सुधीर निगम
विधानसभा चुनाव की खुमारी उतरने के बाद अब लोकसभा चुनाव की बयार बहने लगी है। और जाहिर है कि अधिकतर लोगों की नजर सत्तासीन और विपक्षी खेमे के खेल पर ही है। पिछले दिनों की घटनाओं और गतिविधियों को देखें तो ‘क्लियर कट’ समझ आता है कि भाजपा ने हलवा-पूड़ी तैयार कर लिया है, बस दावत की तैयारी है। दूसरी ओर विपक्षी खेमे में तो पांडाल भी नहीं लग पाया है।
अयोध्या में श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा की तैयारी चल रही है। ये इतना बड़ा मुद्दा है जिसके सहारे भाजपा चुनावी वैतरणी पार लगाने के लिए पूरी तरह आश्वस्त हो सकती है। आरएसएस भी इस मौके को यूँ ही नहीं जाने देगी। पता चला है कि उसने मार्च तक ढाई करोड़ लोगों को अयोध्या में श्रीराम के दर्शन कराने का लक्ष्य तय किया है। आप समझ ही सकते हैं कि इसका इम्पैक्ट कितना गहरा और किसके पक्ष में होगा। हालाँकि भाजपा सिर्फ राम मंदिर के भरोसे नहीं बैठने वाली। उसका चुनावी मैनेजमेंट इतना तगड़ा है कि विरोधियों को उस तक पहुँचने में ही वर्षों लग जाएंगे। वो ऐसे किसी भी एंगल को नहीं छोड़ती, जो उसे वोट दिला सकते हैं। तीन बड़े राज्यों में चुनाव जीतकर भी भाजपा खुश होकर नहीं बैठ गई। वहाँ जिस तरह नेतृत्व परिवर्तन किए, वो भी उसकी लोकसभा चुनाव की तैयारी को दिखाते हैं। मप्र में यादव (ओबीसी), छत्तीसगढ़ में आदिवासी और राजस्थान में ब्राह्मण मुख्यमंत्री, इसी दिशा में उठाए गए कदम हैं। उप्र और बिहार में यादव वोटर बड़ी भूमिका निभाएंगे, वहाँ मोहन यादव का इस्तेमाल किया जाएगा। विष्णुदेव साय का उपयोग छत्तीसगढ़ के साथ ही मप्र, झारखंड, ओडिशा, आंध्र, महाराष्ट्र, बिहार, नार्थ ईस्ट के राज्यों में आदिवासियों को लुभाने में होगा। ब्राह्मण वैसे ही भाजपा का कोर वोटर है, भजनलाल शर्मा के बहाने उसे और मजबूत किया गया। भाजपा भले ही दिखाने के लिए ऊपरी तौर पर फ्रीबीज का विरोध करे, लेकिन चुनाव जीतने के लिए उसका सहारा लेती है और लोकसभा में भी इसकी तैयारी है। मप्र में लाडली बहना ने उसे सत्ता दिलाने में मुख्य भूमिका निभाई। राष्ट्रीय स्तर पर भी ऐसी ही फ्रीबीज की योजनाएँ हैं, खासतौर पर महिलाओं के लिए। महिला किसानों की सम्मान निधि छह हजार से बढ़ाकर 12 हजार रुपए और आर्थिक रूप से कमजोर महिलाओं को कैश ट्रांसफर की योजना इसी का एक अंग हैं। भारत के करीब 95 करोड़ मतदाताओं में 46 करोड़ से ज्यादा महिलाएं हैं। अनुमान है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में इनमें से 33 करोड़ मतदान करेंगी। तो समझ जाइये कि इन योजनाओं से भाजपा कहाँ निशाना साध रही है। मप्र में वो इसका स्वाद चख चुकी है।
भाजपा के मुकाबले कांग्रेस या विपक्ष की तैयारियाँ अभी ‘इंडिया’ के सीट बँटवारे पर ही अटकी हुई हैं। उस पर बात बने तो बात आगे बढ़े। उप्र, बिहार, बंगाल जैसे बड़े राज्यों में सबसे ज्यादा अड़चन आने वाली है। इन राज्यों में कांग्रेस की हालत किसी से छिपी नहीं है। इन्हीं राज्यों के सीट बँटवारे में ‘इंडिया’ की कुंजी छिपी है। यदि इंडिया को भाजपा से मुकाबला करना है तो मेरी व्यक्तिगत सलाह है कि गठबंधन के दलों को ईगो एक तरफ रखकर सोचना होगा। पिछले चुनाव में जो जीता हो या दूसरे नंबर पर रहा हो, उस दल को ही वहाँ से लड़ाना चाहिए। कांग्रेस तो सिर्फ राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा के भरोसे बैठी है। 14 जनवरी को मणिपुर से शुरू होने वाली 66 दिन की यह यात्रा 20 मार्च को मुंबई में समाप्त होगी। 6700 किमी की यह यात्रा जिन 15 राज्यों से गुजरेगी वहाँ 357 लोकसभा सीटें हैं। इस यात्रा से कांग्रेस उम्मीद लगाए है। कांग्रेसी भारत जोड़ो यात्रा के पहले चरण के बाद कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश और हाल में तेलंगाना में विधानसभा चुनाव की जीत का श्रेय इसी यात्रा को दे रहे हैं। पर वो भूल जाते हैं कि मप्र, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में उसे इस यात्रा के बाद मुंह की खानी पड़ी है। यदि कांग्रेस इसी यात्रा के भरोसे बैठी रही, तो वही कहावत सच होती दिखेगी कि ‘भरोसे की भैंस, पाड़ो ब्यावै’। अगर कांग्रेस या विपक्षी दलों को पाड़ा नहीं चाहिए और भाजपा का विजयी रथ रोकना है, तो उसके स्तर पर जाकर जनता की भावनाओं को अपनी तरफ मोड़ने और चुनाव व बूथ मैनेजमेंट की बारीकियाँ सीखनी होंगी, जो फिलहाल संभव नहीं दिख रहा।