राकेश अचल

पूजाघरों पर ‘ लाउड स्पीकर्स ‘ को हटाने की मांग यद्यपि उग्र हिन्दू संगठनों की है लेकिन इस मांग का समर्थन मै भी करता हूँ,लेकिन इसका मतलब ये बिलकुल नहीं है की मै उग्र हिन्दू या मुस्लिम संगठनों के साथ खड़ा हो गया हूँ .पूजाघरों पर लाउड स्पीकर्स की वजह से यदि भारत जैसे देश में साम्प्रदायिक सौहार्द प्रभावित होता है तो सभी धर्मस्थलों से लाउड स्पीकर्स तत्काल प्रभाव से उतार देना चाहिए .इसे टकराव का मुद्दा बनाये जाने की कोई जरूरत नहीं है .
देश में लाउड स्पीकर्स के इस्तेमाल का विवाद नया नहीं है ,लेकिन हाल ही में महाराष्ट्र नव निर्माण सेना के प्रमुख राज ठाकरे ने इस विवाद को पुनर्जीवित कर दिया है .देश भर में मस्जिदों में लाउडस्पीकर को लेकर विवाद शुरू हो गया है. इस विवाद की शुरुआत महाराष्ट्र से हुई. महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस ) के प्रमुख राजठाकरे ने धमकी दी कि मस्जिदों में लाउडस्पीकर का इस्तेमाल बंद हो, नहीं तो मस्जिदों के बाहर तेज आवाज में हनुमान चालीसा का पाठ किया जाएगा. राज ठाकरे ने धमकी दे दी है कि अगर 3 मई तक सभी मस्जिदों से लाउडस्पीकर नहीं हटाए गए तो उनके कार्यकर्ता मस्जिदों के बाहर लाउडस्पीकर से हनुमान चालीसा का पाठ करेंगे .

महराष्ट्र में मनसे जब से बनी है तबसे अब तक उसके पास महाराष्ट्र के नव निर्माण का कोई एजेंडा नहीं है सिवाय डराने धमकाने के .मनसे के इसी अंदाज को महाराष्ट्र के बाहर के अनेक उग्र हिन्दू संगठन करते हैं. संघ परिवार के अनुषांगिक संगठन भी इसमें शामिल हैं .चूंकि लाउडस्पीकर्स को ही टकराव का औजार बनाया जा रहा है तो सरकारों को ही नहीं बल्कि प्रगतिशील सभी धर्माचार्यों को इसे प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाये बिना तत्काल प्रभाव से मान लेना चाहिए .
लाउड स्पीकर्स का इतिहास बहुत पुराना नहीं है. कोई एक सदी पहले कोई लाउड स्पीकर को जानता नहीं था,तब भी सभी धर्मों के पूजाघरों में पूजा होती थी .तब भी जबकि कबीरदास ने मस्जिदों पर चढ़कर बांग लगाने का विरोध किया था .कोई भी ऊंची आवाज जो आम जनता के जीवन में खलल डालती हो उसके इस्तेमाल से दूर रहने में हर्ज ही क्या है ? लाउड स्पीकर्स के इस्तेमाल से पहले और बाद में भी किसी मौलवी ने कबीर दास के इस प्रश्न का उत्तर नहीं दिया की क्या खुदा बहरा हो गया है जो बांग देने की [आज के संदर्भ में लाऊड स्पीकर्स लगाने की ]जरूरत है .

दुनिया के अनेक देशों में मैंने देखा है की वहां पूजाघरों पर ध्वनि विस्तारक यंत्रों का इस्तेमाल किया ही नहीं जाता .न चीन में और न अमेरिका में .यहां तक की गिरजाघरों के बाहर लगे घंटे भी ऐसी ध्वनि निकालते हैं जो चर्च के परिसर के बाहर नहीं जा सकती .एक -दुसरे के सुकून का ख्याल रखना ही सौहार्द की पहली शर्त है .पहली सीधी भी कह सकते हैं आप इसे . यदि बिना लाउड स्पीकर्स के भी इबादत,पूजा-अर्चना होती है तो क्या जरूरत है इन यंत्रों की .
अक्सर आपने देखा होगा की ब्रम्ह मुहूर्त में कमोवेश हर शहर में पूजाघरों पर लाउडस्पीकर्स बजाने की पर्तिस्पर्धा सी शुरू हो जाती है. इधर पूजाघरों के ताले खुलते हैं उनमने झाड़ू-पौंछा शुरू होता है और उधर लाऊड स्पीकर्स के जरिये भजन-कीरण और नादेन सुनाई जाने लगतीं हैं .निश्चित ही इनसे नींद में खलल पड़ती है .अब यदि विरोध किया जाये तो साम्प्रदायिकता का आरोप लगता है और यदि मौन रहा जाये तो भी यही कहा जाता है कि आप छद्म धर्मनिरपेक्षता का प्रदर्शन कर रहे हैं .ब्रम्ह मुहूर्त में जागना और जगाना अच्छी बात है .कलियुग में भी और त्रेता में भी .

