राघवेंद्र सिंह वरिष्ठ पत्रकार
मध्यप्रदेश में विधानसभा की चुनावी जंग का साल है और भाजपा आलाकमान को यह पता चल गया है कि सूबे की सियासत का मर्ज लाइलाज होता जा रहा है। फिर से सरकार बनाने के लिए 14 ऐसे नेताओं का ब्रह्मास्त्र चलाया है जिसमें कभी वे अकेले ही कांग्रेस के चक्रव्यूह को तोड़ने में सक्षम होते थे। इनमें दो दो बार प्रदेश अध्यक्ष रह पार्टी को सत्तानशीं करने वाले केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का नाम सबसे ऊपर है। पूर्व मंत्री और राष्ट्रीय महामंत्री कैलाश विजयवर्गीय भी संगठन के सिद्धस्त नेताओं की अग्रिम पंक्ति में शुमार हैं। पत्रकार से प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बने प्रभात झा, केंद्रीय मंत्री फग्गनसिंह कुलस्ते, जबलपुर सांसद और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह, सत्यनारायण जटिया जैसे दिग्गजो को जिले स्तर की जिम्मेदारी सौंपने के हालात बन गए। इन छह नेताओं में ही विजयवर्गीय और कुलस्ते को छोड़ दें तो चार नेता तो ऐसे हैं जो प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष रह चुके हैं। इसके अलावा मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान को भी जोड़ा जाए तो वे पूर्व प्रदेश अध्यक्ष के साथ चौथी बार के मुख्यमंत्री भी हैं। उनके साथ युवा तेजतर्रार अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा मैदान में अपने अपने किले लड़ा रहे हैं। इस सबके बावजूद भाजपा आला कमान के फीडबेक फील गुड वाला नही है। सीएम शिवराज की लाडली बेटियों के बाद लाडली बहनों वाली स्कीम अलबत्ता कुछ बढ़त बना रही है। लेकिन इस सबसे सरकार तक पहुंचने का मार्ग निष्कंटक होगा इसको लेकर संशय बना हुआ है। तभी तो राष्ट्रीय अध्यक्ष जयप्रकाश नड्डा ने पार्टी नेताओं के बेड़े में से 14 ब्रह्मोस मिसाइलें मैदान में उतारी हैं।
सही दिशा में देर से उठा कदम…
दरअसल ना काहू से बैर कॉलम में भी लंबे समय से भाजपा कार्यकर्ताओं और पार्टी के निष्ठावान नेताओं की अनदेखी और उपेक्षाओं की बातें लिखी जा रही थी। इसका असर प्रदेश के 16 नगर निगम चुनाव में जो परिणाम आए वे ऐसे थे कि उनसे अंधे और बहरों को भी दिखाई व सुनाई देने लगा। इसके बाद भी कठोर फैसले लेने में देरी की जाती रही। उम्मीद जिन 14 दिग्गज नेताओं की टीम को 15 अप्रैल तक जिलों में संवाद, समन्वय कर जो रिपोर्ट केंद्रीय नेतृत्व को सौंपी जाएगी शायद उससे आंखें खुले। ये भी संभव है केंद्रीय नेतृत्व जो निर्णय करने वाला है उस पर 14 नेताओं की टीम की रिपोर्ट को बड़ा आधार बनाया जाए। वैसे ये काम देर से उठाया गया सही कदम माना जा सकता है। भाजपा में करीब एक दशक से पंच निष्ठा वाले कार्यकर्ताओं की अनदेखी और अपमान सा हो रहा है। सत्य निष्ठ के बजाए सत्ता निष्ठ दलाल कार्यकर्ताओं की चारों उंगलियां घी और सिर कढ़ाई में है। इस वजह से खांटी कार्यकर्ता धीरे धीरे पार्टी की मुख्य धारा से कटते चले जा रहे हैं। कुछ घर बैठा दिए गए तो बहुत से गिव एन्ड टेक के नए कल्चर में मिस फिट हो गए।लेकिन जनता और मतदाताओं को पार्टी के पक्ष में सक्रिय करने का जज्बा सत्य निष्ठ कार्यकर्ताओं में ही है। नगर निगम के चुनावों में पार्टी की पराजय ने पार्टी के जानकारों को दिल्ली तक हिला कर रख दिया। अबकी बार 2003 के पहले वाले पार्टी कार्यकर्ताओं ने सम्भवतः पहली बार पिछले नगर निगम चुनाव में अहंकारी नेताओं के मानमर्दन का निर्णय किया। नतीजा सामने है कभी न हारने वाली 16 नगर निगमों में भी भाजपा का चतुर नेतृत्व अपने साम-दाम,दंड-भेद वाली चाणक्य नीति पर अमल के बावजूद सात नगर निगम में मात खा गया। ये नतीजे भी यह जोर का झटका जोर से ही लगने वाली राजनीतिक घटना थी। फिर भी कोई बड़ा कदम नही उठाया गया।
