TIO, नई दिल्ली।
जलवायु परिवर्तन से पृथ्वी तेजी से विनाशकारी पथ की ओर बढ़ रही है। धरती की कई प्रणालियों को टिपिंग का सबसे अधिक खतरा है। पॉट्सडैम इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट इम्पैक्ट रिसर्च (पीआईके) के शोधकर्ताओं के अध्ययन में सामने आया कि मानवजनित जलवायु परिवर्तन से पृथ्वी की अहम प्रणालियों जैसे बर्फ की चादरें और महासागरीय परिसंचरण पैटर्न के टिपिंग तत्वों में भारी अस्थिरता आ रही है। यह अध्ययन नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित किया गया है।
जलवायु विज्ञान में टिपिंग प्वाइंट एक महत्वपूर्ण सीमा है, जिसे पार करने पर जलवायु प्रणाली में बड़े, त्वरित और अक्सर अपरिवर्तनीय परिवर्तन होते हैं। शोधकतार्ओं के मुताबिक, आने वाली शताब्दियों और उससे आगे भी टिपिंग के खतरों को प्रभावी रूप से सीमित करने के लिए हमें नेट-जीरो या कुल शून्य ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को हासिल करना और इसे बनाए रखना होगा। इस सदी में वर्तमान नीतियों के चलते हम 2300 तक 45 फीसदी तक टिपिंग के भारी खतरों के जद में होंगे, भले ही बढ़ते तापमान को फिर से 1.5 डिग्री सेल्सियस से नीचे ही क्यों न लाया जाए।
एक भी जलवायु तत्व अस्थिर हुआ तो बढ़ेगा खतरा
शोधकतार्ओं ने 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान बढ़ने के कारण चार मुख्य जलवायु तत्वों में से कम से कम एक को अस्थिर करने के खतरों के प्रति आगाह किया है। ये हैं ग्रीनलैंड की बर्फ की चादर, पश्चिम अंटार्कटिक की बर्फ की चादर, अटलांटिक मेरिडियन ओवरटर्निंग सकुर्लेशन और अमेजन वर्षावन। ये चारों पृथ्वी की जलवायु प्रणाली की स्थिरता को नियमित करने में अहम भूमिका निभाते हैं।
20 से 30 वर्षों में खतरनाक बिंदु पर पहुंच जाएगा तापमान
शोध के नतीजे बताते हैं कि 1.5 डिग्री से अधिक तापमान के हर दसवें हिस्से के साथ टिपिंग के खतरों में वृद्धि होती है। यदि दो डिग्री से अधिक वैश्विक तापमान बढ़ जाए तो टिपिंग के खतरे और भी तेजी से बढ़ेंगे। वर्तमान जलवायु नीतियों के चलते दुनियाभर में इस सदी के अंत तक तापमान के लगभग 2.6 डिग्री तक बढ़ने का अनुमान है। शोधकतार्ओं का अनुमान है कि अगले 20 से 30 सालों मे पृथ्वी का तापमान टिपिंग प्वाइंट तक पहुंच जाएगा।
आधे से अधिक जलवायु संबंधी टिपिंग प्वाइंट सक्रिय
शोधकर्ताओं के अनुसार, एक दशक पहले पहचाने गए जलवायु टिपिंग प्वाइंट्स में से आधे से अधिक अब सक्रिय हो गए हैं। इनके सक्रिय होने से जलवायु संबंधी घटनाओं में वृद्धि होने लगी है। दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में अचानक भारी बरसात, सूखा, भीषण गर्मी, तूफान इसी का परिणाम हैं।