन ‘मराठी अस्मिता’ के मुद्दे को लेकर किया था। दरअसल, बालासाहेब ठाकरे ने अपने करियर की शुरूआत 1950 के दशक के प्रारंभ में मुम्बई के फ्री प्रेस जर्नल में कार्टूनिस्ट के रूप में की थी। उनके कार्टून जापानी समाचार पत्र असाही शिंबुन और द न्यूयॉर्क टाइम्स के रविवारीय संस्करण में भी छपते थे। 1960 के दशक में वे राजनीति में काफी सक्रिय रूप से शामिल हो गए। बाल ठाकरे ने अपने विचारों की वकालत करने के लिए 1960 में मराठी साप्ताहिक राजनीतिक पत्रिका ‘मार्मिक’ शुरू की। इसमें ठाकरे अपने राजनीतिक कॉमिक्स बनाते और लेख प्रकाशित करते थे। इसी दौरान उन्होंने ‘महाराष्ट्र महाराष्ट्रियों के लिए’ एक नारा भी दिया। ठाकरे के पिता केशव ठाकरे मुख्य रूप से मराठी भाषी राज्य के रूप में महाराष्ट्र के निर्माण में सहायक थे। केशव ठाकरे ने शिवाजी के नाम पर नए आंदोलन का नाम रखने का सुझाव दिया था। 1968 में शिवसेना पार्टी ने ग्रेटर बॉम्बे नगर निगम के स्थानीय चुनावों में 140 में से 42 सीटें जीतीं।
शिवसेना ने यूं बढ़ाया महाराष्ट्र में अपना दबदबा
धीरे-धीरे भारत में एक मजबूत हिंदू समर्थक नीति के समर्थक बालासाहेब ठाकरे के नेतृत्व में शिवसेना महाराष्ट्र में एक प्रमुख राजनीतिक ताकत बन गई। हालांकि, बाल ठाकरे ने कभी कोई आधिकारिक पद नहीं संभाला, न ही कभी चुनाव लड़ा, लेकिन वर्षों तक उन्हें महाराष्ट्र का शक्तिशाली व्यक्ति माना जाता था।
1995 में महाराष्ट्र में शिवसेना पहली बार सरकार में आई
शिवसेना पहली बार 1985 में मुंबई महानगरपालिका में सत्ता में आई। 1989 में बालासाहेब ठाकरे, प्रमोद महाजन और गोपीनाथ मुंडे के नेतृत्व में शिवसेना ने भाजपा के साथ गठबंधन किया। 1995 में महाराष्ट्र में शिवसेना-भाजपा गठबंधन सरकार अस्तित्व में आई। भाजपा-शिवसेना गठजोड़ ने 1995 में विधानसभा की 288 सीटों में से 138 सीटें जीतीं और राज्य में गठबंधन सरकार बनी। शिवसेना के नेता मनोहर जोशी महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने। साथ ही 1999 में केंद्र में बनी अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में शिवसेना के मनोहर जोशी लोकसभा के अध्यक्ष थे।
अलग होकर राज ठाकरे ने बनाई अलग पार्टी
2004 के चुनाव में भाजपा-शिवसेना गठबंधन को बड़ा झटका लगा, जब महाराष्ट्र में सरकार चली गई, जिसके बाद यह अटकलें लगाई जाने लगीं कि आखिरकार शिवसेना नेता बाल ठाकरे का उत्तराधिकारी कौन होगा। उनके भतीजे राज ठाकरे को एक संभावना के रूप में देखा जाने लगा। हालांकि, बाल ठाकरे के बेटे उद्धव अंतत: उत्तराधिकारी बने और 2003 में उन्होंने शिवसेना के कार्यकारी अध्यक्ष का पद संभाला। इसके बाद राज ठाकरे ने पार्टी छोड़ दी और 9 मार्च 2006 को मुंबई में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना की स्थापना की।
उधर उद्धव ने शिवसेना का नेतृत्व जारी रखा। साल 2010 में पार्टी की वार्षिक दशहरा रैली के दौरान उद्धव के बेटे आदित्य ठाकरे को ‘युवा सेना’ के प्रमुख के रूप में लॉन्च किया गया। 2014 के चुनावों में शिवसेना-भाजपा गठबंधन टूट गया लेकिन चुनावों के बाद शिवसेना-भाजपा गठबंधन फिर से अस्तित्व में आया और उन्होंने महाराष्ट्र में सरकार बनाई। इसमें भाजपा के देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री बने।
