शशी कुमार केसवानी

नमस्कार दोस्तों, आइए आज बात करते हैं ऐसे एक महान गजल गायक और प्रिय मित्र की जिससे काफी लगाव रहा है। साथ ही उनकी गायकी के लिए दीवानगी भी थी। खासतौर पर तब, जब भरी जवानी थी तो स्वाभाविक है स्वभाव भी आशिकाना ही होगा। जी हां दोस्तों मैं बात कर रहा हूं, अपने जमाने के हर दिल की धड़कन के साथ-साथ हर दिल अजीज पंकज उधास की। जिनकी सूरत तो मासूमियत से तो भरी ही थी, पर स्वभाव में भी उससे ज्यादा मासूमियत थी। पंकज उधास शायद फिल्मों से जुड़े उन चंद लोगों में से होंगे जो कभी विवादों में नहीं रहे। अपने सहज और सरल स्वभाव की वजह से किसी विवाद में आते ही नहीं थे। उनके जीवन का बस एक ही विवाद रहा वो भी उनकी पत्नी फरीदा को लेकर। क्योंकि पंकज जाति से हिंदू थे और फरीदा पारसी थी। पंकज के घर वाले तो राजी थे, पर पारसी परिवारों में गैर पारसी से विवाह करने पर स्वाभाविक तरीके से बहुत ज्यादा विवाद होता है। हालांकि शादी तभी हुई जब विवाद खत्म हुआ। पंकज को भोपाल से बहुत लगाव था। उन्होंने जितने सार्वजनिक प्रोग्राम किए थे, उससे कहीं ज्यादा प्राइवेट कार्यक्रमों में शिरकत की थी। आप उनकी खूबी देखिए। गाते तो सभी नशीली गजलें थे, पर खुद कभी शराब नहीं पीते थे। लेकिन किसी मित्र को भी शराब नहीं पिलाते थे। उनकी गायकी में ही इतना नशा रहता था कि खुद तो लीन रहते ही थे, कई बार पीने वाले भी शराब से ज्यादा उनकी गायकी में लीन हो जाते थे। तो आईए आज ऐसे गायक की जीवन के कुछ अनछुए पहलुओं पर बात करते हैं, जिनके बारे में आप नहीं जानते होंगे…

पंकज उधास का जन्म 17 मई 1951 को हुआ था। वह एक एक भारतीय गजल और पार्श्व गायक थे, जो हिंदी सिनेमा और भारतीय पॉप में अपने काम के लिए जाने जाते हैं । उन्होंने अपने करियर की शुरूआत 1980 में आहट नामक एक गजल एल्बम के रिलीज के साथ की और उसके बाद 1981 में मुकरार , 1982 में तरन्नुम , 1983 में महफिल , 1984 में रॉयल अल्बर्ट हॉल में पंकज उदास लाइव , 1985 में नायाब और 1986 में आफरीन जैसी कई हिट फिल्में रिकॉर्ड कीं। गजल गायक के रूप में उनकी सफलता के बाद, उन्हें महेश भट्ट की एक फिल्म , नाम में गाने के लिए आमंत्रित किया गया , जिसमें उनका गाना “चिट्ठी आई है” (ए लेटर हैज अराइव्ड) तुरंत हिट हो गया। इसके बाद उन्होंने कई हिंदी फिल्मों के लिए पार्श्वगायन किया। दुनिया भर में एल्बम और लाइव कॉन्सर्ट ने उन्हें एक गायक के रूप में प्रसिद्धि दिलाई। 2006 में, पंकज उधास को भारत के चौथे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म श्री से सम्मानित किया गया। उनके भाई निर्मल उधास और मनहर उधास भी गायक हैं। पंकज उधास का जन्म गुजरात के जेतपुर के नवागढ़ गांव में हुआ था। वह तीन भाइयों में सबसे छोटे थे। उनके माता-पिता केशुभाई उधास और जितुबेन उधास थे। उनके सबसे बड़े भाई मनहर उधास ने बॉलीवुड फिल्मों में हिंदी पार्श्व गायक के रूप में कुछ सफलता हासिल की । उनके दूसरे भाई निर्मल उधास भी एक प्रसिद्ध गजल गायक हैं और परिवार में गायन शुरू करने वाले तीन भाइयों में से वह पहले थे।

उधास ने सर बीपीटीआई भावनगर से पढ़ाई की थी। उनका परिवार मुंबई चला गया और पंकज ने वहां सेंट जेवियर्स कॉलेज में दाखिला लिया। उनका परिवार राजकोट के पास नवागढ़ नामक शहर से था और जमींदार ( पारंपरिक जमींदार ) थे। उनके दादा गांव के पहले स्नातक थे और भावनगर राज्य के दीवान (राजस्व मंत्री) बने । उनके पिता, केशुभाई उधास, एक सरकारी कर्मचारी थे और उनकी मुलाकात प्रसिद्ध वीणा वादक अब्दुल करीम खान से हुई थी, जिन्होंने उन्हें दिलरुबा बजाना सिखाया था । जब उधास बच्चे थे, तो उनके पिता दिलरुबा, एक तार वाला वाद्ययंत्र बजाते थे। उनकी और उनके भाइयों की संगीत में रुचि देखकर उनके पिता ने उनका दाखिला राजकोट की संगीत अकादमी में करा दिया। उधास ने शुरूआत में तबला सीखने के लिए खुद को नामांकित किया लेकिन बाद में गुलाम कादिर खान साहब से हिंदुस्तानी गायन शास्त्रीय संगीत सीखना शुरू किया। इसके बाद उधास ग्वालियर घराने के गायक नवरंग नागपुरकर के संरक्षण में प्रशिक्षण लेने के लिए मुंबई चले गए। उन्होंने फरीदा उधास से शादी की। उनकी दो बेटियां रेवा उधास और नायाब उधास हैं।

