TIO, नई दिल्ली।
देश के नामचीन अस्पताल सुपरबग की चपेट में हैं। यहां ओपीडी से लेकर मरीजों के वार्ड और आईसीयू तक में कई तरह के बैक्टीरिया मौजूद हैं जो इन्सानों के लिए काफी घातक साबित हो सकते हैं। यह जानकारी नई दिल्ली स्थित भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के रोगाणुरोधी प्रतिरोध निगरानी नेटवर्क की सालाना रिपोर्ट में सामने आई है।
रिपोर्ट के अनुसार, जनवरी से दिसंबर 2023 के बीच अस्पताल पहुंचने वालों में से करीब एक लाख के नमूने लिए गए। घातक बैक्टीरिया और सुपरबग की पहचान के लिए मरीजों के रक्त, मल मूत्र, पस, मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी से सीएसएफ नमूने लेकर जब उनकी जांच की गई तो करीब 10 तरह के घातक बैक्टीरिया मिले हैं, जिनमें से लगभग सभी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुपरबग की श्रेणी में आते हैं।
रिपोर्ट में बताया कि लखनऊ, दिल्ली और चंडीगढ़ सहित देश के 21 अस्पतालों की ओपीडी, वार्ड और आईसीयू में क्लेबसिएला निमोनिया के बाद एस्चेरिचिया कोलाई सबसे आम रोगजनक पाया गया। इनके अलावा एसिनेटोबैक्टर बाउमानी, स्यूडोमोनास एरुगिनोसा और स्टैफिलोकोकस आॅरियस भी मिला है जो फोड़े-फुंसियों सहित त्वचा के संक्रमण, साइनसाइटिस जैसे श्वसन संक्रमण और खाद्य विषाक्तता का एक सामान्य कारण होता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने साल 2017 में एस्चेरिचिया कोलाई बैक्टीरिया को सुपरबग घोषित किया। यह उत्तर से लेकर दक्षिण और पश्चिम से लेकर मध्य राज्यों के लगभग सभी बड़े अस्पतालों की ओपीडी और वार्ड में मौजूद है।
इन अस्पतालों में मिले सुपरबग
आईसीएमआर ने देश में चार संस्थान को नोडल केंद्र बनाया है। इसमें दिल्ली एम्स, चंडीगढ़ पीजीआई, सीएमसी वैल्लोर और पुडुचेरी स्थित जेआईपीएमईआर शामिल हैं। इन अस्पतालों के साथ-साथ दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल, दिल्ली एम्स ट्रामा सेंटर और लखनऊ स्थित केजीएमयू में मरीजों का नमूना लिया है। इनके अलावा पुणे स्थित एएफएमसी, भोपाल एम्स, जोधपुर एम्स, अपोलो अस्पताल चैन्ने, असम मेडिकल कॉलेज, कोलकाता मेडिकल कॉलेज, कोलकाता स्थित टाटा मेडिकल कॉलेज, इम्फाल स्थित रिम्स, मुंबई का पीडी हिंदुजा अस्पताल, वर्धा स्थित एमजीआईएमएस, मणिपाल स्थित केएमसी और श्रीनगर के एसकेआईएमएस अस्पताल सहित 21 शीर्ष अस्पतालों को शामिल किया है। ये वही अस्पताल हैं जहां देश ज्यादातर आबादी इलाज के लिए पहुंच रही है।
यूं बढ़ रहा जोखिम
आईसीएमआर की वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. कामिनी वालिया का कहना है कि रोगाणुरोधी प्रतिरोध किसी सूक्ष्मजीव (बैक्टीरिया, वायरस, परजीवी) से इनके उपचार में इस्तेमाल होने वाली एंटीमाइक्रोबियल दवाएं (एंटीबायोटिक, एंटीफंगल, एंटीवायरल, एंटीमाइरियल और एंटीहेलमिंटिक्स) के विरुद्ध प्रतिरोध विकसित कर लेने की स्थिति है। यह तब होता है जब कोई सूक्ष्मजीव समय के साथ बदलता जाता है और दवाओं के प्रति प्रतिक्रिया प्रकट नहीं करता जिससे संक्रमण का इलाज करना कठिन हो जाता है तथा बीमारी के प्रसार, इसकी गंभीरता और मृत्यु का खतरा बढ़ जाता है।