योगीराज योगेश
लाड़ली बहनों के भैया और लाड़ले भानेजों के मामा पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इन दिनों अपनी राजनीति के अलग रंग में नजर आ रहे हैं। विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद से ही वे एकला चलो की राह पर निकल पड़े हैं। ऐसा लगता है कि आलाकमान उनके लिए कोई भूमिका तय करे उसके पहले शिवराज ने खुद अपनी भूमिका तय कर ली है। इंतजार है बस केंद्रीय मंत्रिमंडल में फेरबदल का। राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह के बाद मोदी मंत्रिमंडल का विस्तार कभी भी हो सकता है। ऐसे में शिवराज को उम्मीद है कि उन्हें देर-सबेर मंत्रिमंडल में जगह मिल जाएगी, लेकिन यदि उन्हें मंत्री पद नहीं मिला तो शिवराज का राजनीतिक वनवास तय माना जा सकता है। फिर उन्हें संगठन में रहकर ही समय पास करना पड़ेगा।
दरअसल, जब से मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजे आए हैं तब से शिवराज अपने बयानों को लेकर सुर्खियों में हैं। चुनाव नतीजे घोषित होते ही वे छिंदवाड़ा की तरफ कूच कर गए और कहा कि अब उनका लक्ष्य लोकसभा चुनाव हैं। ग़ौरतलब है कि 2019 में मध्य प्रदेश में लोकसभा की 29 सीटों में से केवल एक छिंदवाड़ा को छोड़कर 28 सीटें भाजपा को मिली थी। इसलिए शिवराज ने कहा कि इस बार प्रदेश कि सभी 29 सीटें जिताकर मोदी जी के हाथ मजबूत करना है। शिवराज की मंशा ठीक थी, लेकिन फिर एक के बाद एक उनके जो बयान आए उन्होंने शिवराज के लिए मुसीबतें खड़ी कर दीं। नतीजा यह हुआ कि बंपर बहुमत मिलने के बावजूद उनकी मुख्यमंत्री पद पर ताजपोशी नहीं हो सकी। यही नहीं उनके समर्थक भी किनारे कर दिए गए।
शिवराज के बयानों पर ज़रा आप भी ग़ौरफरमाइए :
चुनाव नतीजे आने के बाद जब प्रदेश के नेता आलाकमान के दरबार में हाजिरी लगा रहे थे तब शिवराज बोले- दिल्ली नहीं जाऊंगा। इसके बाद अलग बयान में उन्होंने कहा कि कोई पद मांगने से बेहतर मरना पसंद करूंगा। फिर पलटते हुए यह भी कहा कि पार्टी जो जिम्मेदारी देगी उसे निभाने को तैयार हूं। फिर एक दिन उन्होंने दार्शनिक अंदाज में कबीर के भजन को उद्धृत करते हुए कहा कि “जस की तस धर दीनी चदरिया, झीनी रे झीनी चदरिया।” और अब हाल ही में उन्होंने कहा कि कभी-कभी राजतिलक होते-होते वनवास हो जाता है। कुछ अच्छे उद्देश्य के लिए ऐसा होता है। शायद कोई बड़ा उद्देश्य होगा। शिवराज ने यह भी जोड़ा कि उनकी जिंदगी बहन- बेटियों और जनता जनार्दन के लिए है। उनकी आंखों में आंसू नहीं रहने दूंगा। दिन-रात काम करूंगा। अब उन्होंने अपने नए आवास का नाम भी मामा का घर रख दिया है। इस बीच अपने दौरों के दौरान महिलाओं के भावुक होकर रोने और उनके साथ खुद शिवराज के फफक-फफक कर रोने की रस्म जारी है।
केंद्र में मंत्री बनेंगे शिवराज:
केंद्र में मंत्रिमंडल का फेरबदल बहुत जल्द होने वाला है और लंबे समय से यह कयास लगाए जा रहे हैं कि शिवराज सिंह चौहान, बीडी शर्मा समेत कई लोगों को केंद्रीय मंडल में एडजस्ट किया जा सकता है, क्योंकि मंत्रिमंडल से नरेंद्र सिंह तोमर, प्रहलाद पटेल जैसे नेताओं को मध्य प्रदेश मंत्रिमंडल में जगह मिलने के बाद उनके पद रिक्त हुए हैं। कयास यह भी लगाया जा रहे हैं कि शिवराज को कृषि या वन एवं पर्यावरण मंत्री बनाया जा सकता है, क्योंकि शिवराज ने अपने हालिया बयानों में यह भी कहा था कि महिला व बेटा बेटियों का उत्थान और वन एवं पर्यावरण उनके प्रिय विषय हैं। उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री रहते हुए भी वे रोज एक पौधा लगाते रहे हैं।