चाँदी जैसा रंग है तेरा, सोने जैसे बाल (अर्थात तुम्हारा रंग चाँदी जैसा है, तुम्हारे बाल सोने जैसे हैं) नामक गीत पंकज उधास द्वारा गाया गया था। उनका पहला मंच प्रदर्शन चीन-भारत युद्ध के दौरान था , जब उन्होंने ” ऐ मेरे वतन के लोगो ” गाया था। चार साल बाद वह राजकोट में संगीत नाट्य अकादमी में शामिल हो गए और तबला बजाने की बारीकियां सीखीं। उसके बाद, उन्होंने विल्सन कॉलेज और सेंट जेवियर्स कॉलेज, मुंबई से विज्ञान स्नातक की डिग्री हासिल की और मास्टर नवरंग के संरक्षण में भारतीय शास्त्रीय गायन संगीत में प्रशिक्षण शुरू किया। उधास का पहला गाना फिल्म “कामना” में था, जो उषा खन्ना द्वारा संगीतबद्ध और नक्श लायलपुरी द्वारा लिखा गया था, यह फिल्म फ्लॉप रही, लेकिन उनके गायन को बहुत सराहा गया। इसके बाद, उधास ने गजलों में रुचि विकसित की और गजल गायक के रूप में अपना करियर बनाने के लिए उर्दू सीखी। उन्होंने कनाडा और अमेरिका में गजल संगीत कार्यक्रम करते हुए दस महीने बिताए और नए जोश और आत्मविश्वास के साथ भारत लौट आए। उनका पहला गजल एल्बम, आहट , 1980 में रिलीज हुआ था। यहीं से उन्हें सफलता मिलनी शुरू हुई और 2011 तक उन्होंने पचास से अधिक एल्बम और सैकड़ों संकलन एल्बम जारी किए थे। 1986 में, उधास को फिल्म नाम में अभिनय करने का एक और मौका मिला , जिससे उन्हें प्रसिद्धि मिली। 1990 में, उन्होंने फिल्म घायल के लिए लता मंगेशकर के साथ मधुर युगल गीत “महिया तेरी कसम” गाया । इस गाने ने जबरदस्त लोकप्रियता हासिल की. 1994 में, उधास ने साधना सरगम के साथ फिल्म मोहरा का उल्लेखनीय गीत, “ना कजरे की धार” गाया, जो बहुत लोकप्रिय भी हुआ। उन्होंने पार्श्व गायक के रूप में काम करना जारी रखा और साजन , ये दिल्लगी , नाम और फिर तेरी कहानी याद आयी जैसी फिल्मों में कुछ आॅन-स्क्रीन उपस्थिति दर्ज की । दिसंबर 1987 में म्यूजिक इंडिया द्वारा लॉन्च किया गया उनका एल्बम शगुफ्ता भारत में कॉम्पैक्ट डिस्क पर रिलीज होने वाला पहला एल्बम था। बाद में, उधास ने सोनी एंटरटेनमेंट टेलीविजन पर आदाब आरज है नामक एक प्रतिभा खोज टेलीविजन कार्यक्रम शुरू किया। अभिनेता जॉन अब्राहम उधास को अपना गुरु कहते हैं। उधास की गजलें प्यार, नशा और शराब की बात करती हैं ।

पंकज उधास को पहली बार ईनाम में मिले थे 51 रुपये
‘चांदी जैसा रंग है तेरा’, ‘रिश्ता तेरा मेरा’, ‘न कजरे की धार’, ‘मत कर इतना गुरूर’, ‘आदमी खिलौना है’ से लेकर ‘जीए तो जीए कैसे’ जैसे ढेरों सुपरहिट गाने देने वाले पंकज उधास 26 फरवरी को हम सबको छोड़कर इस दुनिया से चले गए। गजल गायक के निधन के बाद उनके घर से लेकर इंडस्ट्री में जैसे मातम छा गया। 17 मई 1951 को जन्मे पंकज उधास 73 साल के थे। उनके जाने के बाद से ही फैंस उनके गानों को याद कर रहे हैं और पंकज के बारे में और भी बातें जानने के लिए उत्सुक हैं।आइए आपको पंकज उधास की कहानी और कुछ और रोचक किस्से सुनाते हैं। पंकज राजकोट के पास चरखड़ी गांव में पले बढ़े। उनके दादा उस गांव के पहले शख्स थे जिन्होंने ग्रेजुएशन पूरा किया और फिर वह दीवान की पढ़ाई करने के लिए आगे चले गए। उनके पिता भी सरकारी नौकरी किया करते थे। इस तरह पंकज का परिवार पढ़ा-लिखा और गांव के जागीदार परिवार था।

