शशी कुमार केसवानी की यादों में बसी दादा की चंद बातें

दादा लक्ष्मणदास केसवानी एक ऐसी शख्सिसत थी, जिसने अपनी जान हथेली पर लेकर आजादी की लड़ाई में भाग लिया था। हमेशा देश के लिए बेखौफ और निडर रहने वाले केसवानी हमेशा देश के लिए सोचते रहते थे और नई-नई तरह की आजादी से सबंधित प्लानिंग किया करते थे। यह बात अलग है कि सारी प्लानिंग में हमेशा वे अपनी जान को हथेली पर रखकर ही चलते थे। जुनूनी ऐसे थे किअपने साथ अपने कई दोस्तों को भी उस चीज के लिए प्रेरित कर रखा था। वह भी हमेशा अपनी जान को हाथों में लेकर चलते थे। ऐसे ही जुनून से चींजे हासिल की जा सकती हैं। अंग्रेजों को अपने कारनामों से नाक में दम करने वाले केसवानी हमेशा नए-नए कारनामों को अंजाम देकर अंग्रेजों को होश उड़ाते रहे। कभी कलेक्ट्रेट में बम फोड़कर तो कभी हथियारों से ट्रेनों की पटरियां उखाड़कर हैरानी डालते रहे और अपनी स्मार्टनेस से हमेशा बच भी निकलते। हालांकि कई बार पकड़े गए तो जेल भी गए।

आज ऐसा वक्त है कि ऐसे जुनूनी और दीवाने लोगों की बातें करके लोगों को प्रेरित किया जाए। साथ ही साथ उनके बनाए आदर्शों पर चलकर देशहित में कार्य करने के लिए जागरुक किया जाए। सौभाग्य से ऐसे क्रांतिकारी का जन्म दिन एक जनवरी को आता है। पर पूरा देश नए साल के जश्न मदहोश रहता है। तभी हमने निर्णय किया है कि आजादी के ऐसे दीवानों के लिए एक दिन तो बहुत कम हैं क्यों न केसवानी फांउंडेशन के साथ -साथ कई अन्य सहयोगी संस्थाएं देश भर में अलग-अलग दिनों पर आजादी के दीवानों पर कार्यक्रम आयोजित करें और उन्हें इस बहाने साल भर याद किया जाता रहे। इसी बात को ध्यान में रखते हुए केसवानी फांउंडेशन ने आने वाले 2024 में देश भर के अलग-अलग शहरों में में अलग-अलग आयोजन आयोजित किए जाएं। जिससे लोगों के दिलों में देश के लिए एक अलग जज्बा पैदा किया जाए। साथ ही साथ उत्कृष्ट कार्य करने वाले लोगों को अलग-अलग क्षेत्रों में सम्मानित भी किया जाएगा। दादा लक्ष्मणदास केसवानी देश के उन पत्रकारों में से एक हैं, जिन्होंने आजादी की मशाल को ही कलम बना लिया था और अंग्रजों से लेकर मोहम्मद अली जिन्ना की नाक में दम कर दिया था। तो क्यों न ऐसे शख्स के नाम पर पत्रकारिता में बेखौफ लेखनी के लिए उन युवाओं को प्रेरित किया जाए और उन्हें सम्मानित किया जाए, जिससे वह हमेशा देश और समाज के हितों में काम करते रहें। दादा लक्ष्मणदास केसवानी ने आजादी के ऊपर 16 किताबें भी लिखी थी।

साथ ही साथ वह जीवन में प्रेम को भी उतना ही स्थान देते थे, जितना व्यक्ति की आजादी को देते थे। यही कारण था कि उन्होंने 8 किताबें प्रेम कहानियों पर लिखी पर यह कहानियां भी बंटवारे से जुड़ी हुई थीं। खासतार पर मुगल्यानी दुनियाभर में चर्चित किताब रही। जो एक अमर प्रेम कहानी है।1948 से 49 तक मुंबई में पृथ्वी थिएटर में पृथ्वीराज कपूर के साथ काम करने से प्रेम के किस्से और परवान चढ़े। सन 1949 के अंत में भोपाल आकर बसते ही भोपाल की एक प्रेम कहानी लिख डाली, जिस पर उस जमाने में खासा विवाद भी रहा। अनेकों अपनी कविताओं से लोगों के दिलों में क्रांति के साथ प्रेम के फूल भी खिलखिलाते रहे। ऐसे मोहब्बती व्यक्ति की तखल्लस भी बहुत ही अलग हो सकती है। तो एक बार अचानक गोपालदास नीरज जी ने मुलाकात के दौरान कहा था कि यार केसवानी तुम्हारी बगिया में तो बहुत किस्म के फूल हैं, तो तुम अपनी तखल्लस (गुलशन) ही रख लो। बस उसी दिन से दादा लक्ष्मणदास केसवानी अपनी हर शायरी में अपनी तखल्लस गुलशन लिखते ही थे। अपने सहज और सरल स्वभाव से सभी का दिल जीतने वाले न केवल भोपाल में कुछ ही समय में देश के हर दिल अजीज शख्सियत बने गए और साथ ही साथ आजादी के बाद भी समाज की कुरीतियों से लड़ते रहे। अपने 99 साल की उम्र तक हर उस चीज का खुलकर विरोध किया। जो समाज को बांटने का काम करती थी। ऐसे ही हजारों और किस्से उनसे जुड़े हुए हैं, जिनकी चर्चा आने वाले समय में उनके नाम से आयोजनों में की जाएगी। आजादी के दीवानों को इतनी आसानी से भुलाया नहीं जा सकता। सौभाग्य से तो मैं उनका बेटा हूं। पर देश के हर बेटे को अपना बेटा ही मानते थे और उन्हें देश के लिए कुछ कर गुजरने के लिए हमेशा प्रेरित करते थे। साथ ही साथ बेटियों के लिए भी अपने मां-बाप का नाम रोशन करना और ऊंचे से ऊंचे मुकाम तक पहुंचने के लिए जोश भरते थे। आने वाले सालभर ऐसे क्रांतिकारी को याद करते रहेंगे। और उनकी चर्चा करते रहेंगे।

Shashi Kumar Keswani

Editor in Chief, THE INFORMATIVE OBSERVER