राघवेंद्र सिंह
एग्जिट पोल ने साफ संकेत दे दिए हैं कि पूर्ण बहुमत के साथ भाजपा एनडीए नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में लगातार तीसरी बार सरकार बनाने जा रहा है। सीटें 400 पार हो या 370 तक रहे क्या फर्क पड़ता है। पूरे सियासी सीन मशहूर कवि कुंवर नारायण की कविता की एक पंक्ति सब कुछ बयां करती है-हारा वही जो लड़ा नही… भाजपा की संगठित तैयारी के बीच विपक्ष बिखरा बिखरा ही रहा। दक्षिण भारत में भाजपा पहली बार बड़ी ताकत के साथ आई हुई दिख रही है। इसके पीछे उसकी दक्षिण को उत्तर भारत से जोड़ने की गहरी रणनीति ही खास रही है। भाजपा को कई दशकों तक दक्षिण भारत से वैसा ही समर्थन मिलने की आशा है जैसा उसे उत्तर भारत से मिलता रहा है। विपक्ष की लापरवाही के चलते 2029 के चुनावी नतीजे भी अभी से साफ नजर आ रहे हैं। जीत के बाद भी भाजपा को अपनी खामियां को खत्म करने की सख्त जरूरत होगी। नतीजो के विपक्ष को अल्पसंख्यक वोट पर आश्रित होने के साथ बहुसंख्यक वोटर की अनदेखी करने की नीति को बदलने की आवश्यकता होगी। इस सुधार के बिना सफलता कठिन है। लोकतंत्र में तो पूरा गणित ही नम्बर का है।
एग्जिट पोल में अप्रत्याशित कुछ भी नही है। विपक्ष हारता इसलिए लग रहा है क्योंकि वह ग्राउंड जीरो पर न तो दिखा और न लड़ा। अब आरोपों के विलाप आरम्भ हो जाएंगे। रोने के लिए रुदालियों के समूह सक्रिय हो जाएंगे। रिहर्सल शुरू हो चुकी है। जय-पराजय के असली कारणों को जानने के लिए गिरेबां में झांकने के लिए साहस की भी जरूरत होगी। आज के दौर की नई राजनीतिक पौध में कर्मठता की जगह धूर्तता ले रही है। जमीन पर जनता से जुड़ने और उनके लिए संघर्ष करने के बजाए स्मार्ट पॉलिटिक्स करने के वास्ते सोशल मीडिया की फर्जी दुनिया से काम चलाने की बातें हो रही है।
विपक्ष में भरोसेमंद नेता न कार्यकर्ता, न गम्भीर नेतृत्व, न रणनीति। भाजपा जीतेगी यह पहले से तय लग रहा था। कल चार जून को मतगणना के साथ अगले पांच साल के लिए देश के भाग्य का फैसला हो जाएगा ।
भाजपा की झोली 2019 की तुलना में उपलब्धियां से भरी थी सबसे बड़ा मुद्दा राष्ट्रवाद के बाद साथ राम मंदिर निर्माण धारा 370 के हटने और भविष्य में सबके लिए समान कानून लागू करने का ऐलान भाजपा को फिर से जीत की तरफ ले जाता हुआ दिख रहा था । भाजपा की दिल को छूने वाली इन घोषणाओं के साथ विपक्ष के पास कोई मजबूत कार्ड नहीं था भाजपा के वन नेशन वन इलेक्शन जैसे नारों का भी कोई तोड़ विपक्ष नहीं दे पाया उल्टे उसने इन तमाम मुद्दों का घोषित और अघोषित तौर पर विरोध किया। जिससे जनमानस पर विपरीत असर पड़ा। हिंदू- मुसलमान के नाजुक मुद्दे पर विपक्ष का अल्पसंख्यक के साथ जाना एक बार फिर से हिंदुओं के मन में असुरक्षा का बोध पैदा करता है। जब तक विपक्ष की पार्टियां हिंदू मुसलमान के साथ समानता का व्यवहार नहीं करेगी इस मुद्दे पर हिंदुओं के वोट भाजपा की झोली में जाते रहेंगे। जम्मू -कश्मीर से लेकर पश्चिम बंगाल, दक्षिण भारत के राज्य, पूर्वोत्तर व रांची के साथ बिहार में भी अल्पसंख्यक के मुद्दे पर हिंदू हमेशा विपक्ष को अपना दुश्मन भले न माने लेकिन विरोधी जरूर मानता रहा है। हिन्दू या सनातन विरोध के साथ किसी भी दल का जीतना मुश्किल है। इस बार के चुनाव नतीजे इन्हीं सब बातों पर जनता की मुहर लगाते दिखाई देंगे।
जहां तक मध्य प्रदेश का सवाल है कांग्रेस पिछले चुनाव की भांति एक सीट पर अपनी विजय पताका कर सकती है। बस छिंदवाड़ा या राजगढ़ में से कोई एक हो सकती है। राजगढ़ में दिग्विजय सिंह का यह कहना कि यह उनका आखिरी चुनाव है भाजपा को मुश्किल में डाल रहा था। अगर कांग्रेस यहां से जीती तो यह एक तरह से दिग्विजय सिंह की निजी जीत होगी। सबको पता है चुनाव में आंकड़ों का कम भावुकता का बड़ा खेल होता है। पूरे देश मे भाजपा की जीत के साथ आशंका व्यक्त की जा रही है कि कांग्रेस के भीतर बड़े उलट फेर के साथ विभाजन की भी तैयारी दिख रही है। पिछले 10 साल से गांधी परिवार और खास तौर से राहुल गांधी की असफलता से कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ता परेशान है। सबको अपने वर्तमान के साथ भविष्य को भी सुरक्षित करने की चिंता है । यदि नेतृत्व में व्यापक बदलाव नहीं हुआ तो कांग्रेस में व्याप्त हताशा और असंतोष बगावत में तब्दील होने के स्पष्ट संकेत दे रहा है।