पंकज उधास बचपन में ही संगीत से जुड़ गए थे। वह 7 साल की उम्र से गाने लगे थे। शुरूआत में वह सिर्फ शौकिया गाया करते थे। उनके गाने के टैलेंट को उनके भाई ने ही पहचाना था। उन्होंने ही पंकज को गाने के लिए प्रेरित किया और उन्हें अपने साथ कार्यक्रम में ले जाया करते थे। भाई की बदौलत इंडस्ट्री में आए पंकज- पहली बार पंकज उधास ने भाई के साथ एक कार्यक्रम में गाना गाया था। ये वो समय था जब भारत चीन का युद्ध चल रहा था। उन्होंने ‘ऐ वतन के लोगों’ गाना गाकर लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया था। तभी उन्हें ईनाम के तौर पर 51 रुपये दिए गए थे। बस इसके बाद उन्होंने गायिकी और गजल की दुनिया में कदम रखा।

पंकज उधास का सुपरहिट गजल- पंकज उधास ने करियर में सुपरहिट गजल ‘चांदी जैसा रंग है तेरा’ के साथ म्यूजिक इंडस्ट्री में तहलका मचा दिया था। ढेरों एलब्म और गानों के चलते उन्होंने कई साल इंडस्ट्री पर राज किया। आखिरी बार उनका गाना ‘रात भर तन्हा रहा’ गाना गाया था। ये गाना राज बब्बर और जीनत अमान की फिल्म ‘दिल तो दीवाना है’ का था। पंकज उधास ने संगीत की दुनिया पर अमिट छाप छोड़ी। अपनी साधारण शुरूआत के बावजूद, वह अपनी असाधारण प्रतिभा और गजल गायन की कला से विश्वप्रसिद्ध हुए। उनकी यात्रा कई उपलब्धियों से भरी रही है।

एक रिपोर्ट के अनुसार, पंकज उधास मंच पर कदम रखने से पहले अपने हर कॉन्सर्ट में हनुमान चालीसा का पाठ करते थे। एक संगीत से भरे परिवार से आने वाले, उधास अपने बड़े भाइयों निर्मल और मनहर से प्रेरित थे, दोनों अपने आप में कुशल संगीतकार थे। राजकोट के संगीत और नाटक अकादमी में तबला की ट्रेनिंग लेने के बाद, दिवंगत गायक ने पढ़ाई की और मुंबई के विल्सन कॉलेज से साइंस में बीए की डिग्री हासिल की। उन्होंने शास्त्रीय संगीत में मास्टर नवरंग के मार्गदर्शन में काफी कुछ सीखा।

पंकज उधास ने अपना सिनेमाई डेब्यू 1972 की फिल्म ‘कामना’ से किया। हालांकि, फिल्म बॉक्स आॅफिस पर अच्छा परफॉर्म नहीं कर पाई, लेकिन उनकी गजलों को बहुत तारीफ मिली। विदेशों में फिल्म बुरी तरह पिट गई। कनाडा और अमेरिका में ‘कामना’ बिल्कुल नहीं चली। फिर पंकज ने गजल गायन में अपनी जगह बनाई। पंकज ने अपने इंटरव्यू में बताया था कि जब वो न्यूयॉर्क में शो कर रहे थे तो उन्हें जो टैक्सीवाला मिला था, वो उनका जबरदस्त फैन निकला। उसने उन्हें बताया कि वो पूरी रात उनकी गजल सुनता है। एयरपोर्ट छोड़ने के बाद उसने उनसे पैसे भी नहीं लिए। ऐसे कई किस्से विदेशों में होते रहे जब भी पंकज विदेश जाते थे तो कोई टैक्सी वाला या फिर होटल मालिक से लेकर कर्मचारियों तक उनके दीवाने निकल आते थे औन उनसे पैसे लेने से इनकार कर देते थे। पर यह बात पंकज को बड़ी मुश्किल में डाल देती थी, उसे लगता था कि मैं उनका जबरदस्ती में हक मार रहा हूं। पर उनका दिख रखने के लिए वह मान भी जाते थे। ुइस तरह के थे पंकज उधास। कई बार कार्यक्रमों में लोगों की फरमाईश पर थोड़ा आगे पीछे भी दर्शकों के पसंदीदा गीत और गजल गा देते थे। पर एक बार यूपी में एक गैंगस्टर ने कोई फरमाइश की जिसमें थोड़ी देर होने पर वह गन निकालकर बैठ गया था। तब पंकज जी ने कहा कि इस तरह से तो मैं नहीं गा पाऊंगा। जब उन्होंने गन अंदर रखी तब उन्होंने फरमाइश वाला गाना गाया।

Shashi Kumar Keswani

Editor in Chief, THE INFORMATIVE OBSERVER