TIO, नालंदा।

बावन बूटी कला को इंटरनेशनल लेवल पर पहचान दिलाने वाले पद्मश्री कपिल देव प्रसाद का निधन हो गया। नालंदा के बसवन बीघा निवासी 71 साल से कपिल प्रसाद हृदय रोग से पीड़ित थे। पटना के प्राइवेट हॉस्पिटल में उन्होंने अंतिम सांस ली। उनके निधन की खबर सुन नालंदा ही नहीं पूरे बिहार में शोक की लहर दौड़ पड़ी है। कपिल देव प्रसाद का अंतिम संस्कार पटना के फतुहा स्तिथ त्रिवेणी घाट पर किया जाएगा। कपिल देव प्रसाद का जन्म 5 अगस्त 1955 को हुआ था। कपिल देव प्रसाद ने अपने दादा एवं पिता से बावन बूटी कला का हुनर सीखा था।

पिछले साल राष्ट्रपति ने किया था सम्मानित
इस कला को देश और विदेशों में पहचान दिलाई। सूती या तसर के कपड़े पर हाथ से एक जैसी 52 बूटियां यानी मौटिफ टांके जाने के कारण कपिल देव प्रसाद को 2023 के अप्रैल महीने में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने देश के चौथे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मश्री से सम्मानित किया था।

खास तरह के एक जैसे 52 टांकों की कला
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह जिले नालंदा के एक गांव को कपिल देव प्रसाद के नाम से पहचाना जाता है। जिला मुख्यालय बिहारशरीफ के बसवन बीघा गांव निवासी कपिल देव प्रसाद ने बाप-दादा से सीखे हुनर को लोगों में बांटकर रोजगार का एक माध्यम विकसित कर दिया। बावन बूटी मूलत: एक तरह की बुनकर कला है। सूती या तसर के कपड़े पर हाथ से एक जैसी 52 बूटियां यानि मौटिफ टांके जाने के कारण इसे बावन बूटी कहा जाता है। बूटियों में बौद्ध धर्म-संस्कृति के प्रतीक चिह्नों की बहुत बारीक कारीगरी होती है। बावन बूटी में कमल का फूल, बोधि वृक्ष, बैल, त्रिशूल, सुनहरी मछली, धर्म का पहिया, खजाना, फूलदान, पारसोल और शंख जैसे प्रतीक चिह्न ज्यादा मिलते हैं। बावन बूटी की साड़ियां सबसे ज्यादा डिमांड में रहती हैं, वैसे इस कला से पूर्व परिचित लोग बावन बूटी चादर और पर्दे भी खोजते हैं। कपिल देव प्रसाद के दादा शनिचर तांती ने इसकी शुरूआत की थी। फिर पिता हरि तांती ने सिलसिले को आगे बढ़ाया। जब 15 साल के थे, तभी इसे रोजगार के रूप में अपना लिया। अब तो बेटा ज्यादा काम संभालता है।

Shashi Kumar Keswani

Editor in Chief, THE INFORMATIVE OBSERVER