लेकिन ताजा परिस्थितियों और आलाकमान की बेरुखी के चलते ऐसा बिल्कुल भी नहीं लग रहा है कि शिवराज को मंत्रिमंडल में जगह मिल सकती है। केवल एक बात जरूर उनके पक्ष में है कि बहुत जल्दी लोकसभा चुनाव होने हैं और चुनाव के मद्देनजर शिवराज जैसे बड़े नेता को दरकिनार करना आसान नहीं होगा। लेकिन एक बात यह भी तय है कि यदि लोकसभा चुनाव तक शिवराज को कोई जिम्मेदारी नहीं मिली तो उनका राजनीतिक भविष्य को लेकर सवाल जरूर उठने लगेंगे।
पांचवीं बार इसलिए नहीं बन पाए मुख्यमंत्री:
दरअसल प्रदेश में बंपर 163 सीटें जीतने के बाद शिवराज और उनके समर्थकों को लग रहा था कि आलाकमान के लिए शिवराज के लिए मुख्यमंत्री पद से हटाना आसान नहीं होगा। शायद इसीलिए शिवराज आलाकमान से भेंट मुलाकात करने दिल्ली नहीं गए और अति आत्मविश्वास में यहीं से बयान देते रहे। इस बीच आलाकमान ने भी डॉ मोहन यादव को मुख्यमंत्री बनाकर शिवराज को तगड़ा झटका दे दिया। राजनीतिक हलकों में कहा जा रहा है कि अति आत्मविश्वास भरे बयान शिवराज की दोबारा ताजपोशी में बड़ी बाधा बने। यही नहीं जब मंत्रिमंडल का गठन हुआ तब शिवराज के कट्टर समर्थक भी दरकिनार कर दिए गए। भूपेंद्र सिंह और गोपाल भार्गव जैसे वरिष्ठ नेताओं को मंत्रिमंडल में जगह ही नहीं मिल पाई। शिवराज के जिन समर्थकों को मंत्रिमंडल में जगह मिली, उनके सुर भी मंत्री पद पाते ही बदल गए और मोहन यादव की जय जयकार में लग गए। राजनीतिक परिस्थितियों इतनी तेजी से बदली कि ऐसा लग रहा है कि शिवराज ने खुद जस के तस चदरिया नहीं धरि बल्कि चदरिया उनसे छीनकर जस के तस धरवा ली गई है।
लोकसभा चुनाव के लिए जबरन चिंता जाहिर करना भारी पड़ा!
विधानसभा चुनाव के नतीजे आते ही लोकसभा की सभी 29 सीटें जिताने का ऐलान शिवराज के लिए भारी पड़ गया। दरअसल बीते दो चुनाव का विश्लेषण करें तो सामने आता है कि कि वर्ष 2014 में जब नरेंद्र मोदी पहली बार प्रधानमंत्री बने तो उसमें शिवराज की कोई खास भूमिका नहीं थी। वह चुनाव भी मोदी के नाम पर ही लड़ा गया था। इसके बाद जब 2019 में लोकसभा की 29 में से 28 सीटें भाजपा को मिलीं तब मध्य प्रदेश में कमलनाथ की सरकार बन चुकी थी। शिवराज तो विपक्ष में बैठे थे। 2019 का यह चुनावी मोदी की नेतृत्व में ही लड़ा गया था। यानी मोदी ही जीत के शिल्पकार थे। तो अब ऐसे में शिवराज यह कैसे कह सकते हैं कि वे लोकसभा का चुनाव जिताएंगे। कहा यह भी जा रहा है कि जब मध्य प्रदेश और अन्य राज्यों में मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ा गया और मोदी की वजह से जीत मिली तो फिर लोकसभा में मोदी की वजह से जीत क्यों नहीं मिलेगी। इसलिए शिवराज को किनारे करने की एक वजह यह भी प्रतीत होती है।
तो क्या मप्र में “शिवयुग” का अंत हो गया:
जिस प्रकार से आलाकमान ने शिवराज को आईना दिखाया है उससे तो ऐसा ही लगता है कि शिवराज फिलहाल नेपथ्य में ही रहेंगे। क्योंकि मध्य प्रदेश में ऐतिहासिक जीत दिलाने के बाद भी जिस तरह से उनकी ताजपोशी को खारिज किया गया, उससे शिवराज के भविष्य को लेकर अच्छे संकेत तो नहीं मिलते। आश्चर्यजनक बात तो यह है कि सरकार बनने के बाद से भाजपा आलाकमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने न तो शिवराज से बात की न ही उन्हें मिलने बुलाया। शिवराज दिल्ली गए जरूर लेकिन पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा से मिलकर आ गए। नड्डा ने भी उनको साफ कह दिया कि फिलहाल आपकी भूमिका दक्षिण के राज्यों में पार्टी के लिए काम करने की है। यानी स्पष्ट संकेत है कि अभी उन्हें होल्ड पर ही रहा गया है।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं।)