इलाज करने वाले ही बीमारी बढ़ाते दिखे…
मप्र में दिल्ली से भेजे गए बड़े महारथी सत्ता-संगठन में फैल रहे वायरस का इलाज करने के बजाए उनकी अनदेखी कर मर्ज बढ़ाने में ही मददगार से होते गए। भाजपा कार्यकर्ताओं की सबसे बड़ी शिकायत है समन्वय और संवादहीनता की। पार्टी के लिए जिताऊ साबित हो रहे नेता- कार्यकर्ताओं की जगह दलालों ने ले ली। जितने प्रभारी प्रदेश में भेजे गए वे खुद भी संवादहीनता करने का पाप करते रहे हैं। इससे हताश कार्यकर्ता दिल्ली के कार्यकर्ताओं के रास्ते पर चलते दिख रहे हैं। दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा की रेल एकबार सत्ता की पटरी से उतरी तो अभी तक वापस नही आ पा रही है। ऐसे में मप्र विधानसभा चुनाव 2018 दोहराया गया तो 2024 के लोकसभा चुनाव भी प्रभावित हुए बिना नही रहेगा। एक बार जनधारणा बनी- बिगड़ी तो फिर उसे बदलना बेहद मुश्किल होता है। लगता है नड्डा जी को देर ही सही यह समझ मे आता लग रहा है जिसे प्रदेश का कार्यकर्ता लंबे समय से समझता आ रहा है । अब निर्णय तो पीएम नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह को लेना है। मप्र में मजबूत भाजपा की कमजोरी में प्रभारियों को भी बख्शा नही जाना चाहिए।क्योंकि राज्यों के हालात सुधारने के लिए मोदी-शाह तो प्रभारी बन कर तो आएंगे नही।
भाजपा में रूठों को मनाएंगे
• नरेंद्र सिंह तोमर: इंदौर, भोपाल, सीहोर
• राकेश सिंह: नर्मदापुरम, बैतूल, मंडला
• प्रभात झा: खरगोन, बुरहानपुर
• गोपाल भार्गव: छिंदवाड़ा, बालाघाट, सिवनी
• कैलाश विजयवर्गीय: जबलपुर, धार, रीवा, सतना
• जयभान सिंह: पवैया उज्जैन, शाजापुर, देवास
• माखन सिंह: गुना, शिवपुरी, श्योपुर
• कृष्ण मुरारी: मोघे विदिशा, रायसेन, सागर
• सत्यनारायण जटिया: रतलाम, मंदसौर, नीमच
• फग्गन सिंह कुलस्ते: झाबुआ, अलीराजपुर
• माया सिंह: राजगढ़, नरसिंहपुर, दतिया
• लाल सिंह आर्य: टीकमगढ़, कटनी, पन्ना, छतरपुर
• सुधीर गुप्ता: ग्वालियर, भिंड, मुरैना
• राजेन्द्र शुक्ल: सीधी, सिंगरौली, अनूपपुर, उमरिया, शहडोल।
कांग्रेस की कछुआ चाल…
मध्यप्रदेश में कॉन्ग्रेस कछुआ चाल से चुनावी तैयारी कर रही है जिस तरह से भाजपा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ को उनके गढ़ छिंदवाड़ा में उलझाने की कोशिश कर रही है वैसे ही इस बार इस चुनाव में कांग्रेस भी भाजपा के दिग्गजों को उनके घर में घेरेगी। कोई आश्चर्य नहीं कि इस बार मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को बुधनी और गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा को दतिया में कांग्रेस के मजबूत उम्मीदवारों का सामना करना पड़े। यह जरूर है कि भाजपा नेतृत्व आम आदमी पार्टी कि मध्य प्रदेश में आमद होने की वजह से राजनीतिक गणित के रूप में जीत के प्रति आशान्वित हैं। लेकिन चुनावी साल में हालात कई बार बदलते हैं। ऐसा तब और भी ज्यादा होता है जब मुकाबला बराबरी का हो।