अरविंद तिवारी वरिष्ठ पत्रकार राजवाड़ा-2-रेसीडेंसी
बात यहां से शुरू करते हैं…
आखिर ऐसी कौनसी परिस्थिति बनी जिसके चलते मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को कहना पड़ा कि इंदौर में 36 लोगों की मौत के बाद नगर निगम ने मूर्तियां हटाकर जो निर्माण तोड़ दिया था, वहीं पर नया मंदिर बनाया जाना चाहिए। इसके पीछे उन्होंने जनभावना की बात कही। दरअसल, घटना के बाद प्रशासन, पुलिस और नगर निगम ने संयुक्त कार्यवाही में बावड़ी पर छत डालकर बनाएं इस मंदिर तथा बगीचे में ही बिना अनुमति के बनाए जा रहे मंदिरनुमा निर्माण को जमींदोज कर दिया था। इस घटना के बाद जिस अंदाज में इंदौर के सिंधी समाज ने अपना रोष व्यक्त किया, उससे लगने लगा था कि नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा को इंदौर में एक बड़े वोट बैंक से हाथ धोना पड़ सकता है। संभवतः यही डर मुख्यमंत्री की घोषणा का कारण बना ।
जिम्मेदारी निभाने पहुंचे… जाले साफ हो गए
इन दिनों भारतीय जनता पार्टी के कई वरिष्ठ नेता मध्यप्रदेश के अलग-अलग जिलों में घूम रहे हैं। इनके दौरों का मकसद पार्टी के नए पुराने लोगों से रूबरू होकर नब्ज टटोलना है। इस कवायद में जो मैदानी फीडबैक मिल रहा है उसने नेताओं के जाले साफ कर दिए हैं। रिश्ते निभाए बिना यदि यही मैदानी हकीकत इमानदारी से दिल्ली तक पहुंच गयी तो फिर मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव के पहले बड़ा बदलाव तय है।
तीन सर्वे… तीनों की अलग-अलग कहानी
आने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर भाजपा व संघ कितना फूंक-फूंक कर कदम रख रहे हैं, इस बात का अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि पार्टी अपने वर्तमान विधायकों की हालत जानने और उनके संभावित विकल्प तलाशने के लिए तीन अलग-अलग सर्वे करवाए जा रहे हैं। पहला सर्वे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की ओर से है, जिसका दूसरा दौर शुरू हो गया है। एक सर्वे भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व करवा रहा है, जो भी लगभग पूर्णत: की ओर है। तीसरा सर्वे संघ की ओर से है और इस सर्वे के नतीजे काफी हद तक उम्मीदवारी का फैसला तय करवाएंगे।
कमलनाथ के लिए आसान नहीं है इंदौर के कांग्रेसियों से निपटना
अब तो कमलनाथ ने भी शायद यह मान लिया है कि इंदौर के कांग्रेसियों से निपटना आसान काम नहीं है। दो महीने से ज्यादा समय हो गया, लेकिन कमलनाथ जैसे कद्दावर नेता शहर कांग्रेस अध्यक्ष के मामले में किसी निर्णय पर नहीं पहुंच पाए। पिछले दिनों जब वे इंदौर आए, तब भी यह मुद्दा उठा तो वे इतना कहकर चुप्पी साध गए कि अभी हम सभी से बात कर रहे हैं। अब यह तो कमलनाथ ही बता पाएंगे कि बात किससे हो रही है और कहां नहीं बन पा रही है। वैसे अपनी इंदौर यात्रा के दौरान उन्होंने खेल प्रशाल में जो नजारा देखा, उससे यह तो साफ हो ही गया है कि इंदौर से जो संदेश वे देना चाहते हैं, वह फिलहाल तो होता नहीं दिखता।
अभी तो नंबर वन पर सुलेमान ही माने जा रहे हैं
जैसे-जैसे इकबाल सिंह बैंस का विस्तारित कार्यकाल खत्म होने की तारीख नजदीक आती जा रही है मध्य प्रदेश के नए मुख्य सचिव को लेकर फिर अटकलों का दौर शुरू हो गया है। फैसला किसके पक्ष में होगा यह तो सिर्फ दो ही लोग जानते हैं। पहला बड़े सरकार और दूसरा बड़े साहब। लेकिन इस सब के बीच सबसे मजबूत विकल्प के रूप में तो मोहम्मद सुलेमान का नाम ही उभर कर सामने आ रहा है।
