TIO, भोपाल।

आज सोशलमीडिया,आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और सैटेलाइट के दौर में सच्चे , इमानदार ,पढ़े लिखे,और विनम् प्राणी कही खो गए हैं। हम और हमारा समाज सिर्फ अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए किसी की भी टांग खींचने में पीछे नहीं हटते। जात पांत , अमीर गरीब या किसी भी प्रकार की रिश्तेदारी को अपने अपने मतलब के लिए ईस्तेमाल करने में नहीं झिझकते। सबसे बड़ी बात है कि होगी इस सच को आईना दिखाने वाले को समाज पागल करार देती है। लेकिन इस सोशल मीडिया के जमाने में रिश्ते-नाते खो जैसे गए हैं। एक ही घर में भाई-बहन आपस में बात नहीं करते और न ही किसी विषय पर बैठकर चर्चा होती है।

पहले तो टीवी देखते समय साथ में हर बात पर बहस भी होती थी, या फिर खाने की टेबल पर किसी न किसी बात पर चर्चा हो जाती थी। अब तो अधिकतर बात वाट्सअप पर होती है। बधाई भी फेसबुक या इंस्टाग्राम पर दी जाती है। अगर यही चलता रहा तो रिश्तों का तानाबाना इस तरह से टूटेगा जो किसी को समझ नहीं आएगा। इसलिए आज जरूरत है युवाओं को इस आभाषी दुनिया से बाहर निकालकर हकीकत के रिश्तों के करीब लाना। अख्तर अली साहब के लिखे इस अद्भुत व्यंग्य को सलाम है, जो तब भी समसामयिक थी, आज भी है, और आने वाले दिनों में भी रहेगा। कदाचित हम समाज के सामने कोई सवाल रख पाएं तो यही हमारी सफलता होगी।

Shashi Kumar Keswani

Editor in Chief, THE INFORMATIVE OBSERVER