राघवेंद्र सिंह
कोई माने या ना माने मध्य प्रदेश में भाजपा की सरकार बनाने में लाडली बहनों की बड़ी भूमिका रही है। यह बात कोई और नहीं बल्कि कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी भी कह चुके हैं। उनकी इस साफगोई से कांग्रेस तो क्या भाजपा के भी बहुत से नेता सहमत नहीं होंगे लेकिन सच्चाई के सबसे नजदीक तो यही है। बहनों में शिवराज की लोकप्रियता से सरकार परेशान सी है और हरेक महीने की दस तारीख को करीब 17 सौ करोड़ रु बहनों के खाते में डालने का काम डॉ यादव सरकार के लिए मुश्किल का सबब बन रहा है। सरकार का खजाना खाली है और भुगतान के अभाव में ठेकेदार आत्महत्या कर रहे हैं। विकास कार्य की गति धीमी पड़ने के खतरे बढ़ गए हैं।सरकार का खजाना खाली है। पेमेंट अटक रहे हैं। सबसे बुरा असर राज्य के नगर निगमों के कामकाज पर पड़ रहा है।
दिसम्बर में इंदौर नगर निगम के एक ठेकेदार अमरजीत सिंह भाटिया ने करीब 14 करोड़ का भुगतान नहीं होने के कारण एसिड पीकर आत्महत्या कर ली थी। सफाई में सबसे अव्वल रहने वाले इंदौर में 200 करोड़ रु का भुगतान बकाया है। ऐसी कहानी लगभग हर नगर निगम की है। इस घटना ने सबको हिला कर रख दिया था। नगर निगमो की आर्थिक हालात खराब है यह सबको पता है। मगर अभी तक संकट समाधान के लिए कोई खास उपाय नही किए जा सके हैं। डॉ यादव की सरकार ने समाधान के रूप में सबसे अनुभवी और मैनेजमेंट में माहिर नेता कैलाश विजयवर्गीय को नगरीय निकाय विभाग का मंत्री बना कर थोड़ी राहत की सांस ली होगी। लेकिन जबलपुर नगर निगम के एक ठेकेदार भगवान सिंह ठाकुर ने ढाई करोड़ रु का पेमेंट नही होने के कारण गोली मारकर जान दे दी। 18 फरवरी को मृतक ठेकेदार की बेटी की शादी होना है। अंदाज़ा लगाइए कि उन्होंने किन हालात में आत्महत्या की और उनका परिवार कितने विकट संकट में है। इन हादसों को हांडी के चावल की तरह लेने चाहिए। हालात बेहद गम्भीर हैं।
ग्वालियर नगर निगम की महापौर शोभा सिकरवार ने आर्थिक तंगी को देखते हुए नगर निगम की कार लौटा दी है। अब वे अपनी निजी कार इस्तेमाल कर रही है। उनका कहना है चुंगी करके पूर्ति हुई है लेकिन उससे कर्मचारियों का वेतन ही बट पाएगा। इससे साफ लगता है की हालत बहुत विस्फोटक है और कोई ठेकेदार आत्महत्या करें या कोई अनहोनी हो उसके पहले भुगतान की व्यवस्था करने की जरूरत है और ठेकेदारों में आत्मविश्वास लाने की भी आवश्यकता है। नगर निगम में व्याप्त भ्रष्टाचार भी ठेकेदारों की जान लेने का एक बड़ा कारण उभर कर सामने आया है। आर्थिक तंगी विभागीय मंत्री कैलाश विजयवर्गी पर यह एक बड़ी चुनौती के रूप में सामनेआई है।
इसके अलावा खास बात यह है कि जीत के नायकों में पीएम मोदी के बाद सबसे ज्यादा क्रेडिट जगत मामा बने पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को भी जाता है। टीम वर्क का चलन खत्म सा हो गया है। अब जीत का श्रेय बांट कर नही लिया जाता । हार का ठीकरा फोड़ने के लिए अलबत्ता सिर खोजे जाते हैं। खैर यह राजनीतिक प्रपंच अभी लंबा चलेगा। एक समय था जब 9 महीने सीएम रहने के बाद तिरंगा झंडा केस में वारंट जारी होने के कारण पद छोड़ने वाली उमा भारती अक्सर कहती थी शिवराज सरकार बच्चा चोर सरकार है। वे कहती थीं कि प्रदेश सरकार मेरे बच्चे की तरह है और पार्टी ने उनके बच्चे जैसी सरकार शिवराज को दे दी। अब शिवराज सिंह चौहान का भी दर्द छलकता दिखता है। उनके नेतृत्व वाली सरकार में भाजपा के 163 विधायक जीते और सीएम डॉ मोहन यादव बन गए। इस पर शिवराज सिंह कहते हैं अपन रिजेक्टेड नही हैं। लाडली बहनों के चहेते भाई और प्रिय मामा का पद उनसे कोई नही छीन सकता। सबसे खास बात यह भी है कि जब पूरा देश 22 जनवरी को अयोध्या में राम लाल के प्राण प्रतिष्ठा समारोह की तैयारी में डूबा हुआ है ऐसे में मध्य प्रदेश कई तरह की समस्याओं से जूझ रहा है। इसमें जिन लाडली बहनों के भरपूर वोट से भाजपा को भारी बहुमत से सरकार बनाने का अवसर मिला अब उन्हें लाडली बहनों के खाते में कंगाली में डूबी सरकार को जब हर महीने करीब 17 सौ करोड रुपए डालने पड़ रहे हैं तब लगता है जो बहने सरकार को बनाने में मददगार साबित हुई थी अब उन बहनों से किए वादे पूरा करने में सरकार हालत खराब हो रही है। सच तो यही है। जब तक अतिरिक्त धनराशि का इंतजाम नहीं होता तब तक हर महीने की 10 तारीख शिवराज की लाडली बहनों के लिए भले ही मुस्कुराने का मौका बने लेकिन सरकार के लिए चिंता का बड़ा कारण बन रही है।