राकेश अचल

मध्य्प्रदेश में पंचायत चुनाव बिना ओवैसी आरक्षण के करने के बड़ी अदालत के निर्देश पर प्रदेश की सरकार भले ही घड़ियाली आंसू बहा रही हो लेकिन हकीकत ये है कि अदालत के इस फैसले से सत्तारूढ़ भाजपा ही नहीं बल्कि विपक्षी कांग्रेस भी मन ही मन प्रसन्न हैं ,क्योंकि दोनों ही मन -वचन से पिछड़े वर्गों को न आरक्षण देना चाहते हैं और न ऐसा कर पाना उनके बूते की बात है .

आपको याद होगा कि पिछड़े वर्गों को आरक्षण का मुद्दा आज का नहीं है .केवल चुनावों में आरक्षण का मुद्दा होता तो बात और थी. ये मुद्दा तो सरकारी नौकरियों में आरक्षण और पदोन्नतियों से भी बावस्ता है ,भाजपा की पिछली सरकार के समय से ही पिछड़े वर्गों को आरक्षण देने का मुद्दा जीवित है. सरकार पहले पिछड़े वर्गों को 14 फीसदी आरक्षण देती थी ,कांग्रेस ने इसे बढ़कर 27 फीसदी करने का ऐलान तो कर दिया लेकिन उसे पता था की ऐसा करना मुमकिन नहीं होगा ,और वो ही हुआ .मामला अदालत में जाकर उलझ गया .
पिछड़ा वर्ग को आरक्षण का मुद्दा विवादित होने से जहाँ एक और सरकारी नौकरियां देने का मामला अधर में लटक गया वहीं हजारों लोग बिना पदोन्नति के सेवा निवृत्त हो गए ,लेकिन सरकार को इससे नुक्सान होने के बजाय फायदा ही हुआ .एक तो नौकरियां नहीं देना पड़ीं दूसरे पदोन्नतियां भी रुकी रहीं .फलस्वरूप बढे हए वेतन और पेंशन का बोझ भी नहीं उठाना पड़ा .हकीकत ये है कि सरकार के पास पिछड़ा वर्ग को देने के लिए कुछ है ही नहीं .सरकार नई नौकरियां देने की स्थिति में नहीं है क्योंकि सरकार की आर्थिक दशा खोखली है .सरकार के लिए नयी नौकरियां देने के बजाय ‘आउट सोर्सिंग ‘ के सहारे तंत्र चलना ज्यादा आसान है .

आरक्षण का जो प्रेत था कांग्रेस की सरकार जाते ही भाजपा सरकार के गले में आ पड़ा .भाजपा भी पिछड़ा वर्ग के लोगों को आरक्षण का मामला अदालत में होने का बहाना कर बहलाती रही ,जबकि हकीकत ये है कि भाजपा सरकार की नियत भी कांग्रेस की ही तरह खोटी थी .प्रदेश में कोई एक दशक से सरकार नयी नौकरियां नहीं दे रही है .अकेले पुलिस में 22 हजार पद रिक्त हैं .इन्हें किश्तों में भरने का नाटक किया जा रहा है .फलस्वरूप पिछड़ा वर्ग में निराशा बढ़ रही है .प्रदेश की सरकार यदि आरक्षण कोटा बढ़ने का झांसा देकर पिछड़ा वर्ग को न ठगती तो मुमकिन है की अब तक नई भर्तियों में कम से कम 14 फीसदी पिछड़ा वर्ग के लोग तो नौकरी पा ही लेते ,सामान्य वर्ग के लोगों को भी लाभ होता सो अलग. लेकिन जब स्थिति ‘ हाथ न मुठी,खुरखुरा उठी ‘ वाली हो तो कुछ हो ही नहीं सकता .
आज जब बड़ी अदालत ने पंचायत चुनाव बिना आरक्षण के करने का आदेश दे दिया है तो सरकार ‘ रिव्यू पिटीशन ‘ की बात कर एक बार फिर पिछड़ा वर्ग को झांसा देने की कोशिश कर रही है,क्योंकि सरकार को पता है कि पुनरीक्षण याचिका से कुछ होना ही नहीं है .कोई अदालत क्यों अपने फैसले का पुनरीक्षण कर उसे बदलेगी .कांग्रेस भले ही भाजपा सरकार पर आरोप लगाए की उसने बड़ी अदालत में अपना पक्ष सही ढंग से नहीं रखा इसलिए ये सब स्थितियां बनीं ,लेकिन हकीकत ये है कि यदि कांग्रेस भी सत्ता में होती तो यही परिणाम सामने आना था जो की आज आया है .