आशीष सिंह के कारण अविनाश लवानिया को फायदा
भोपाल कलेक्टर के रूप में सम्मानजनक कार्यकाल पूरा कर चुके अविनाश लवानिया को मध्य प्रदेश जल निगम का एमडी बनाने के आदेश ने कईयों को चौंकाया था। दरअसल लवानिया के मामले में कोई भी फैसला बहुत सोच समझ कर लिया जाता है। लेकिन दो दिन बाद ही जब उन्हें मध्यप्रदेश सड़क विकास निगम जैसे प्रदेश के सबसे मजबूत निगम के एमडी की कमान सौंपी गई तब ऐसा लगा मानो गलती सुधार ली गई है। वैसे प्रशासनिक हलकों में तो कहा जा रहा है कि आशीष सिंह के कारण अविनाश लवानिया का फायदा हो गया।
परेशान पी एच क्यू, आखिर किसकी बात मानें
पुलिस मुख्यालय को इन दिनों बड़ी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। दिक्कत यह है कि सत्ता के माइक वन और टू के बीच जो खींचतान चल रही है उसमें पीएचक्यू तक अलग-अलग निर्देश पहुंच रहे हैं। स्वाभाविक है कि माइक वन की पसंद को ही तवज्जो मिल रही है पर इसका खामियाजा दूसरे मोर्चे पर भुगतना भी पड़ रहा है। जरा पीएसक्यू से गृहमंत्री तक पहुंचने वाली फाइलों की स्थिति तो पता कीजिए।
चलते चलते
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की बहुत ही प्रिय माने जाने वाली सामाजिक कार्यकर्ता माला सिंह ठाकुर का जन्मदिन इस बार जिस अंदाज में मना उससे कईयों की नींद उड़ना स्वभाविक है। इस आयोजन की खासियत यह थी कि इसका न्यौता सिर्फ राजनीतिक, सामाजिक क्षेत्र के साथी संघनिष्ठ तथा शहर हित में काम करने वाली महिलाओं को ही पहुंचा था।
पुछल्ला
बड़ा सवाल यह है कि यदि विधानसभा चुनाव लड़ने के इच्छुक गौरव रणदिवे और राजेश सोनकर को शहर और जिला अध्यक्ष पद के दायित्व से मुक्त किया जाता है तो फिर यह भूमिका किसे मिलेगी। जरा आप भी दिमाग चलाइए।
अब बात मीडिया की
इंदौर के बेलेश्वर महादेव मंदिर हादसे में 36 लोगों की मौत के बाद स्थगित किया गया भास्कर उत्सव अब संभवत है 20 या 21 अप्रैल से होगा।
जागरण प्रबंधन ने मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में नईदुनिया व नवदुनिया के सिटी सप्लीमेंट को नया आकार देने के लिए तगड़ा बजट मंजूर किया। मकसद इसे सिटी भास्कर के मुकाबले में लाने का है, लेकिन फिलहाल तो ऐसा कुछ दिख नहीं रहा है। इसके लिए न तो नए रिक्रूटमेंट हुए न ही अतिरिक्त संसाधन जुटाए गए। खबरों का बोझ भी सिटी टीम पर ही आ गया है। चर्चा है कि इतने बड़े बजट का उपयोग आखिर हो कहां रहा है।
सालों तक सांध्य दैनिक प्रभात किरण में सेवाएं देने वाले वरिष्ठ पत्रकार राजेश राठौर जल्दी ही नई भूमिका में नजर आएंगे। घमासान डॉट कॉम के नाम से पहले से ही वेब पोर्टल संचालित कर रहे राठौर अब एक अखबार निकालने की तैयारी में हैं। अभी लेआउट और प्लानिंग पर काम चल रहा है।
दैनिक भास्कर के नेशनल ग्रूमिंग प्रोग्राम के तहत चयनित युवा पत्रकारों से खुद एमडी सुधीर अग्रवाल रूबरू होकर विस्तृत संवाद कर रहे हैं।
लंबे समय तक नई दुनिया के अलग-अलग ब्यूरो में प्रभारी रहे वरिष्ठ पत्रकार डॉ विवेक वर्धन श्रीवास्तव अब मासिक पत्रिका रविवार डाइजेस्ट के फीचर एडिटर की भूमिका में नजर आएंगे।
अखबारों में रिकवरी फील्ड के एक्सपर्ट रिंकेश तिवारी पत्रिका में एक बार फिर रिकवरी की कमान संभालेंगे।