शशी कुमार केसवानी
मुझे अपने बचपन के दिन याद हैं। जब भारत में कांग्रेस और जनसंघ हुआ करती थी। कांग्रेस का चुनाव चिन्ह गाय बछड़ा, जबकि जनसंघ का दीपक हुआ करता था। तब मुझे लगता था कि पूरी उम्र कांग्रेस का ही राज देखूंगा। पर ऐसा नहीं हो सका। वक्त बदलता रहा और वक्त के साथ मैं भी बदलता रहा। साथ ही सत्ता पक्ष भी बदलता रहा। कभी जनता पार्टी आई तो कभी अन्य दलों ने सरकार बनाई। अब भाजपा की सरकार है। मेरे बचपन के मुगालते धीरे-धीरे दूर होते गए।
मैंने कांग्रेस को कई बार टूटते हुए देखा है और फिर बनते हुए भी। पर अब कांग्रेस के पुराने व नए नेता जिस तरह से पार्टी को मिटाने पर तुले हुए हैं, उससे मुझे लगता है कि किसी भी दल का टूटना ज्यादा बेहतर होता है। पिछले दिनों सैम पित्रोदा ने भारतीयों पर जिस तरह से रंगभेद को लेकर टिप्पणी की थी, उससे भद्दा कोई बयान हो नही सकता। हालांकि मैंने सैम पित्रोदा को मैसेज भी किया कि आदमी उम्रदराज हो जाए तो उसे अपनी जवान पर लगाम लगाना चाहिए। न कि खबरों में रहने के लिए देश को बांटने की कोशिश करना चाहिए। अभी यह विवाद अभी खत्म भी नहीं हुआ है कि पाकिस्तान में रहे भारत के राजदूत और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मणिशंकर अय्यर ने हमेशा की तरह पड़ोसी देश को लेकर जो बयान दिया है, वह घोर निंदनीय है। साथ हीसाथ कांग्रेस को मिटाने में एक कदम और आगे बढ़ा दिया है।
ऐसे में कांग्रेस हाईकमान को अपने ऊपर भरोसा बढ़ाते हुए विवादित व्यक्तियों को पार्टी से सख्त रूप से बाहर का रास्ता का दिखाना चाहिए। इतना ही नहीं, उनके बयानों की निंदा भी करनी चाहिए। मणिशंकर शायद भूल गए हैं कि इंदिरा गांधी ने ही पाकिस्तान के दो टुकड़े कर दिए थे। राजीव गांधी ने भी हवा टाइट करके रखी थी। समय-समय पर भाजपा भी पाकिस्तान को सबक सिखाती रहती है। पर यह मणिशंकर का सोचना होगा कि अगर उनके पास परमाणु बम है तो क्या भारत डर के रहे! या फिर तलवे चाटे। भारत बड़े भाई की भूमिका में है जो हमेशा बड़ा ही रहेगा। भारत एक आत्मनिर्भर देश है। आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक और इंडस्ट्रियल क्षेत्र में एक अपनी अलग पहचान बनाए हुए है। पर पाकिस्तान को यह करने में अभी सालों लगेंगे।
मणिशंकर ने जिस तरह से कहा है कि लाहौर में परमाणु गिराया तो पंजाब को खत्म होने में 8 सेकेंड लगेंगे। मुझे समझ में नहीं आता कि मणिबाबू शायद परमाणु बम को दिवाली का फटाखा समझ बयान दे रहे हैं। पर हमे लगता है कि उनका भी दोष नहीं है। एक उम्र के बाद आमदी में एक खीझ हो जाती है। अगर उससे दुनिया की तवज्जो मिलना बंद हो जाए तो। यह एक स्वाभाविक बीमारी है। हां उनकी यह बात जरूर सही है कि बातचीत का रास्ता हमेशा खुला रहना चाहिए।क्योंकि दुनिया में युद्ध किसी समस्या का हल नहीं हो सकता। युद्ध तो अपने आप में एक बड़ा मसला है। पर कांग्रेस को नेताओं को यह बात समझ नहीं आती कि भाजपा को किसी भाषा में जवाब देना चाहिए। कांग्रेसी नेताओं के ऐसे बयान भाजपा को बैकफुट में लाने की बजाय फ्रंटफुट में बैटिंग करने का मौका देते हैं। अब निर्णय पार्टी आलाकमान को करना है कि पार्टी में किन लोगों को रखा जाए और किन्हें बाहर का रास्ता दिखाया जाए। किसी भी पार्टी में गंदगी जमा हो जाए तो उसे साफ करने की जरूरत होती है।
भाजपा अभी तक अपने कुनबे को बढ़ाती जा रही है, पर आने वाले समय में वहां भी जिस तरह का गंध इकट्ठा होता जा रहा है, ऐसे में पार्टी का वहीं हाल होगा जो कांग्रेस में हो रहा है। इसलिए आने वाले समय में दोनों पार्टियों को नए युवा नेताओं को पार्टी में स्थान देकर एक नई सोच के साथ नई नीतियों पर भी वर्क करना चाहिए। जिससे पार्टी के साथ-साथ देश का भी नाम ऊंचा हो। इन निर्णयों से भारत-पाकिस्तान के रिश्तों में मधुरता के साथ मिठास भी घुलगी। हालांकि चाहे भारत के लोग हो या फिर पाकिस्तान के। वे हमेशा भाईचाारा और अच्छे रिश्ते चाहते हैं। पर कुछ राजनीतिक दल के साथ-साथ कुछ राजनीतिक व्यक्ति भी इस तरह के बयान देकर लोगों के मनों में कड़वाहट पैदा कर देते हैं।