शशी कुमार केसवानी

भोपाल। मध्यप्रदेश कांग्रेस के कद्दावर नेता, भोपाल उत्तर विधानसभा से लंबे समय तक विधायक रहे और हर दिल अजीज आरिफ अकील का सोमवार सुबह इंतकाल हो गया है। शेर ए भोपाल के लकब से पहचाने जाने वाले पूर्व मंत्री आरिफ अकील वैसे तो पिछले कई दिनों से बीमारी की आगोश में समाए हुए थे। रविवार सुबह तबीयत ज्यादा खराब होने के बाद उन्हें भोपाल के अपोलो अस्पताल में भर्ती कराया गया। देर शाम तक उनकी बिगड़ती हालात के चलते उन्हें वेंटीलेटर पर रखा गया। रात होते होते खबर आई कि शेर ए भोपाल को बीमारी ने पस्त कर दिया।

आरिफ अकील छात्र राजनीति से लेकर सक्रिय राजनीति में अपनी एक अलग तरह की राजनीति करते थे। हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि वे मुस्लिम वोटरों के दम पर चुनाव लड़ते और जीतते थे, जबकि हकीकत कुछ अलग ही है। उन्हें हिन्दू वोट हमेशा मिलते थे। यही कारण रहा कि उनके सामने कोई भी अन्य उम्मीदवार टिक नहीं पाया। स्व. खान शाकिर अली साहब के बाद आरिफ ऐसे दूसरे नेता रहे, जिसने बिना किसी भेदभाव के भोपाल के लिए काम किया और अनेकों लोगों के लिए लड़ाईयां भी लड़ी। हॉकी में गहरी दिलचस्पी रखने वाले आरिफ अकील मतभेद बड़े नेताओं से अक्सर रहे हैं, इस लिस्ट में सबसे ऊपर नाम गुफरान-ए-आजम और असलम शेर का नाम है। पर उनके दिल में भोपाल के लिए जो मोहब्बत थी, वह शब्दों में बताना मुश्किल है।

अक्सर विवादों में घिरने के बाद भी अपनी छवि को साफ-सुथरा रखने वाले इस बार परिवार के विवाद में टूट जैसे गए थे। मेरे से हर मुलाकात में कहते थे दुनिया से जीता जा सकता है, पर परिवार ने हमें कमजोर कर दिया है। मैं चाहता हूं कि जैसा भोपाल में जैसा अमन चैन है, वैसे ही मेरे परिवार में भी रहे। पर उसके आसार कम ही नजर आते हैं। मैं उनसे अपने खुद के रिश्ते की बात करू तो चार दशक से मेरे और आरिफ भाई के बीच करीबी रिश्ते रहे हैं। यहीं नहीं मेरे पिता और मेरे बड़े भाई से भी उनके बहुत गहरे रिश्ते रहे हैं। मेरे बड़े राजकुमार केसवानी पर कई बार नाराज भी जाते थे, पर यह बात कुछ समय के लिए होती थी। विवाद हमेशा भोपाल के विकास को लेकर ही होता था। हमें आज भी याद है। बावरी मस्जिद को लेकर भोपाल में हुए दंगे के दौरान मेरे घर अक्सर आ जाते थे खैरियत पूछने। वहीं कोरोना के दौर में भी लगातार फोन पर बात करते रहते थे। बाल विहार स्थित चैलेंज के आॅफिस में अक्सर सुबह 11 बजे आते थे और दोपहर के तीन बजे तक बैठे रहते थे। यह क्रम कई सालों तक चला है। यहां तक की उनका फोन नंबर भी उसी आॅफिस का दिया हुआ रहता था। और लोग भी मिलने वहीं आते थे।

राजधानी भोपाल की उत्तर विधानसभा से लगातार 40 साल तक सियासत करने वाले आरिफ अकील कांग्रेस शासनकाल में दो बार मंत्री भी रहे हैं। एक अलग अंदाज की राजनीति करने वाले अकील ने अल्पसंख्यक कल्याण, जेल, खाद्य जैसे महत्वपूर्ण विभागों का जिम्मा संभाला। उत्तर विधानसभा पर एकक्षत्र साम्राज्य स्थापित करने वाले अकील ने सियासत के शुरूआती दौर में जनता दल से भी चुनाव लड़ा। इसके बाद कांग्रेस के साथ सियासी सीढ़ियां चढ़ते हुए उन्होंने भाजपा के कई दिग्गजों को चुनावी मैदान में परास्त किया। भाजपा शासनकाल में तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा उत्तर विधानसभा को गोद ले लिए जाने का असर भी अकील के मजबूत किले को नहीं डिगा पाई।

