TIO, नई दिल्ली।
ओडिशा के राज्यपाल और झारखंड के पूर्व सीएम रघुवर दास वापस सक्रिय राजनीति में लौट कर विधानसभा चुनाव लड़ना चाहते हैं। उन्होंने अपनी इच्छा से गृह मंत्री अमित शाह को न सिर्फ अवगत कराया है, बल्कि राज्यपाल रहते राज्य में अपनी सक्रियता भी बढ़ा दी है। हालांकि आदिवासी वर्ग के नाराज होने और पार्टी में इस वर्ग के नेताओं के विरोध के कारण भाजपा नेतृत्व दास को चुनाव मैदान में उतारने के सवाल पर असमंजस में है।
दास के विस चुनाव लड़ने के सवाल पर राज्य के सीएम रहे आदिवासी वर्ग के नेता ने कहा कि इसका नतीजे पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। दास ने सीएम रहते अपने कई फैसलों से आदिवासी वर्ग को पार्टी के खिलाफ कर दिया था। खासतौर पर उनकी आदिवासियों की जमीन गैरआदिवासियों को बेचने के लिए कानून बनाने की कोशिश ने इस वर्ग के एक बड़े हिस्से को भाजपा से दूर कर दिया। बीते चुनाव में पार्टी 25 सुरक्षित सीटों में से 23 सीटों पर हार गई। लोकसभा चुनाव में भी सभी पांच सुरक्षित सीटें विपक्ष ने जीती। ऐसे में अगर दास की राजनीति में वापसी हुई तो आदिवासी वर्ग को साधने की सभी कोशिशों पर पलीता लग जाएगा।
क्या है भाजपा की रणनीति?
सत्ता में वापसी के लिए भाजपा 45 फीसदी ओबीसी और 26 फीसदी आदिवासी वर्ग को साधना चाहती है। आदिवासी वर्ग को साधने के लिए पार्टी ने हाल ही में झामुमो के वरिष्ठ नेता और पूर्व सीएम चंपई सोरेन को साधा है। इसी वर्ग के पूर्व सीएम मधु कोड़ा को पार्टी में शामिल किया है। वहीं दूसरी ओर ओबीसी वर्ग में पैठ कायम रखने के लिए पार्टी दास को मैदान में उतारने के अलावा जदयू और आजसू से गठबंधन की तैयारी कर रही है। संतुलन साधने के लिए माथापच्ची पार्टी के वरिष्ठ नेता के मुताबिक सत्ता हासिल करने के लिए आदिवासी और ओबीसी के बीच संतुलन साधने की जरूरत है। बीते चुनाव में सरयु राय से मिली हार को छोड़ दें तो दास जमशेदपुर पूर्व से लगातार पांच बार विधायक रहे हैं।