सुधीर निगम
मप्र ही नहीं छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भी नया दौर फिल्म का यही गीत बज रहा है। भाजपा ने या कहें मोदी ने सबको ये गाना गाने पर मजबूर कर दिया है। कहाँ लोग शिवराज, रमा और वसुंधरा पर नजरें टिकाए थे, कहाँ से मोहन, विष्णु और भजन बज गए। यही भाजपा की खासियत है, वो चौंकाने वाले निर्णय लेती है और उसे सही साबित करती है। सेकंड लाइन को आगे बढ़ाने में उसका कोई सानी नहीं है। विपक्ष खासतौर पर कांग्रेस को उससे सीख लेना चाहिए। अपने बुझे चिरागों को कूड़ेदान में डालकर, नए लोगों को कमान सौंपना होगी, तभी उसका कुछ भला हो सकता है।
मप्र में बड़े-बड़े दिग्गज लाइन में लगे थे, लेकिन मोशा ने सबको ठिकाने लगा दिया। कुछ तो बेचारे केंद्रीय मंत्री से सीधे विधायक। डिमोशन तो कभी-कभी हो जाता है, लेकिन किसी कलेक्टर को सीधे बाबू बना दो तो उस पर क्या गुजरेगी? यही धोखा यहाँ हो गया। मोहन यादव के नाम की लॉटरी खुली है। इस नाम ने अधिकतर लोगों को चौंकाया, लेकिन जो भाजपा और मोशा की कार्यशैली को जानते हैं, उन्हें ज्यादा आश्चर्य नहीं हुआ होगा। कोई माने, न माने लेकिन भाजपा के सारे महत्वपूर्ण निर्णयों में संघ एक प्रमुख कारक है। मोदी से लेकर हाल के निर्णयों की समीक्षा कर लें, सब समझ आ जायेगा।
सवाल ये आता है कि मोहन यादव ही क्यों? सबसे बड़ा कारण तो वही जो ऊपर लिखा है, संघ की पसंद। संघ के कारण ही उन्हें शिवराज सरकार में उच्च शिक्षा मंत्री बनाया गया था। याद कीजिये नई शिक्षा नीति को लागू करने के लिए मोहन कितनी जल्दी में रहे। कई चीजें एकदम नजर नहीं आतीं, लेकिन उसका इम्पैक्ट बहुत गहरा और दीर्घकालिक होता है। नई शिक्षा नीति के बारे में भी ऐसा ही है। संघ की जो कार्य पद्धति है, उसमें मोहन बिलकुल फिट बैठते हैं। फिर लो प्रोफाइल रहकर काम करते रहना। उस पर यादव होना। आने वाले समय में उप्र और बिहार के वोटरों पर नजर। मोहन यादव का चेहरा सामने रखकर उप्र और बिहार के यादव वोटरों को अपने पाले में खींचने की कोशिश होगी। लालू और अखिलेश की काट के तौर पर मोहन को पेश किया जाएगा।
निर्णय तो हो गया, शपथ भी हो गयी। अब चुनौतियों का सामना करने का समय आ गया है। सबसे पहले लाड़ली बहना को संभालना होगा। हालाँकि लोग कहेंगे कि बहना ने भाजपा को वोट दिया है, लेकिन क्या शिवराज को माइनस किया जा सकता है? बहुत सी महिलाएं हैं, जिन्होंने शिवराज के नाम पर वोट किया। अब मोहन के लिए उनका छोटा मामा बनना, एक बड़ी चुनौती है। अपनी लकीर बड़े मामा से बड़ी करने का अवसर उनके पास है। यदि इसमें सफल हो गए, तो अन्य चुनौतियों से निपटना ज्यादा मुश्किल नहीं। क्योंकि अर्थव्यवस्था, विकास, प्रशासनिक कसावट आदि चुनौतियाँ तो सबके सामने होती हैं। देखते हैं आगे क्या होता है, तब तक ये गाना गाइये – नया दौर है, नयी उमंगें, अब है नयी जवानी।