छात्र राजनीति से विधानसभा तक
आरिफ अकील की सियासी पारी की शुरूआत छात्र राजनीति से हुई। सैफिया कॉलेज की सियासत में लंबे समय तक उनका दबदबा कायम रहा। कॉलेजों में छात्र संघ चुनाव पद्धति जारी रहने तक उनका यह जलवा कायम ही रहा। इसके बाद अकील ने जब विधानसभा की दहलीज पर कदम रखा तो दोबारा पीछे मुड़कर नहीं देखा। लगातार जीत के रिकॉर्ड में एक नाम उनका भी शामिल है। आरिफ अकील के हिस्से शैक्षणिक डिग्रियों की भरमार रही है। उन्होंने कई स्नातकोत्तर डिग्री के साथ विधि की पढ़ाई भी की थी। पिछली कांग्रेस सरकार में शामिल रहे विधायक मंत्रियों में सर्वाधिक डिग्रियां रखने वाले अकील ही थे।

भाजपा में बेहतर रसूख
आरिफ अकील कांग्रेस के उन चुनिंदा नेताओं में शुमार माने जाते रहे हैं, जिनकी अपनी पार्टी में मजबूत पकड़ के साथ भाजपा में भी समान पहुंच रही है। पूर्व मुख्यमंत्री स्व बाबूलाल गौर और आरिफ अकील का दोस्ताना काफी मशहूर रहा है। कहा जाता है कि दोनों मित्र चुनाव के दौरान एक दूसरे के क्षेत्र में सहयोग भी करते रहे हैं। महीने के कुछ तयशुदा दिन ऐसे भी हुआ करते थे कि दोनों एक दूसरे के घर पर सजे दस्तरख्वान पर साथ होते थे।

अंदाज कुछ ऐसा
अकील किसी एलर्जी के शिकार थे। जिसके चलते वे चमड़े का इस्तेमाल नहीं करते थे। यही वजह है कि वे हमेशा पैरों में दो बद्दी की स्लीपर पहना करते थे। क्षेत्र से लेकर विधानसभा तक और भोपाल से लेकर दिल्ली तक भी वे इसी अवस्था में पहुंचते थे। अकील के छात्र राजनीति कार्यकाल में उनका सिगरेट पीने का खास अंदाज भी बहुत पसंद किया जाता था। अंगूठे और उंगली के बीच दबाकर गहरा कश खींचना लोग अब भी याद करते हैं। यह गुर उन्होंने ट्रक मैकेनिक वहीद भाई से सीखा था। आरिफ अकील ने खुद भी वहीद भाई के हाथ की खुटियाएं खाई हैं। यह एक दोस्ताना अंदाज में आरिफ अकील के कई जगह रिश्ते चलते थे।

बसा डाला आरिफ नगर
इसको सियासी मकसद से हटकर देखा जाए तो यह हजारों लोगों के आशियाने दे देने की महारत भी आरिफ अकील के ही खाते में रही है। फुटपाथ, कब्रिस्तान और शहर में यहां वहां शरण लेकर सिर छुपाने वाले लोगों के लिए आरिफ अकील ने मप्र वक्फ बोर्ड के आधिपत्य की करीब 69 एकड़ जमीन पर आरिफ नगर बसाया। यहां अब एक बड़ी और व्यवस्थित बस्ती आबाद है। पिछले दिनों रेलवे ट्रैक निर्माण के दौरान बेघर हुए लोगों को भी अकील ने आरिफ नगर स्टेडियम के क्षेत्र में बसाया है।

बीमारी से हुए पस्त तो बेटे को सौंपी विरासत
कोविड काल से बीमार चल रहे आरिफ अकील ने इस विधानसभा चुनाव में अपनी सत्ता बेटे आतिफ को सौंप दी। हालांकि उनके फैसले से पारिवारिक विघटन के हालात भी बने। लेकिन आतिफ की उत्तर विधानसभा क्षेत्र से ऐतिहासिक जीत ने इन सारे विवादों पर विराम लगा दिया।

जिनके लिए रहे मशहूर

  • उत्तर विधानसभा क्षेत्र में पानी प्याऊ का निर्माण। अपनी विधायक निधि से किए जाने वाले इस निर्माण को उन्होंने क्षेत्र के उलेमा, बुद्धिजीवी, प्रसिद्ध लोगों, शायर, खिलाड़ियों के नाम समर्पित किया
  • हर माह अकील के कार्यालय में होने वाली नशिस्त में शहर, प्रदेश, देश के कई बड़े शायर और कवि अपनी मौजूदगी दर्ज करवा चुके हैं। इस दौरान हर कार्यक्रम में किसी एक व्यक्ति को सम्मानित किया जाता है।
  • पिछले तीन दशक से स्वतंत्रता दिवस पर निकलने वाली पैगाम ए मुहब्बत रैली देशभर में इकलौती है।
  • एक मई को मजदूर दिवस पर आयोजित पुराने गीतों से सजने वाली शाम भी देशभर में इकलौती कही जा सकती है।
  • सालाना किरात कंपीटिशन भी देशभर में मशहूर है। इसमें विदेशों से आए उलेमा भी शामिल होते रहे हैं।
  • रमजान माह में आयोजित किया जाने वाला इफ्तार कार्यक्रम भी बहुत वृहद स्तर पर आयोजित किया जाता है।
  • हर साल स्पोर्ट्स के कार्यक्रम भी अकील द्वारा आयोजित किए जाते हैं।
Shashi Kumar Keswani

Editor in Chief, THE INFORMATIVE OBSERVER