SHASHI KUMAR KESWANI

नमस्कार दोस्तों आईये आज बात करते है एक ऐसे कहानीकार, गीतकार, कथा लेखक और संवाद लेखन राजेंद्र कृष्ण की। राजेंद्र कृष्ण जब गीत लिखते थे तो लोगों की जुबान पर चढ़कर मुहावरों में बदल जाते थे। उनके फिल्मी गीत हमारी भाषा का आकार बढ़ाते थे। फिल्मी दुनिया में राजेन्द्र कृष्ण सभी फील्ड में वे कामयाब रहे। लेकिन राजेन्द्र कृष्ण के चाहने वालों में उनकी पहचान गीतकार की ही है। चार दशक तक उनका फिल्मों में सिक्का चला। इस दरमियान उन्होंने ऐसे नायाब गीत लिखे, जो आज भी उसी तरह से पसंद किए जाते हैं। उनके लिखे गीतों का कोई जवाब नहीं। वे सचमुच लाजवाब हैं। 6 जून, 1919 को अविभाजित भारत के जलालपुर जाटां में जन्मे राजेंद्र कृष्ण का पूरा नाम राजेंद्र कृष्ण दुग्गल था। राजेन्द्र कृष्ण को बचपन से ही शेर-ओ-शायरी का जु़नूनी शौक था। अपना शौक पूरा करने के लिए वे स्कूल की किताबों में अदबी रिसालों को छिपाकर पढ़ते।

यह शौक कुछ यूं परवान चढ़ा कि आगे चलकर खुद लिखने भी लगे। पन्द्रह साल की उम्र तक आते-आते उन्होंने मुशायरों में शिरकत करना शुरू कर दिया। जहां उनकी शायरी खूब पसंद भी की गई। शायरी का शौक अपनी जगह और गम-ए-रोजगार का मसला अलग। लिहाजा साल 1942 में शिमला की म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन में क्लर्क की छोटी सी नौकरी कर ली। लेकिन उनका दिल इस नौकरी में बिल्कुल भी नहीं रमता था। नौकरी के साथ-साथ उनका लिखना-पढ़ना और मुशायरों में शिरकत करना जारी रहा। यह वह दौर था, जब सांस्कृतिक कार्यक्रम के नाम पर मुशायरों-कवि सम्मेलनों की बड़ी धूम थी। इन मुशायरों की मकबूलियत का आलम यह था कि हजारों लोग इनमें अपने मनपसंद शायरों को सुनने के लिए दूर-दूर से आते थे। शिमला में भी उस वक्त हर साल एक अजीमुश्शान आॅल इंडिया मुशायरा होता था, जिसमें मुल्क भर के नामचीन शायर अपना कलाम पढ़ने आया करते थे। साल 1945 का वाकया है, मुशायरे में दीगर शोअरा हजरात के साथ नौजवान राजेंद्र कृष्ण भी शामिल थे।

जब उनके पढ़ने की बारी आई, तो उन्होंने अपनी गजल का मतला पढ़ा, कुछ इस तरह वो मेरे पास आए बैठे हैं/जैसे आग से दामन बचाए बैठे हैं। गजल के इस शेर को खूब वाह-वाही मिली। दाद देने वालों में जनता के साथ-साथ जिगर मुरादाबादी की भी आवाज मिली। शायर-ए-आजम जिगर मुरादाबादी की तारीफ से राजेन्द्र कृष्ण को अपनी शायरी पर एतबार पैदा हुआ और उन्होंने शायरी और लेखन को ही अपना पेशा बनाने का फैसला कर लिया। एक बुलंद इरादे के साथ वे शिमला छोड़, मायानगरी मुंबई में अपनी किस्मत आजमाने जा पहुंचे। फिल्मी दुनिया में काम पाने के लिए राजेन्द्र कृष्ण को ज्यादा जद्दोजहद नहीं करनी पड़ी। उन्हें सबसे पहले फिल्म जनता की पटकथा लिखने को मिली। यह फिल्म साल 1947 में रिलीज हुई। उसी साल उनकी एक और फिल्म जंजीर आई, जिसमें उन्होंने दो गीत लिखे। लेकिन उन्हें असल पहचान मिली फिल्म प्यार की जीत से। साल 1948 में आई इस फिल्म में संगीतकार हुस्नलाल भगतराम का संगीत निर्देशन में उन्होंने चार गीत लिखे। फिल्म के सारे गाने ही सुपर हिट हुए। खास तौर पर अदाकारा सुरैया की सुरीली आवाज से राजेन्द्र कृष्ण के गाने तेरे नैनों ने चोरी किया मेरा छोटा सा जिया परदेसिया में जादू जगा दिया। गाना पूरे देश में खूब मकबूल हुआ। साल 1948 में ही राजेन्द्र कृष्ण ने एक और गीत ऐसा लिखा, जिससे वे फिल्मी दुनिया में हमेशा के लिए अमर हो गए। 30 जनवरी, 1948 को महात्मा गांधी की हत्या हुई। बापू की इस हत्या से पूरा देश गमगीन हो गया। राजेन्द्र कृष्ण भी उनमें से एक थे। बापू के जानिब अपने जज्बात को उन्होंने एक जज्बाती गीत सुनो सुनो ऐ दुनिया वालों बापू की ये अमर कहानी में ढाला। तकरीबन तेरह मिनट के इस लंबे गीत में महात्मा गांधी का पूरा जिंदगीनामा है।

मोहम्मद रफी की दर्द भरी आवाज ने इस गाने को नई ऊंचाइयां पहुंचा दी। आज भी ये गीत जब कहीं बजता है, तो देशवासियों की आंखें नम हो जाती हैं। हिंदी फिल्मों में राजेन्द्र कृष्ण के गीतों की कामयाबी का सिलसिला एक बार शुरू हुआ, तो उन्होंने फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। एक के बाद एक उनकी ऐसी कई फिल्में आईं, जिनके गीतों ने आॅल इंडिया में धूम मचा दी। साल 1949 में फिल्म बड़ी बहन में उन्हें एक बार फिर संगीतकार हुस्नलाल भगतराम के संगीत निर्देशन में गीत लिखने का मौका मिला। इस फिल्म के भी सभी गाने हिट हुए। खास तौर पर चुप-चुप खड़े हो जरूर कोई बात है, पहली मुलाकात है ये पहली मुलाकात है और चले जाना नहीं.. इन गानों ने नौजवानों को अपना दीवाना बना लिया। सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर की आवाज ने इन गीतों में वह कशिश पैदा कर दी, जो आज भी दिल पर असर करती है। चुप-चुप खड़े हो जरूर कोई बात है की तरह फिल्म बहार (साल-1951) में शमशाद बेगम का गाया गीत सैंया दिल में आना रे, ओ आके फिर न जाना रे भी खूब मकबूल हुआ। इन गानों ने राजेन्द्र कृष्ण को फिल्मों में गीतकार के तौर पर स्थापित कर दिया। साल 1953 में फिल्म अनारकली और साल 1954 में आई नागिन में उनके लिखे सभी गाने सुपर हिट साबित हुए। इन गानों की कामयाबी ने राजेन्द्र कृष्ण के नाम को देश के घर-घर तक पहुंचा दिया। फिल्म अनारकली में यूं तो उनके अलावा तीन और गीतकारों जांनिसार अख्तर, हसरत जयपुरी शैलेन्द्र ने गीत लिखे थे।

Shashi Kumar Keswani

Editor in Chief, THE INFORMATIVE OBSERVER