आरक्षण के लेकर भाजपा और कांग्रेस कभी भी एकराय हुए ही नहीं. दोनों ही दल अपने-अपने ढंग से पिछड़ा वर्ग के लोगों को बहलाने की कोशिश कर रही हैं .आरक्षण के मुद्दे पर राजनीति करना सभी दलों की मजबूरी है .नीयत में खोट सबके है .यदि ऐसा न होता तो मुद्दा आम राय से कब का सुलझ गया होता .मप्र में पिछड़ा वर्ग का आरक्षण को लेकर नाटक जारी है . राज्य के अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग ने अपनी पहली रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंप दी है। इसमें आयोग ने दावा किया है कि मध्य प्रदेश में 48 प्रतिशत मतदाता अन्य पिछड़ा वर्ग के हैं। आयोग ने नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव में ओबीसी को 35 प्रतिशत आरक्षण देने की अनुशंसा की है। सरकार शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट के सामने आयोग की रिपोर्ट पेश करेंगा।

आयोग की इस रपट से बड़ी अदालत के फैसले पर कोई असर पडेगा ऐसा कम से कम मै तो नहीं मानता .सरकार जो दलील लेकर अब अदालत के सामने जाना चाहती है यदि उसे पहले ही सामने रखकर पैरवी की गयी होती तो शायद नजारा कुछ और होता ,लेकिन जब नीयत ही साफ़ न हो तो ,कोई कुछ नहीं कर सकता .मध्य प्रदेश के पिछड़ा वर्ग आयोग ने रिपोर्ट में कहाहै कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के मतदाताओं को घटाने पर अन्य पिछड़ा वर्ग का मतदाता प्रतिशत 79 प्रतिशत है। आयोग का दावा है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के मुताबिक जो सर्वे किया गया है, उसमें ट्रिपल टेस्ट का पालन किया गया है। आयोग ने अनुसंधान और शोध कार्य विश्लेषण और जिलों में भ्रमण कर अपनी 6 अनुशंसाए सरकार को दी है।

अब जान लीजिये कि सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के सामने ट्रिपल टेस्ट का पालन कर चार महीने में चुनाव कराने की बात कही थी, लेकिन समय पूरा होने के बावजूद सरकार कोई कार्रवाई नहीं कर रही थी.आपको पता होना चाहिए कि प्रदेश में कुल 73 प्रतिशत आरक्षण दिया जाएगा, यह लाभ सीधी भर्ती में मिलेगा. इसमें अनुसूचित जाति को 16 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति को 20 प्रतिशत, अन्य पिछड़ा वर्ग को 27 प्रतिशत और आर्थिक रूप से कमजोर आय वर्ग के लोगों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण लागू किया गया है. इस आदेश के मुताबिक अन्य पिछड़ा वर्ग का आरक्षण आठ मार्च 2019 और ईडब्ल्यूएस के लिए आरक्षण दो जुलाई 2019 से लागू है.अब सवाल ये है जब सीधी भृत्यन हो ही नहीं रहीं हैं तो लाभ मिलेगा किसे ?

आपको याद होगा कि कि पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ ने वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले वचन पत्र में अन्य पिछड़ा वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण दिए जाने की घोषणा की थी।लेकिन बात केवल कलेक्टरों को निर्देश देने से आगे नहीं बढ़ी .बात अगर आगे बढ़ती भी लेकिन बीच में ही कांग्रेस की सरकार का तख्ता पलट हो गया .भाजपा चाहती तो कमलनाथ सरकार के फैसले को आगे बढ़ा सकती थी लेकिन फिर दिक्क्त ये थी कि कांग्रेस इसका श्रेय लूट लेती ,सो भाजपा सरकार भी बीते दो साल से इस मुद्दे को उलझाए है .अब आरक्षण का सांप मारने के लिए लाठी भी काम नहीं आ रही और सांप भी नहीं मर रहा .बिना आरक्षण के पंचायत चुनाव होते हैं तो तय है कि सत्तारूढ़ दल को इसका खमियाजा भुगतना पड़ सकता है .

Shashi Kumar Keswani

Editor in Chief, THE INFORMATIVE OBSERVER