TIO, BHOPAL

अक्सर माता-पिता और शिक्षक बच्चों को किसी न किसी बात पर “ना” कह देते हैं—चाहे वह मोबाइल देखने की ज़िद हो या बाहर खेलने की इच्छा। लेकिन बार-बार मना करने से बच्चे जिद्दी या निराश हो सकते हैं। इसके बजाय, हमें उनकी ऊर्जा को सही दिशा में मोड़ना चाहिए।

अगर बच्चा मोबाइल देखना चाहता है, तो उसे किताबों की रंगीन दुनिया से जोड़ें। अगर वह बाहर खेलने से कतराता है, तो उसे किसी रचनात्मक खेल में शामिल करें। सीधे “ना” कहने के बजाय कहें—
✔️ “आओ, कुछ नया ट्राई करते हैं!”
✔️ “यह तो मज़ेदार है, पर इसे और अच्छा कैसे बना सकते हैं?”

इससे बच्चे का आत्मविश्वास बढ़ेगा और उनकी सोचने-समझने की क्षमता विकसित होगी। शिक्षा और पालन-पोषण का उद्देश्य बच्चों को रोकना नहीं, बल्कि सही दिशा में प्रेरित करना होना चाहिए। याद रखें, ‘ना’ एक दरवाजा बंद कर सकती है, लेकिन सही मार्गदर्शन से अनगिनत संभावनाओं के द्वार खुल सकते हैं!

Shashi Kumar Keswani

Editor in Chief, THE INFORMATIVE OBSERVER