TIO, कानपुर।
सावन के पहले सोमवार के मद्देनजर भोलेनाथ के दर्शन के लिए रविवार रात 12 बजे से ही भक्तों की कतारें लग गईं। रात दो बजे से शिवालयों में पट खुलने लगे। रात भर भोलेबाबा के जयकारों से शिवालय गूंजते रहे। आनंदेश्वर मंदिर में रात 12 बजे से ही भक्तों की कतार लग गई। रात दस बजे शयनआरती के बाद मंदिर के पट बंद कर दिए गए जो रात दो बजे मंगला आरती के बाद भक्तों के लिए खोल दिए गए।
मंदिर परिसर में फोर्स तैनात रहा। नवाबगंज स्थित जागेश्वर मंदिर में शयनआरती रविवार रात 10:30 बजे हुई। रात 3:30 बजे जलाभिषेक के बाद भक्तों के दर्शनों के लिए पट खोले गए। वहीं, पीरोड स्थित वनखंडेश्वर मंदिर, नयागंज स्थित नागेश्वर मंदिर में रात में बाबा का शृंगार कर पट खोल दिए गए। शिवाला स्थित कैलाश मंदिर, मालरोड स्थित खेरेपति, कल्याणपुर स्थित नेपाली मंदिर, धनकुट्टी स्थित औघड़ेश्वर मंदिर, श्यामनगर स्थित मुक्तेश्वर मंदिर समेत शहर के शिवालयों में भक्तों की भीड़ रात से ही जुटने लगी।
गाय आनंदी शिवलिंग पर चढ़ा देती थी दूध, नाम पड़ा आनंदेश्वर
मान्यता है कि महाभारत काल में सबसे बड़े दानवीर कर्ण मां गंगा की आराधना के लिए प्रतिदिन तट पर आते थे और पूजा करने के बाद अदृश्य हो जाते थे। इसी स्थान पर आनंदी नाम की एक गाय रोज घास चरने आती थी, पर गाय अपना सारा दूध एक विशेष स्थान पर गिरा देती थी। पालक ने जब एक दिन पीछा किया तो गाय को ऐसा करते देख लोगों की मदद से उक्त स्थान पर खोदाई कराई। यहां पर एक शिवलिंग मिला। इसके बाद यहां मंदिर का निर्माण कराया गया। गाय के नाम पर ही इस मंदिर का नाम आनंदेश्वर रखा गया।
मुख्य पुजारी मुन्नी लाल के अनुसार
राजा ययाति को खोदाई में मिला था शिवलिंग, फिर बना सिद्धनाथ मंदिर छोटी काशी के नाम से प्रसिद्ध जाजमऊ का सिद्धनाथ मंदिर राजा ययाति की निशानी के तौर भी जाना जाता है। राजा को खोदाई में यहां शिवलिंग प्राप्त हुआ था। मान्यता है कि 100वें यज्ञ के बाद सिद्धनाथ बाबा को काशी के बराबर मान्यता प्राप्त होती, लेकिन अंतिम यज्ञ के दौरान हवन कुंड में कौवे ने कहीं से हड्डी डालकर यज्ञ को खंडित कर दिया था। जाजमऊ को तब से श्राप मिला कि यहां पर सिर्फ हड्डी और चमड़े का व्यापार ही फल-फूल सकता है। कोई और व्यापार किया गया तो उसमें व्यक्ति को नुकसान ही मिलेगा।
दिन में तीन बार रंग बदलते हैं बाबा जागेश्वर
बाबा जागेश्वर महादेव पूरे नवाबगंज की पहचान हैं। उनका इतिहास लगभग 300 वर्ष पुराना है। खास बात यह है कि बाबा जागेश्वर पूरे दिन में तीन बार अपने भक्तों को अलग-अलग रूप में दर्शन देते हैं। सुबह स्लेटी रंग का दिखाई देता है, तो दोपहर में रंग भूरा हो जाता है और सूर्यास्त के बाद शिवलिंग काला हो जाता है। वर्षों पहले यहां एक टीला होता था, जहां पर प्रतिदिन गाय दूध चढ़ाती थी। एक मल्लाह ने खोदाई कराई तो शिवलिंग प्राप्त हुआ था। इस खोदाई के दौरान मल्लाह की खुरपी शिवलिंग पर लग गई थी, जिसका निशान वर्तमान में भी शिवलिंग पर स्थापित है।
बाबा शिव के दर्शन के लिए चारों ओर से बने हैं द्वार
पीरोड स्थित वनखंडेश्वर मंदिर में स्थापित शिवलिंग लगभग 250 वर्ष पुराना है। वर्तमान में जहां पर मंदिर स्थापित है, एक समय वहां पर चारों ओर जंगल फैला हुआ था। यहां पर एक गाय प्रतिदिन आकर अपना दूध गिराती थी। जब आसपास के लोगों ने गाय का पीछा किया और उस निश्चित स्थान की खोदाई की तो वहां से बाबा के शिवलिंग की प्राप्ति हुई। पूरे शहर की नहीं आसपास के क्षेत्र में यह ऐसा मंदिर है, जहां पर चारों से बाबा भोलेनाथ के दर्शन के लिए द्वार बने हुए हैं। सावन में यहां पर भक्तों की भारी भीड़ रहती है।