TIO, जम्मू।

डेढ़ महीने से जम्मू संभाग अशांत है। वर्ष 2008 के बाद एक बार फिर लगातार आतंकी वारदातों से लोग डरे और चिंतित हैं। पिछले 46 दिन से सात आतंकी वारदातों में 11 सैन्य जवान बलिदान हो चुके हैं और 10 आम नागरिकों की मौत हो गई। रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार, अब इस पर निर्णायक रणनीति का समय आ चुका है। हर बार आतंकी हमला कर गायब हो गए। इन आतंकियों की जंगलों में अब भी मौजूदगी लोगों को परेशान कर रही है।

सेना के पूर्व कर्नल सुशील पठानिया का कहना है कि बीहड़ और कठिन इलाकों में जल्दबाजी में आतंकवादियों का पीछा करने से हमारे सैनिकों को हाईनि हो रही है। जिन इलाकों में आतंकवादियों के होने की सूचना है। यहां वहां ग्रेनेड, मोर्टार और गनशिप हेलीकॉप्टर का इस्तेमाल करके उन्हें मार गिराया जाना चाहिए। इस रणनीति का इस्तेमाल पहले भी किया जा चुका है और इसके बहुत अच्छे परिणाम मिले हैं।

पूर्व डीजीपी एसपी वेद कहते हैं कि पहले भी आतंकी वारदातें होती थीं। तब आतंकी फिदायीन के रूप में आते थे। हमला कर सात आठ लोगों को मारा और खुद भी मर गए। लेकिन अब ऐसा नहीं हो रहा। वह मारने से पहले भागने का रास्ता तय कारते हैं। ताकि एक हमला करने के बाद फिर से हमला कर सकें। यह आतंकियों की नई रणनीति है। वह अब फिदायीन बनकर नहीं आते। वह अपने लिए ठिकाना बनाते हैं। फिर घात लगाकर हमला करते हैं। हमला कर भाग जाते हैं। वह जंगल, पहाड़ और युद्ध में लड़ने का प्रशिक्षण लेकर आए हैं। इन तक पहुंचने के लिए ठोस रणनीति बनानी पड़ेगी। पूर्व कर्नल सुशील पठानिया कहते हैं कि सुरक्षा बलों को आतंकवाद विरोधी अभियान चलाते समय सेक्शन और प्लाटून अभ्यास पर ही टिके रहना चाहिए।

जम्मू संभाग में हुए हमलों के बाद चलाए गए सिर्फ तलाशी अभियान, मिला कुछ नहीं

  • पहला हमला: 9 जून, रियासी में शिवखोड़ी में यात्रियों की बस पर हमला। इसमें 10 यात्री मारे गए और 40 घायल हो गए। आतंकियों की तलाश में सेना और पुलिस पिछले 46 दिन 25 सर्च आपरेशन चला चुकी है। लेकिन एक आतंकी नहीं मिला अभी तक।
  • दूसरा हमला: 11 और 12 जून को डोडा और भद्रवाह में पुलिस और सेना के अस्थायी कैंप पर हमला हुआ। इसमें 7 जवान मायल हो गए। आतंकियों की तलाश अब तक जारी है। हमले के बाद आतंकियों का पता नहीं चला।
  • तीसरा हमला: 7 जुलाई राजौरी जिले में सुरक्षा चौकी पर हमले में एक सैन्यकर्मी घायल हुआ।
    चौथा हमला: 8 जुलाई को कठुआ आतंकी हमले में 5 जवान बलिदान हो गए। इनकी तलाश में 3000 जवान लगे हुए हैं। लेकिन हमले के बाद अब तक एक भी आतंकी नहीं मारा गया है।
  • पांचवां हमला: 16 जुलाई को डोडा के जंगल में सेना पर आतंकियों में घात लगाकर हमला किया। इस हमले में 4 जवान बलिदान हो गए। लेकिन अभी तक एक भी आतंकी नहीं मारा गया। इनकी तलाश में अभी तक सर्च ही चल रही है।
  • छठा हमला: 22 जुलाई राजोरी के गुंदा क्वास में शौर्य चक्र से सम्मानित बीडीसी सदस्य के घर पर हमला। एक बीडीसी सदस्य विजय कुमार और सेना का जवान घायल। अब तक सर्च चल रही। आतंकियों का पता नहीं चल पाया।
  • सांतवां हमला: 7 जुलाई को राजोरी के मंजाकोट के गलुति में सेना के कैंप पर आतंकी हमला हुआ, इसमें जवान घायल हो गया। आतंकियों का पता नहीं चल पाया।

पाकिस्तान की बदली साजिश
केरन, गुरेज और उड़ी सेक्टर में हाल ही में घुसपैठ के प्रयास पाकिस्तान की गहरी साजिश को उजागर करते है। पाकिस्तान अत्याधुनिक अमेरिकी और आॅस्ट्रियाई हथियारों से लैस अफगान युद्ध-प्रशिक्षित आतंकवादियों को कश्मीर घाटी में भेजकर हिंसा को बढ़ाना चाहता है। आतंकियों के पास आस्ट्रिया, अमेरिका, चीन, जर्मनी के हथियार हैं। इनके पास नाइट विजन वाले स्नाइपर राइफल हैं। -एसपी बैद, पूर्व डीजीपी

Shashi Kumar Keswani

Editor in Chief, THE INFORMATIVE OBSERVER