पुराने जमाने में जब लाउडस्पीकर्स नहीं बने थे तब लोग मुर्गे की बांग सुनकर ही उठते थे .मुर्गा उतना ही पुराना पक्षी है जितने पुराने हम .त्रेता में इसे अरुण शिखा कहा जाता था .गोस्वामी तुलसीदास की राम चरित मानस में आपको इसका उल्लेख मिल जाएगा .बालकराम और लक्ष्मण जब महिर्षि के साथ वन में गए थे तब वे अरुणशिखा की बांग सुनकर ही जागते थे .’उठे लखन निज विगति सुनी ,अरुण शिखा धुनि कान,गुरु से पहिले जगत पति जागे राम सुजान ‘.बात जागने और जगाने की है ,इसके लिए लाउड स्पीकर्स जरूरी नहीं है .आप अपनी घड़ी में ,मोबाईल में अलार्म लगाकर जागिये ,जगाइए .
दुःख की बात ये है कि महाराष्ट्र से उठी ये आग धीरे-धीरे बाकी राज्यों में भी पहुंच गई. कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, गोवा, बिहार समेत कई राज्यों में हिंदू संगठनों और बीजेपी नेलाउडस्पीकर का इस्तेमाल बंद करने को कहा है. यूपी के वाराणसी में काशी विश्वनाथ ज्ञानवापी मुक्ति आंदोलन के अध्यक्ष सुधीर सिंह ने अपने घर पर लाउडस्पीकर लगा लिया है. उनका कहना है कि अजान के वक्त इससे हनुमान चालीसा का पाठ किया जाएगा. इसे हठ कहते हैं,टकराव कहते हैं .आप अपनी मांग को लेकर प्रशासन के पास जाइये ,अदालत का दरवाजा खटखटाइये न कि जबाबी तौर पर खुद लाउडस्पीकर्स लगाकर दुसरे के पूजाघर के सामने जा बैठिये

समस्या ये है कि कोई भी इस विषय में न क़ानून की बात करता है और न क़ानून जानना चाहता है .क्या मंदिर या मस्जिद में लाउडस्पीकर का इस्तेमाल किया जा सकता है? इस पर कानून क्या कहता है? लाउडस्पीकर के इस्तेमाल की मनाही नहीं है, लेकिन इसके इस्तेमाल को लेकर कुछ शर्तें भी हैं. लाउडस्पीकर के इस्तेमाल को लेकर संविधान में नॉयज पॉल्यूशन (रेगुलेशन एंड कंट्रोल) रूल्स, 2000 में प्रावधान है.
नियम है कि लाउडस्पीकर या कोई भी यंत्र का अगर सार्वजनिक स्थान पर इस्तेमाल किया जा रहा है, तो उसके लिए पहले प्रशासन से लिखित में अनुमति लेनी जरूरी है. रात के 10 बजे से सुबह 6 बजे तक लाउडस्पीकर या कोई भी यंत्र बजाने पर रोक है. हालांकि, ऑडिटोरियम, कॉन्फ्रेंस हॉल, कम्युनिटी और बैंक्वेट हॉल जैसे बंद स्थानों पर इसे बजा सकते हैं.
राज्य सरकार चाहे तो कुछ मौकों पर रियायतें दे सकती है. राज्य सरकार किसी संगठन या धार्मिक कार्यक्रम के लिए लाउडस्पीकर या दूसरेयंत्रों को बजाने की अनुमति रात 10 बजे से बढ़ाकर 12 बजे तक दे सकती है. हालांकि, एक साल में सिर्फ 15 दिन ही ऐसी अनुमति दी जा सकती है. लेकिन हमारे यहां न कोई अनुमति लेता है और न देता है.कोई पढ़ा -लिखा आदमी सी तरह बिना अनुमति के शोरगुल मचने के खिलाफ शिकायत करे तो पुलिस कार्रवाई करती नहीं और बाजा बजाने वाले शिकायत करने वाले का बाजा बजाने उसके घर जा धमकते हैं. दिल्ली में हाल ही में एक पत्रकार के साथ ऐसा हो चुका है
हमारे पास हर गैरक़ानूनी काम को रोकने के लिए क़ानून हैं लेकिन हम उसका न पालन करते हैं और नकारना चाहते हैं.हम बुलडोजर सनाहिता पर भरोसा करने वाले लोग हैं .क़ानून है कि लाउडस्पीकर या कोई भी यंत्र बजाने की कितनी ध्वनि होगी, ये भी इन नियमों में तय है. इन नियमों के मुताबिक, साइलेंस जोन के 100 मीटर के दायरे में लाउडस्पीकर या कोई भी शोर करने वाला यंत्र नहीं बजाया जा सकता. साइलेंस जोन में अस्पताल, कोर्ट और शैक्षणिक संस्थान आते हैं.
इसके अलावा इंडस्ट्रियल इलाकों में ध्वनि का स्तर दिन के समय 75 डेसीबल और रात के समय 70 डेसीबल से ज्यादा नहीं होगा. कमर्शियल इलाकों में दिन में 65 डेसीबल और रात में 55 डेसीबल की लिमिट है. इसी तरह रिहायशी इलाकों में दिन के वक्त में ध्वनि का स्तर 55 डेसीबल और रात के वक्त 45 डेसीबल की लिमिट है. वहीं, साइलेंस जोन में दिन समय 50 डेसीबल और रात के समय 40 डेसीबल का स्तर होगा.
इन नियमों का उल्लंघन करने पर कैद और जुर्माने दोनों सजा का प्रावधान.है. इसके लिए एन्वार्यमेंट (प्रोटेक्शन) एक्ट, 1986 में प्रावधान है. इसके तहत इन नियमों का उल्लंघन करने पर 5 साल कैद और 1 लाख रुपये तक का जुर्माना लग सकता है ,लेकिन क्या मजाल कि प्रशासन ने आजतक देश में किसी के खिलाफ इन प्रावधान के तहत कार्रवाई की हो ?आखिर प्रशासन भी तो हिन्दू,मुसलमान हो चुका है .प्रशासन यदि अपनी ड्यूटी ढंग से निभाए तो न राज ठाकरे धमकी दे सकते हैं और न कोई और .

Shashi Kumar Keswani

Editor in Chief, THE INFORMATIVE OBSERVER