ठाकरे परिवार के सदस्य पहली बार चुनावी राजनीति में आए
पिछले विधानसभा चुनाव में ठाकरे परिवार के सदस्य आदित्य ठाकरे पहली बार चुनाव में अपनी किस्मत आजमाई। वह चुनाव लड़ने वाले ठाकरे परिवार के पहले सदस्य बन गए। उन्होंने मुंबई में अपनी पार्टी शिवसेना के गढ़ वर्ली सीट पर बहुजन रिपब्लिकन सोशलिस्ट पार्टी के सुरेश माने को 70 हजार वोट से अधिक से हराया।
चुनाव के बाद मुख्यमंत्री पद को लेकर भाजपा और शिवसेना का गठबंधन टूट गया। बदली सियासी परिस्थिति में उद्धव ठाकरे की शिवसेना ने शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस के साथ गठजोड़ किया। इस गठबंधन सरकार को महाविकास अघाड़ी कहा गया, जिसके मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे बने। नवंबर 2019 में शिवसेना प्रमुख उद्धव महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बनने वाले ठाकरे परिवार के पहले सदस्य हो गए। इससे पहले उद्धव ने कभी कोई चुनाव नहीं लड़ा था। मुख्यमंत्री बनने के बाद उद्धव छह महीने के भीतर महाराष्ट्र विधान परिषद का चुनाव जीतकर आए। महाविकास अघाड़ी सरकार में उनके बेटे आदित्य को कैबिनेट मंत्री बनाया गया।
अपने सहयोगी मंत्री की बगावत ने उद्धव की कुर्सी छीनी
2022 में शिवसेना नेता और कैबिनेट मंत्री एकनाथ शिंदे ने उद्धव ठाकरे के नेतृत्व के खिलाफ बगावत की। उद्धव ठाकरे नवंबर 2019 से जून 2022 तक करीब ढाई साल मुख्यमंत्री की कुर्सी पर रहे। जून 2022 में उनके ही कैबिनेट सहयोगी एकनाथ शिंदे की बगावत के बाद ठाकरे को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। 30 जून 2022 को मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में नई सरकार ने शपथ ली। इस तरह से शिवसेना दो गुटों में बंट गई, जिसमें एक का नेतृत्व उद्धव ने किया तो दूसरे का नेतृत्व एकनाथ शिंदे ने किया।
अबकी बार उद्धव ठाकरे के बेटे और भतीजे चुनाव मैदान में
महाराष्ट्र की सियासत में अहम स्थान रखने वाले ठाकरे परिवार के दो सदस्य इस चुनाव में उतरे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य वर्ली सीट से फिर से चुनाव लड़ रहे हैं। आदित्य शिवसेना (यूबीटी) के एक प्रमुख नेता और युवा सेना के अध्यक्ष हैं। इस चुनाव में पूर्व मंत्री का सामना पूर्व केंद्रीय मंत्री और राज्यसभा सांसद मिलिंद देवड़ा से है। देवड़ा एकनाथ शिंदे की अगुवाई वाली शिवसेना के टिकट पर मैदान में हैं। इसके अलावा, महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) ने राज ठाकरे के करीबी सहयोगी माने-जाने वाले संदीप देशपांडे को अपना उम्मीदवार बनाया है।
राज ठाकरे के बेटे पहली बार चुनाव लड़ रहे
मध्य मुंबई की माहिम विधानसभा सीट तीन सेनाओं के मुकाबले में फंस गई है। इस सीट से महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के मुखिया राज ठाकरे के बेटे अमित ठाकरे पहली बार चुनावी मैदान में उतरे हैं। भतीजे अमित के सामने पूर्व सीएम उद्धव ठाकरे ने महेश सावंत को उतारा है। वहीं भाजपा ने अमित ठाकरे को समर्थन देने का वादा किया है, जबकि उसकी सहयोगी एकनाथ शिंदे की अगुवाई वाली शिवसेना ने अपने मौजूदा विधायक सदा सरवणकर को मैदान में उतारा है। इसके चलते माहिम में मनसे, शिवसेना (शिंदे गुट) और शिवसेना (यूबीटी) के बीच त्रिकोणीय लड़ाई मानी जा रही है।