TIO, नई दिल्ली
भारत ने स्वदेशी रूप से विकसित ड्रोन रोधी अत्याधुनिक हाइपरसोनिक मिसाइल प्रणाली भार्गवास्त्र का सफल परीक्षण किया है। यह मिसाइल आवाज की गति से पांच गुना तेजी से उड़ान भरने और छोटे व झुंड में आने वाले ड्रोनों को 2.5 किमी दूर ही पहचान कर उन्हें नष्ट करने की क्षमता से लैस है। इस उपलब्धि के साथ ही भारत ने आकाश में अपनी सुरक्षा को लगभग अभेद्य बना लिया है।
सोलर डिफेंस एंड एयरोस्पेस लिमिटेड (एसडीएएल) की ओर से हार्ड किल मोड में भार्गवास्त्र प्रणाली को डिजाइन और विकसित किया गया है। इस प्रणाली में इस्तेमाल किए गए माइक्रो रॉकेटों का ओडिशा के गोपालपुर स्थित सीवार्ड फायरिंग रेंज में सघन परीक्षण किया गया, जिसमें सभी निर्धारित लक्ष्य हासिल किए गए।
13 मई को सैन्य वायु सुरक्षा (एएडी) के वरिष्ठ अधिकारियों की मौजूदगी में इस प्रणाली के तीन परीक्षण किए गए। एक-एक रॉकेट दागकर दो परीक्षण किए गए। एक परीक्षण दो सेकंड के भीतर साल्वो मोड में दो रॉकेट दागकर किया गया। सभी रॉकेटों ने उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन किया और बड़े पैमाने पर ड्रोन हमलों को कम करने में इसकी आधुनिक तकनीक कारगर साबित हुई।
ड्रोन खतरों का एकीकृत समाधान
भार्गवस्त्र ड्रोन का पता लगाने और उन्हें नष्ट करने के आधुनिक क्षमता के चलते यह प्रणाली ड्रोन के खतरों का मुकाबला करने के लिए एक एकीकृत समाधान है।
दुर्गम क्षेत्रों में भी तैनाती संभव
इसे समुद्र तल से 5,000 मीटर से ज्यादा ऊंचाई वाले इलाकों के साथ-साथ अलग-अलग इलाकों में तैनाती के लिए डिजाइन किया गया है। यह देश की सुरक्षा में मील का पत्थर साबित हो सकता है। खासतौर से हाल के दिनों में जिस तरह से पाकिस्तान की ओर से भारत पर ड्रोन अटैक किए गए उससे एक मजबूत ड्रोन रोधी प्रणाली की बहुत जरूरत है।
खतरों का पलभर में लगाता है पता
इस प्रणाली की लागत कम है। इसका रडार 6 से 10 किमी दूर के हवाई खतरों का मिनट भर में पता लगा सकता है और कुछ सेकेंड्स में बेअसर कर सकता है। 2.5 किमी तक की दूरी पर आने वाले छोटे ड्रोन को खत्म करने की क्षमता से लैस है। यह सी4आई (कमांड, कंट्रोल, कम्यूनिकेशंस, कंप्यूटर और इंटेलिजेंस) से लैस है।
इसलिए भार्गवास्त्र नाम
इस प्रणाली का नाम भगवान परशुराम के दिव्य अस्त्र के नाम पर रखा गया है। भगवान परशुराम का दिव्य अस्त्र का नाम भार्गव अस्त्र था, बहुत ज्यादा संहारक माना जाता था। इसका उल्लेख महाभारत में भी मिलता है, जिसके मुताबिक कर्ण ने भगवान परशुराम से भार्गवास्त्र चलाना सीखा था और महाभारत में इसका इस्तेमाल भी किया था।