TIO, नई दिल्ली।
कर्नाटक की कांग्रेस सरकार फिर चर्चा में है। एक हफ्ते में दूसरी बार सिद्धारमैया सरकार को अपने ही फैसले से पीछते हटते देखा जा रहा है। आईटी कर्मचारियों के लिए रोज 14 घंटे काम के नियम वाले बिल पर राज्य सरकार ने यूटर्न ले लिया है। श्रम मंत्री संतोष लाड ने सफाई दी और कहा, टेक सेक्टर वालों से और ज्यादा घंटे काम लेने के लिए उन पर कानून बनाने के संबंध में आईटी इंडस्ट्री का दबाव है, लेकिन वो इस मामले का मूल्यांकन कर रहे हैं। मंत्री लाड का कहना था कि सरकार अभी भी विधेयक को परख रही है, जिससे सॉफ्टवेयर प्रोफेशनल हर रोज 14 घंटे काम करने के लिए बाध्य होंगे।
हालांकि, बीजेपी इस विधेयक का लगातार विरोध कर रही है। बीजेपी का कहना है कि इस मसले पर चर्चा की जरूरत है। सरकार इस मामले में एकतरफा फैसला नहीं ले सकती है। आईटी क्षेत्र के कर्मचारी और ट्रेड यूनियनों ने पहले ही इस कदम का विरोध किया है और इसे अमानवीय बताया है। विरोध के चलते सरकार इस बिल पर किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाई है। बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष बीवाई विजेंद्र ने कहा कि हमारी मुख्यमंत्री से अपील है कि बेंगलुरु ग्लोबल आईटी हब है। ये फैसला सभी को लेकर भरोसे में लेकर किया जाए।
‘उद्योगपति हम पर दबाव बना रहे हैं…’
दरअसल, मंत्री संतोष लाड का कहना था कि आईटी इंडस्ट्री के दबाव के कारण ही ये बिल हमारे पास आया है। आईटी मिनिस्टर प्रियंक खड़गे खुद इस प्रस्ताव को लेकर नहीं आए हैं। उद्योगपति हम पर 14 घंटे कार्य दिवस का विधेयक पारित करने का दबाव बना रहे हैं। हालांकि, ये बिल हमारे पास है और हम (श्रम विभाग) इसका मूल्यांकन कर रहे हैं। आईटी प्रमुख और बड़ी कंपनियों के मालिकों को इस पर चर्चा करने की जरूरत है। फिलहाल, यदि यह संशोधन लागू होता है तो इसका असर राज्य की राजधानी बेंगलुरु पर पड़ेगा, जो देश का आईटी हब है।
आईटी कर्मचारियों में नाराजगी…
संतोष लाड ने आगे कहा, अब सवाल यह है कि मैं चाहता हूं कि सभी औद्योगिक प्रमुख इस पर चर्चा करें क्योंकि यह मुद्दा सार्वजनिक डोमेन में है। लोग अपनी राय व्यक्त करने के लिए स्वतंत्र हैं। मैं चाहता हूं कि सभी प्रमुख हितधारक इस पर बहस करें। चूंकि मामला सार्वजनिक हो गया है, इसलिए आईटी कर्मचारियों में असंतोष है। उन्होंने कहा, मैं चाहता हूं कि लोग अपनी राय साझा करें। इसके आधार पर हम एक विभाग के रूप में निश्चित रूप से इस मुद्दे पर गौर करेंगे। मंत्री ने कहा कि आईटी कंपनियों, मालिकों और निदेशकों को आगे आकर कार्य और जिंदगी के बीच संतुलन के मुद्दे पर चर्चा करनी चाहिए। आईटी प्रमुख इस बारे में बात क्यों नहीं करते? चाहे प्रतिक्रिया सकारात्मक हो या नकारात्मक, सरकार इस पर विचार करेगी कि क्या करने की जरूरत है।
नए बिल में क्या कहा गया?
राज्य सरकार ‘कर्नाटक दुकानें और वाणिज्यिक प्रतिष्ठान अधिनियम, 1961’ में संशोधन करने की योजना बना रही है। नए प्रस्ताव में कहा गया है कि आईटी/आईटीईएस/बीपीओ सेक्टर में काम करने वाले कर्मचारी को एक दिन में 12 घंटे से ज्यादा काम करने की अनुमति होगी। प्रति सप्ताह 70 घंटे किया जा सकता है। हालांकि, लगातार तीन महीनों में 125 घंटे से ज्यादा काम करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। हालांकि इसमें इसका स्पष्ट उल्लेख नहीं है। लेकिन कर्नाटक राज्य आईटी/आईटीईएस कर्मचारी संघ (केआईटीयू) के अनुसार नया संशोधन विधेयक हर रोज 14 घंटे काम करने की अनुमति देता है। ये मौजूदा कानून को पूरी तरह से बदल देगा। अभी ओवरटाइम समेत प्रतिदिन अधिकतम 10 घंटे काम की अनुमति है।
केआईटीयू का कहना है कि कानून में संशोधन का प्रस्ताव उद्योग के विभिन्न हितधारकों के साथ श्रम विभाग द्वारा बुलाई गई बैठक में प्रस्तुत किया गया था। आईटी कर्मचारियों के निजी और सामाजिक जीवन के मुद्दे पर उन्होंने कहा, आईटी प्रमुखों और देश की बड़ी कंपनियों को इस पर चर्चा करने की जरूरत है। वे इन मुद्दों पर चर्चा के लिए आगे आएं। यूनियन प्रतिनिधियों ने अपना विरोध दर्ज कराने के लिए राज्य के श्रम मंत्री संतोष लाड, श्रम विभाग के प्रधान सचिव मोहम्मद मोहसिन और आईटी-बीटी विभाग की प्रधान सचिव एकरूप कौर समेत अन्य अधिकारियों से मुलाकात की।
एक हफ्ते पहले भी बिल को लेकर विवादों में आई सरकार
इससे पहले कर्नाटक सरकार ने उस समय विवाद खड़ा कर दिया था, जब प्राइवेट सेक्टर की नौकरियों में आरक्षण से जुड़े विधेयक को मंजूरी दी थी। अगर ये बिल कानून बनता तो कर्नाटक में कारोबार कर रहीं प्राइवेट कंपनियों को अपने यहां कन्नड़ भाषियों को 50% से लेकर 100% तक आरक्षण देना होगा। हालांकि, बाद में सरकार ने इस बिल पर रोक लगा दी। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया का कहना है कि हम कन्नड़ समर्थक सरकार हैं और हमारी प्राथमिकता कन्नड़ लोगों के कल्याण का ध्यान रखना है। राज्य के श्रम विभाग द्वारा तैयार किए गए प्रस्तावित विधेयक में दावा किया गया था कि संबंधित नौकरियां मुख्य रूप से उत्तरी राज्यों के लोगों को दी जा रही हैं। हालांकि, इसकी घोषणा के बाद नाराजगी और विरोध फैला तो विधेयक को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।
कर्नाटक से पहले हरियाणा और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों ने भी प्राइवेट सेक्टर में स्थानीय लोगों के लिए इसी तरह के आरक्षण लागू करने की कोशिश की थी। कानूनी और राजनीतिक चुनौतियों के कारण हरियाणा और आंध्र प्रदेश में कानून लागू नहीं हो पाए।